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    नई दिल्ली, 28 अप्रैल (आईएएनएस)| विनिवेश के उच्च लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार की चयनित ब्लू चिप कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 51 फीसदी से कम करने की है।

    दरअसल, केंद्र सरकार के अधीनस्थ सार्वजनिक उद्यम (सीपीएसई) के लिए सरकार की न्यूनतम हिस्सेदारी 51 फीसदी होनी चाहिए।

    निवेशक और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएएम) के अधिकारियों ने कहा कि बाजार विनियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) जल्द ही अंतर मताधिकार यानी डिफरेंशिल वोटिंग राइट (डीवीआर) पर नीतिगत दिशानिर्देश जारी करने वाला है जिससे प्रमोटरों को नियंत्रण कम किए बगैर धन जुटाने की अनुमति मिलेगी।

    एक बार इन नियमों के लागू हो जाने के बाद सरकार नियंत्रण खोए या कंपनी के पीएययू के नाम में बदलाव किए बिना सीपीएसई में ज्यादा हिस्सेदारी के विनिवेश पर विचार कर सकती है।

    वर्तमान में दो दर्जन से ज्यादा सीपीएसई है जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 60 फीसदी से कम या तकरीबन 60 फीसदी है। केंद्र सरकार के इन उद्यमों में इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (ईआईएल-52 फीसदी), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी-52.18 फीसदी), भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल-53.29 फीसदी), गेल इंडिया (52.64 फीसदी), ऑयल एंड गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी-64.25 फीसदी), पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी-59.05 फीसदी), पावरग्रिड कॉरपोरेशन (पीजीसीआईएल-55.37 फीसदी), एनटीपीसी, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई-63.75 फीसदी), भारत हैवी इलेक्टिकल्स (बीएचईएल-63.17 फीसदी), एनबीसीसी (68.18 फीसदी), कंटेनर कॉरपोरेशन (54.80 फीसदी) जैसे महारत्न और नवरत्न कंपनियां शामिल हैं।

    अगर सरकार इन कंपनियों में अपनी ज्यादा हिस्सेदारी बेचती है तो उसे बाजार से विनिवेश से आसानी से धन मिलेगा और शेयर बायबैक, नए ईटीएफ इश्यू या विशेष लाभांश की घोषणा समेत पीएसयू से उच्च लाभांश अदायगी जैसे अन्य उपकरणों की जरूरत नहीं होगी।

    इससे विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने का दबाव भी दूर होगा। यहां तक कि ब्लूचिप पीएसयू के छोटे इश्यू से सरकार के शेयरों का बेहतर उगाही हो सकती है। इनमें से अधिकांश कंपनियों के शेयरों का बाजार में अच्छा मूल्य है।

    सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में 90,000 करोड़ रुपये विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य रखा है।

    वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, “सरकार के लिए कई गैर-रणनीतिक और गैर-कोर पीएसयू में अपनी हिस्सेदारी कम करने के लिए गोल्डन शेयर या डीवीआर पहला कदम हो सकता है।”

    सेबी ने पिछले महीने डीवीआर को लेकर सुझाव पत्र जारी किया था जिसमें कंपनियों को उनके आर्थिक स्वामित्व की तुलना में शेयर अधिकार जारी करने की अनुमति दी गई थी।

    डीआईपीएएम के अधिकारियों ने कहा कि एक बार डीवीआर की संरचना औपचारिक बन जाए तो फिर वे इस संरचना का उपयोग विनिवेश के लक्ष्य को बढ़ाने के लिए कर सकते हैं क्योंकि अधिकांश ब्लूचिप सीपीएसई में सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी के करीब है।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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