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    बिमारियों के प्रकार types of diseases in hindi

    विषय-सूचि

    संक्रामक रोग के प्रकार (types of Communicable Diseases in Hindi)

    माइक्रोबायल बीमरियां जो हवा, खाना, पानी या जिस्मानी सम्बन्ध (physical contact) से एक पीड़ित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक फ़ैल सकता है, वह संक्रमित बीमारियों की श्रेणी में आते हैं।

    हैजा, खांसी, चेचक, टीबी, मलेरिया आदि इस बीमारी के उदाहरण हैं। मादा Anopheles मच्छर मलेरिया के पैरासाइट को फ़ैलाने का काम करती है। मादा Aedes मच्छर डेंगू के वायरस को फ़ैलाने का काम करती है।

    बहुत सारे माइक्रोब या सूक्ष्म जीव एक इंसान से दूसरे इंसान तक किसी न किसी रूप में बीमारी स्थानांतरण करने का काम करते हैं।

    दूसरे शब्दों में वे एक व्यक्ति से जीवाणु लेकर दूसरे व्यक्ति को संक्रमित करने का काम करते हैं, अतः इन बीमारियों को संक्रामक रोग या बीमारी कहा जाता है।

    कुछ बीमारी हवा के द्वारा फैलते हैं, जैसे कि खांसी, टीबी, निमोनिया आदि। पानी के द्वारा फैलने वाले बीमारियों में हैजा, दस्त जैसी बीमारियां हैं जो साफ़ पानी में गंदे पानी के मिल जाने से फैलती हैं और यह पानी लोगों द्वारा उपयोग में लाये जाने के कारण बीमारी का रूप ले लेते हैं।

    असुरक्षित शारीरिक सम्बन्ध बनाने के कारण एड्स एवं sphyllis जैसी बीमारियां होती हैं। अगर AIDS संक्रमित माता अपने नवजात शिशु को दूध पिलाती हैं तो शिशु को भी एड्स हो सकता है।

    संक्रामक बीमारी के कारक (Agents of Communicable Diseases in Hindi)

    हम ऐसे वातावरण में रहते हैं जहां हमारे अलावा भी दूसरे प्राणी रहते हैं। इससे यह सम्भावना बढ़ जाती है कि कई बीमारियां दूसरे जानवरों से भी फैलती होगी।

    यह जानवर बीमारी संक्रमित घटकों को एक बीमार प्राणी से दूसरे स्वस्थ प्राणी तक पहुँचाने का काम करते हैं। अतः यह जानवर बिचौलिए (intermediaries) हैं जिनको रोगवाहक (vector) कहा जाता है। मच्छर, विषाणु, जीवाणु आदि प्रमुख रोगवाहक हैं।

    मच्छरों के प्रजातियों में यह देखा गया है कि मादाओं को खून के रूप में अच्छे गुण वाले पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिससे वे ठीक से अंडे दे सकें।

    इसके लिए वह गर्म खून वाले प्राणियों को काटते हैं जिनमे इंसान आते हैं। इस तरह से यह मच्छर एक इंसान से दूसरे इंसान तक बीमारी फैला देते हैं।

    अंग सम्बन्धी एवं ऊतक सम्बन्धी बीमारियां (Diseases Related to Organs & Tissues in hindi)

    विभिन्न प्रकार के जीवाणु शरीर के विभिन्न भागों को संक्रमित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। शरीर में प्रवेश करने के बाद वे उस एक अंग को प्रभावित करने लग जाते हैं।

    अगर नाक से सांस लेने के दौरान अगर बैक्टीरिया घुसते हैं तो वह फेफड़ों की तरफ जाते हैं जिससे टीबी होता है। अगर वे मुख से प्रवेश करते हैं तो वह पेट के अस्तर (gut lining) में पहुँच जाते हैं जिससे आंत्र ज्वर (Typhoid) होता है।

    HIV इन्फेक्शन जो पीड़ित व्यक्ति के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने से, उसके साथ सुई शेयर करने से या HIV पीड़ित का खून अनजाने में लेने से हो सकता है – वह शरीर के लसिका प्रणाली (lymph) में घुस जाता है एवं सफ़ेद ब्लड कोशिकाओं (white blood cell) पर आक्रमण कर देता है।

