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    वी के सिंह और सुषमा स्वराज

    आज इराक़ से 38 भारतीयों को लेकर जब विमान अमृतसर पहुंचा तो माहौल काफी नम था। वजह यह थी कि ये भारतीय जीवित नहीं बल्कि ताबूतों में गहरी नींद में सोये आये थे।

    ये वही 38 भारतीय थे जिन्हें 2014 मे दाएश यानी इस्लामिक स्टेट्स ने मौत के घाट उतार दिया था।

    इन्हें लाने विदेश राज्य मंत्री व पूर्व थल सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह खुद गए थे।

    मुश्किल खोज

    2014 में लापता हुए उन भारतीयों की तलाश 4 सालों से बिना रुके जारी थी। जनरल वी. के. सिंह नें कई बार खुद इन भारतीयों को ढूंढ़ने के लिए भेजे गए अभियानों का इराक़ जा कर नेतृत्व किया। 

    पहले शक था कि दाएश के आतंकियों ने उन्हें अगवा कर के मोसुल के एक जेल में कैदी बना कर रखा हैं। और मोसुल शहर लम्बे समय तक इस्लामिक स्टेट के कब्जे में रहा था, इसलिए इन भारतीयों की खोज में काफी समय लग गया।

    लम्बा इंतजार

    कुल 40 भारतीयों को इस्लामिक स्टेट ने उत्तरी इराक़ के मोसुल के एक होटल से 40 भारतीयों को अगवा किया था। ये भारतीय निर्माण सम्बन्धी कामों के लिए इराक गए थे। इस्लामिक स्टेट के आक्रमण में ये निकल नहीं पाये और उनके द्वारा अगवा कर लिए गए थे।

    उसके बाद उनका कोई सुराग नहीं मिल पाया था।

    जांच के दौरान जब उनकी कम्पनी के मालिक से बात की गयी तो उससे लता चला कि उनको इराव छोड़ कर निकलने के आदेश काफी पहले दे दिए गए थे।

    इराक
    इराक

    उन अगवा भारतीयों में से एक बंधक अपने आप को मुसलमान बता कर इस्लामिक स्टेट के चंगुल से भागने में कामयाब रहे थे।

    उन्होंने आकर मीडिया के सामने बताया कि सभी 39 बंधकों को मार दिया गया है। पर सरकार ने ऐसे दावों को निरस्त कर दिया था।

    चुनौतियां

    जनरल वी. के. सिंह ने पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिंधु के साथ आज साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की।

    प्रेस कॉन्फरन्स में उन्होंने इन भारतीयों को ढूंढ निकालने में आने वाली समस्याओं का वर्णन किया।

    सितम्बर 2017 तक भारत सरकार उन कैदियों की वर्तमान स्थिति जानने के लिए कई अन्य स्त्रोतों का भी इस्तेमाल कर रहे थे।

    मोसुल में युद्ध जारी था इसलिए इराकी सेना भारतीय खोजी दल को मोसुल जाने की इजाज़त नहीं दे रही थी।

    पर जब मोसुल पर विजय प्राप्त हुआ तब इराक़ी सैनिकों के साथ जनरल वी. के. सिंह मोसुल के बाहर एक पहाड़ी के पास पहुंचे।

    यह पहाड़ी कुर्दों के इलाके में थी। और उन्हीं के माध्यम से यह पता चला था कि उस पहाड़ी के नीचे कुछ लाशें दफन हैं।

    तब इराक़ी सेना के रडारों के माध्यम से उस पहाड़ी को स्कैन किया गया। इससे यह पुष्टि हुई कि उस पहाड़ी के नीचे लाशें थीं।

    खुदाई शुरू हुई तो वहां से कुल 39 शव मिले। यह वही संख्या थी जो शुरू में लापता हुये थे। फिर भी पुष्टि करने के लिए भारत से उनके रिश्तेदारों के डी. एन. ए के नमूने मंगाए गए और वहीं जांच की गयी।

    जांच में 38 भारतीय के नमूने सही पाये गए और ष्ट प्रतिशत पुष्टि हो गयी कि ये वही लोग हैं जो 2014 में लापता हुए थे।

    हालांकि एक व्यक्ति का डी. एन. ए. नमूना पूरी तरह मेल नहीं हुआ और उसपर अभी भी जांच जारी है।

    इसके बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद के माध्यम से देश को यह हृदय-विदारक समाचार दिया।

    सरकारी मदद

    मृत भारतीयों मे से अधिकतर पंजाब और बिहार के थे।

    सरकार ने उन्हें 5 लाख मुआवजा व अन्य सुविधाएं देने की बात की है।

    नवजोत सिंह सिंधू ने मृतकों के परिजनों को सरकारी नौकरी दिलवाने का भी आश्वासन दिया।

    जनरल वी. के. सिंह ने आगे जानकारी दी कि ये भारतीय अवैध तरीके से इराक गए थे। उन्होंने अनाधिकृत दलालों की सहायता ली थी इसीलिए जब मुसीबत आई तब इराक का भारतीय दूतावास उन्हें समय रहते वहां से नहीं निकाल पाया।

    गौरतलब है कि 39वां शव अभी वापस नहीं लाया जा सका, इसकी वजह उसके डी.एन.ए का मेल नही होना था।

    जनरल सिंह ने आगे इस बात पर जोर दिया कि हम सभी भारतीयो को हमेशा बताने की कोशिश करते हैं कि विदेश सही तरीके से ही जाएं तथा – “प्रशिक्षित जाएं, सुरक्षित जाएं” यह विदेश मंत्रालय का प्रवासियों के लिए मूल मन्त्र है।

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