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    बुंदेलखंड में तालाबों की हद तय करने की कवायद जारी है। इसके लिए वीडियोग्राफी कराई जा रही है, साथ ही जल भराव क्षेत्र की हद तय करने के लिए चारों तरफ नाली निर्माण की योजना है। ऐसा होने से आने वाले समय में तालाबों को अतिक्रमण से बचाया जा सकेगा, साथ ही तालाब के भीतर जो अतिक्रमण किए गए हैं, उन्हें हटाना भी आसान होगा।

    बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 14 जिलों को मिलाकर बनता है। बुंदेलखंड में आने वाले मध्य प्रदेश के सात जिलों सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, निवाड़ी और दतिया की देश और दुनिया में कभी पहचान जल संग्रहण क्षेत्र के तौर पर हुआ करती थी। मगर बीते कुछ दशकों में यह इलाका पानी के संकट ग्रस्त क्षेत्र के तौर पर पहचाना जाने लगा है।

    वर्तमान में इस क्षेत्र की दुनिया में पहचान सूखा, अकाल, पलायन, बेरोजगारी के तौर पर होती है। अच्छी बारिश होने के बावजूद पानी रोकने के इंतजाम न होने के कारण सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाता है। इतना ही नहीं, जो जल संरचनाएं हैं, वे अपना अस्तित्व को खो रही हैं। लिहाजा उन्हें अब बचाने के प्रयास शुरू हो रहे हैं।

    बुंदेलखंड से नाता रखने वाले कमलनाथ सरकार में वाणिज्य कर मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान जल संरचनाओं और खासकर तालाबों की स्थिति को लेकर चिंता जताई। उनका कहना है, “जल संरचनाएं और तालाब इस क्षेत्र की पहचान हुआ करती थीं, मगर अवैध कब्जों के कारण बड़ी संख्या में तालाब खत्म हो गए। अब जो बचे हैं, उन्हें बचाने की जिम्मेदारी सभी की है। इसके लिए एक कार्ययोजना पर अमल शुरू किया गया है। इस साल क्षेत्र में अच्छी बारिश के कारण तालाब भरे हुए हैं, और भराव क्षेत्र तक तालाबों में पानी है। इसलिए तालाबों की सीमा का पता करना कठिन नहीं है।”

    उन्होंने बताया, “पानी से भरे तालाबों की वीडियोग्राफी कराई जा रही है, ताकि यह जानकारी उपलब्ध रहे कि तालाब का भराव क्षेत्र कहां तक है। इतना ही नहीं, जिन तालाबों के चारों ओर घाट आदि नहीं हैं, वहां गहरी नाली बना दी जाएगी, ताकि यह निशानी रहे कि तालाब का क्षेत्र कहां तक है।”

    राठौर ने आगे कहा, “तालाब की वीडियाग्राफी और चारों तरफ नाली निर्माण के चलते भीतरी हिस्से में अतिक्रमण करना आसान नहीं होगा। इतना ही नहीं वर्तमान में तालाब के भीतर जो अतिक्रमण किए गए हैं, उनका भी ब्यौरा आसानी से तैयार किया जा सकेगा और उन्हें हटाना भी आसान हो जाएगा।”

    बुंदेलखंड की किसी दौर में जल समृद्घि की कल्पना इसी बात से की जा सकती है कि यहां के गांव की पहचान वहां उपलब्ध जल संरचना से होती थी। औसत तौर पर हर गांव में एक बड़ी जल संरचना हुआ करती थी, मगर आज स्थिति उलट है। यहां के अधिकांश गांवों में जल संरचनाएं खत्म हो चुकी हैं। इन संरचनाओं पर इमारतें बन गई हैं। जो तालाब हैं, उन तक पानी पहुंचने के रास्ते बंद हो गए हैं। नतीजतन यहां पानी का संकट आम है।

    बुंदेलखंड क्षेत्र में जल संरक्षण के लिए काम करने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र राम बाबू तिवारी का कहना है, “जल संरचनाओं और खासकर तालाबों को अगर अतिक्रमण मुक्त कर लिया जाए तो इस क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है। यहां जल संरचनाओं की कमी नहीं है, मगर उन सब पर हुआ अतिक्रमण जल संकट का बड़ा कारण बना गया है। मध्य प्रदेश सरका अगर इस दिशा में प्रयास करती है तो आने वाले सालों में इस क्षेत्र को जल संकट से आसानी से निजात मिल जाएगा।”

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