भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के राजीव महर्षि ने आरबीआई को फटकार लगाते हुए पूछा है कि “जब देश के बैंक बड़े बड़े लोन देने में व्यस्त थे, तब आरबीआई क्या कर रही थी?” बैंकों द्वारा इस तरह के लोन देने की ही वजह से देश की संपत्ति और देयता में कोई संतुलन नहीं बचा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में बुरे ऋण (बैंकों को वापस न चुकाए जा सकने वाला ऋण) या अनर्जक संपत्ति का मूल्य वर्ष 2017-18 में बढ़कर 9.61 लाख करोड़ हो गया है।
नयी दिल्ली में इंडियन स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के उदघाटन समारोह में बोलते हुए राजीव महर्षि ने कहा कि “वर्तमान में चल रहे बैंको के ऊपर संकट से हमें कैसे उबरना है हमें पता है। इसके लिए इन बैंकों को फिर से पूंजी मुहैया करानी पड़ेगी। इस समय कोई भी नियामक (भारतीय रिज़र्व बैंक) से ये नहीं पूछ रहा है कि जब इस तरह की परिस्थितियाँ बनाई जा रहीं थीं, तब वो कहाँ थी।”
कैग ने कहा है कि देश में सार्वजनिक नीतियों पर चर्चा करने की जरूरत है। इसी के साथ में देश में बैंकों की कार्यप्रणाली व आरबीआई के कामकाज पर न तो कोई बोल रहा है और न ही कोई सवाल उठा रहा है।
उन्होने कहा कि “बैंकों द्वारा किए गए बुरे प्रबंधों के चलते आम जनता का पैसा डूब रहा है। यही कारण है कि बैंकिंग सेक्टर में इस तरह की गड़बड़ी होती चली जा रहीं हैं। इन तरीकों को समझ पाना मुश्किल काम है।”
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2018 को देश में एनपीए के तहत 9.61 लाख करोड़ रुपये का नुकसान दिखाया गया था। इसमें देश में कृषि के क्षेत्र में महज 85,344 लाख रुपये डूबा है, जबकी व्यावसायिक स्तर पर 7.03 लाख करोड़ रुपये रुपये का नुकसान हुआ है।
महर्षि के अनुसार देश में संरचनात्मक सुधार किए जाने की आवश्यकता है।