नई दिल्ली, 27 अप्रैल| सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के लिए 2019 का आम चुनाव अब शुरू हो रहा है। ये वे सीटें हैं, जहां भाजपा ने 2014 में 240 में से 161 सीटों पर कब्जा जमाया था। मध्य और उत्तर भारत में अगले चार चरणों में चुनाव होने वाले हैं, जहां भाजपा को सत्ता हासिल करने के लिए इन सीटों को अपनी जीत में बदलना होगा।
2014 में, भाजपा ने जहां 161 सीटें जीती थीं, तृणमूल कांग्रेस ने 30 और कांग्रेस ने केवल नौ सीटों पर कब्जा किया था, बाकी की सीटों पर अन्य पार्टियों ने जीत दर्ज की थी।
भाजपा की कुल 282 सीटों के बारे में सोचिए। अंतिम चार चरणों की सीटों में से भाजपा को 161 सीटें मिली थीं। हालांकि कई जगहों पर सीधे मुकाबले में, कांग्रेस 96 सीटों पर दूसरे स्थान पर, बहुजन समाज पार्टी(बसपा) 20 सीटों पर, सपा 18 सीटों पर, राजद 17 सीटों पर और माकपा 22 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। लेकिन इस बात की भी काफी संभावना है कि 2019 में कुछ बदलाव होगा, जहां भाजपा बड़ी संख्या में सीटों पर कब्जा करना चाहेगी तो कांग्रेस, राजद, बसपा और सपा भी भाजपा की सीटों में सेंध लगाना चाहेंगी।
मोदी लगातार परिश्रम करके भारतीय राजनीति में एक बड़े राजनेता बन गए हैं और वह लगातार एक विशालकाय व्यक्तित्व की तरह आगे बढ़ रहे हैं। 2014 के बाद से, बिहार और दिल्ली और हाल के समय में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने भाजपा को काफी मजबूती प्रदान की है। मोदी की निजी निष्पक्षता हालांकि नोटबंदी और गब्बर सिंह टैक्स या व्यापक ग्रामीण संकट से भी कम नहीं हुई, जबकि उनके विपक्षी राहुल गांधी हर जगह सार्वजनिक रूप से उनपर निशाना साधते हैं।
कई मायनों में, भाजपा उनके नेतृत्व में एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गई है। यह स्थिति 1970 के दशक की श्रीमती इंदिरा गांधी की कांग्रेस की याद दिलाती है।
2014 के चुनावी आंकड़े का बारीकी से जांच करने के बाद खुलासा हुआ है कि उत्तर-मध्य भारत के आठ राज्यों से भाजपा को 75 प्रतिशत संसदीय सीटें प्राप्त हुई थीं। अल्पसंख्यकवाद और तुष्टीकरण की वजह से मोदी के पीछे हिंदू वोट लामबंद है, जहां भाजपा और उसके गठबंधन के सहयोगियों ने 2014 में हिंदी पट्टी के राज्यों बिहार व उत्तर प्रदेश की 120 सीटों में से 104 सीटों पर कब्जा जमाया था।
इसके अलावा भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा, जहां बमुश्किल ही भाजपा की उपस्थिति थी, वहां पार्टी ने अपनी उपस्थिति बढ़ाई है। 2014 में, भाजपा ने इन राज्यों में औसत रूप से 28 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किए थे। पार्टी ने यहां की 25 में से आठ सीटों पर कब्जा जमाया था। 2009 चुनाव से इसकी तुलना करें तो भाजपा ने इन क्षेत्रों में अपना वोट और सीट हिस्सेदारी को बढ़ाया है।
दो दशक पहले, कांग्रेस ने यहां 40 प्रतिशत वोट प्राप्त किया था और क्षेत्र की 13 सीटों पर कब्जा किया था। 2014 में कांग्रेस का वोट शेयर 30 प्रतिशत के आसपास था और उसे आठ सीटें प्राप्त हुई थीं। आने वाले समय में, मोदी की हिंदू अस्मिता वोट दिलाने वाली साबित होगी, जहां इस नए परिदृश्य में हिदू राष्ट्रीयता और लोकलुभावन विकास एक विभेदक साबित हो सकते हैं। भाजपा अपने दम पर सामान्य बहुमत से पीछे रह जाने की उम्मीद कर रही है, लिहाजा पार्टी को नए दक्षिणपंथी गठबंधन बनाने के लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ गठबंधन करना पड़ेगा।
अगले चार चरणों के विवरण इस प्रकार हैं :
चौथा चरण(71 सीटें) : भाजपा 45, तृणमूल 6, कांग्रेस 2, लोजपा 2
पांचवा चरण (51 सीटें) : भाजपा 39, तृणमूल 7, कांग्रेस 2
छठा चरण(59 सीट) : भाजपा 44, तृणमूल 8, कांग्रेस 2
सातवां चरण(59 सीट) : भाजपा 33, कांग्रेस 03, अकाली दल 04, तृणमूल 09
जहां 2014 में मोदी लहर में सभी विपक्षी धराशायी हो गए थे। लेकिन ऐसी कई सीटें थीं, जहां काफी कांटे का संघर्ष हुआ था। बिहार से शुरुआत करें तो नालंदा में जद(यू) के कौशलेंद्र कुमार लोजपा के सत्यानंद शर्मा से केवल 9,627 मतों से जीते थे। होशियारपुर एससी सीट से भाजपा के विजय सांपला ने कांग्रेस के मोहिंदर सिंह कायपी को 13,582 मतों से हाराया था।
आश्चर्यजनक रूप से सांपला को दोबारा टिकट नहीं दिया गया। उसी तरह आनंदपुर साहिब से अकाली दल के प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कांग्रेस की दिग्गज नेता अंबिका सोनी को केवल 23,697 मतों से हराया था। पंजाब की बठिंडा से सीट से दोबारा चुनाव लड़ रहीं हरसिमरत कौर बादल ने कांग्रेस के मनप्रीत सिंह बादल को 19,395 मतों से हराया था। आप के धर्मवीर गांधी ने पटियाला से मौजूदा केंद्रीय मंत्री प्रणीत कौर को 20,942 मतों से हराया था। पंजाब के फिरोजपुर में एक और कड़ा मुकाबला अकाली दल के शेर सिंह घुबाया और कांग्रेस के सुनील जाखड़ के बीच हुआ था, जहां घुबाया ने जाखड़ को 31,420 मतों से हराया था। इस बार कांग्रेस पंजाब में और बेहतर करना चाहती है।
उत्तर प्रदेश में गाजीपुर से भाजपा के मनोज सिन्हा ने सपा के शिवकन्या कुशवाहा को 32,452 मतों से हराया था। उत्तर प्रदेश में अब सुई की दिशा पूर्वाचल की ओर मुड़ चुकी है। भाजपा यहां से जबरदस्त कामयाबी हासिल करना चाहती है।
कई चरणों के चुनाव में, सत्तारूढ़ पार्टी को हमेशा फायदा होता है। इसमें और इजाफा हो जाता है, जब नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई नेता चुनाव के हर चरण में अपनी जान फूंक देता है।