बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी सपोर्ट के लिए अब आरबीआई खुद आगे आ गयी है।
आरबीआई ने निर्देश जारी करते हुए कहा है कि सिस्टम में मुद्रा बाज़ार दर तेज़ी से घटी है, लोग म्यूचुअल फंड्स में पैसा लगा रहे हैं, जिसका लिक्विडिटी सपोर्ट पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
क्या होती है लिक्विडिटी?
बैंकिंग लिक्विडिटी से तात्पर्य बैंक की उस संपत्ति से है जिसे बैंक जरूरत पड़ने पर आसानी से कैश में तब्दील कर सकती है।
सभी बैंकों के लिए ये काफी महत्वपूर्ण होता है कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में लिक्विडिटी सपोर्ट हो। जिससे वो बैंक किसी भी आपात स्थिति में अपनी जरूरत का कैश इकठ्ठा कर सके। कैश को तरल संपत्ति माना जाता है, जिसे कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
माना जा रहा है कि आरबीआई का ये कदम निवेशकों का भरोसा जीतने के काम आएगा। भारत में डूबे हुए कर्ज़ की वजह से भी बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी के संतुलन में काफी समस्या उत्पन्न हो गयी है।
हालाँकि डीलरों को इस बात से संतुष्टि है कि आरबीआई बैंकिंग लिक्विडिटी को लेकर कदम उठा रही है लेकिन वो ये भी चाहते हैं कि आरबीआई के इस कदम से बॉन्ड खरीदने व बेचने जैसी प्रक्रिया भी न प्रभावित हो।
आरबीआई के निर्देश के चलते अभी बैंक, बॉन्ड जैसी किसी सुविधा पर आरबीआई के निर्देशनुसार ही निवेश कर सकेंगे।
इसी के साथ आरबीआई ने कहा है कि “यह फैसला वित्तीय सिस्टम के अंदर लिक्विडिटी वितरण में मदद करेगा।” आरबीआई ने साथ ही कहा है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो इसके लिए अलग से सर्कुलर भी जारी कर सकता है।