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    महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की अनियंत्रित सहयोगी शिवसेना ने संकेत दिया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के लिए वो लोकसभा और विधानसभा में आधी सीटें चाहती है। सेना ने ये भी स्पष्ट किया है कि सीट बंटवारा अलग चीज है लेकिन ये उसके लिए मुख्य मुद्दा नहीं है।

    2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य में लोकसभा की 48 सीटों में से भाजपा ने 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि शिवसेना ने 20 सीटों पर। जबकि सीट गठबंधन के अन्य सहयोगियों राजू शेट्टी की स्वाभिमान पक्ष, राम दास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया और महादेव जानकर की पार्टी राष्ट्रीय समाज पक्ष ने चुनाव लड़ा था।

    2014 में लोकसभा चुनावों के बाद हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट गया, जब भाजपा ने राज्य में वरिष्ठ साथी के रूप में शिवसेना को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। वे अलग से लड़े और भाजपा ने 288 विधानसभा सीटों में से 260 पर उम्मीदवार उतारे; सेना ने 282 सीटों पर चुनाव लड़ा।भाजपा ने 122 सीटों पर कब्जा किया जबकि शिवसेना को 63 सीटों से संतोष करना पड़ा।

    भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन बहुमत से दूर रही।ऐसी स्थिति में शिवसेना ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए सहयोग दिया।

    उसके बाद स्थानीय निकाय चुनाव में दोनों पार्टियाँ फिर अलग अलग चुनाव लड़ी जिसमे से भाजपा ने 27 बड़े कारपोरेशन में से 15 पर कब्ज़ा कर लिया शिवसेना ने मुंबई पर कब्जा बरकरार रखा लेकिन भाजपा से सिर्फ 2 सीट क्यादा हासिल कर पायी।

    जब से सेना और भाजपा के रिश्ते बिगड़े, राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के रिश्ते ठन्डे माने जाते है।

    इस वर्ष शिवसेना ने घोषणा किया कि वो 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अकेले उतरेगी। उसके बाद शिवसेना ने भाजपा को नोटबंदी पर घेरा और फिर राम मंदिर के लिए दवाब बनाना शुरू कर दिया।

    फडणवीस और अमित शाह दोनों ने शिवसेना से बिगड़े रिश्ते को पटरी पर लाने की भरसक कोशिशें की, शिवसेना नेताओं के भड़काऊ बयानों को इग्नोर किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
    दिल्ली के एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “दोनों पक्षों के बीच कुछ ‘अनौपचारिक’ बातचीत हुई है।” ” कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक साथ आने की रिपोर्ट के बाद, भाजपा और शिवसेना दोनों को एक साथ रहने का एहसास हो सकता है।”

    6 जून को भाजपा अध्यक्ष अमित शा ने उद्धव से मुलाक़ात की थी तो लगा था कि रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलेगी लेकिन उसके बाद फिर से उद्धव और शिवसेना के मुखपत्र सामना की तरफ से बयानबाजी शुरू हो गई।

    विश्लेषकों को लगता है कि तीन राज्यों में चुनावी हार के बाद भापा कमजोर हुई है और इसका अहसास शिवसेना को हो रहा है। वो भाजपा को उसी तरह अपनी शर्तों पर झुकाना चाहते हैं जिस तरफ बिहार में भाजपा के सहयोगियों जेडीयू और लोजपा ने झुकाया और अपने मनमाफिक डील हासिल करने में सफलता पायी।

    शिवसेना सूत्रों के अनुसार बिहार की तर्ज पर शिवसेना आधी आधी सीटों की डील चाहती है। लोकसभा में 24-24 और विधानसभा में 144-144, लेकिन गठबंधन के छोटे सहयोगियों के लिए शिवसेना कोई कुर्बानी नहीं देगी और उनके लिए भाजपा को अपने कोटे से सीटें निकालनी पड़ेगी। ऐसी स्थिति में शिवसेना का ओहदा फिर से राज्य में बड़े भाई का हो जाएगा।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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