    जब मलेरिया के जीवाणु शरीर में प्रवेश करते हैं तो वह लिवर की तरफ जाते हैं और वहां red blood cell को नष्ट करने का काम शुरू कर देते हैं। इसी प्रकार Japanese Encephalitis जिसके कारण दिमाग का बुखार होता है, वह दिमाग को प्रभावित करना शुरू कर देते हैं।

    संक्रमित बीमारियों के लक्षण (Symptoms of Communicable Diseases in Hindi)

    संक्रमित बीमारियों के लक्षण इस बात पर निर्भर करता है कि किसी जीवाणु ने शरीर के किस अंग पर आक्रमण किया है। अगर फेफड़े संक्रमित हुए हैं तो खांसी और सांस लेने में दिक्कत होगी। अगर लिवर संक्रमित हो तो जॉन्डिस या पीलिया हो सकता है। किसी जीवाणु से अगर दिमाग संक्रमित हो जाये तो, तो उलटी, बुखार, बेहोशी आना जैसे लक्षण हो सकते हैं।

    सक्रिय प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) के अंतर्गत कई ऐसे कोशिकाएं होते हैं जो बीमारी फ़ैलाने वाले जीवाणुओं को  नष्ट करने का काम करते हैं। इस प्रक्रिया को प्रज्वलन (inflammation) कहते हैं।

    इसके कारण कई शारीरिक प्रभाव पड़ते हैं, जैसे कि किसी अंग में दर्द उठना, बुखार, सूजन आदि। किसी किसी अवस्था में एक छोटे से संक्रमण के कारण बहुत बड़ा प्रभाव हो सकता हैं।

    उदाहरणस्वरूप HIV संक्रमण के अवस्था में वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली में प्रवेश कर उसको नष्ट करने का काम शुरू कर देता है। इससे HIV संक्रमित शरीर कई दूसरे बीमारियों का शिकार होने लगता है।

    कोई भी छोटा चोट या संक्रमण बड़े बीमारी का रूप ले सकता है। अगर खांसी हुई हो तो यह जल्द ही निमोनिया का रूप ले सकता है।

    इन बीमारियों को कम करने के लिए सबसे पहले इनके प्रभाव को कम करने कि कोशिश की जाती है। फिर इनको नष्ट करने का प्रयास किया जाता है|

    बीमारी के प्रभाव को कम करने के लिए पहले लक्षणों का इलाज किया जाता है। जैसे कि बुखार में हम दवाई लेते हैं और फिर आराम करते हैं ताकि हमारी ऊर्जा बनी रहे। बीमारी के लक्षणों को खत्म करने के लिए डॉक्टर एन्टीबाईयोटिक दवाइयां देते हैं।

    तीव्र एवं जीर्ण बीमारियां (Acute & Chronic Diseases in Hindi)

    कुछ बीमारियां थोड़े समय के लिए होती हैं एवं जल्द ठीक हो जाते हैं, इनको तीव्र (acute) बीमारियां कहा जाता है। जैसे कि सर्दी खांसी जल्द ही ठीक हो जाती है।

    कुछ बीमारियां जीवन भर ठीक नहीं हो पाती, इनको जीर्ण (chronic) बीमारियां कहा जाता है। जैसे कि एलिफेंटाइटिस।

    भारत में होने वाले कुछ बीमारियां (Some Diseases of India in Hindi)

    • आंत्रशोथ (Gastroenitis): इस बीमारी में शरीर के पाचन प्रणाली में संक्रमण हो जाता है। दस्त, उलटी, पेट दर्द, बुखार आदि इसके लक्षण हैं। बच्चों में इसके कारण निर्जलीकरण (dehydration) काफी होता है।
    • बालवक्र (Rickets):  बच्चों में यह बीमारी काफी मिलती है। इससे शरीर में विटामिन C की कमी हो जाती है, जो सूर्य की रौशनी पर्याप्त मात्रा में न मिलने से होता है। कैल्शियम की कमी से भी यह हो सकता है। यह एक ऐसी बीमारी है जिससे बच्चों के शरीर की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं।
    • Zoonotic बीमारियां: यह बीमारी जानवर से इंसानो में फैलती है और उन जगहों पर ज्यादा देखी जाती है जहां गरीबी हो। चिकेगुनिया, डेंगू, इन्फ्लुएंजा आदि इस बीमारी के उदहारण हैं।
    • अस्थमा: यह बीमारी उन जगहों पर ज्यादा होती है, जहां हवा प्रदूषण ज्यादा हो।

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