चीनी मूल के अमेरिकी प्रोफेसर के मुताबिक बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और सीपीईसी के साथ चीन कर्ज के जाल में फंस सकता है क्योंकि पाकिस्तान जैसे देशों में भारी निवेश असुरक्षित है। चीन की बीआरआई के अधिकतर साझेदार जोखिम भरे हैं इसमें पाकिस्तान भी शामिल है और इसका कारण उच्च राजनीति, अर्थव्यस्था और अन्य जोखिम है। इस मुल्क में शिक्षा का स्तर निम्न है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन के प्रोफेसर यशेंग हुआंग ने अपने हालिया लेख में लिखा कि “एक रिपोर्ट के मुताबिक साक्षरता में पाकिस्तान 221 देशों के सूची में 180 वें स्थान पर है। यह पाकिस्तान में चीनी निवेश को लाल ध्वज दिखाने के लिए पर्याप्त है क्योंकि अध्ययन के अनुसार ढांचों में निवेश से देशों में मानवीय संपत्ति के सिर्फ उच्च स्तरों में वृद्धि होती है।
हाल ही के एक आर्टिकल ‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट’ के बाबत प्रोफेसर ने कहा कि “कैंब्रिज के आलोचकों ने दावा किया कि चीन बीआरआई का इस्तेमाल देशों पर नियंत्रण के लिए कर्ज के जाल में फंसाने की कूटनीति के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। प्रोफेसर के मुताबिक यह जोखिम मीडिया का फैलाया हुआ है। बल्कि बीआरआई से चीन को खुद विभिन्न तरीके के नुकसान हो सकते हैं।”
हाल ही में आयोजिय बीआरआई समारोह ने चीनी राष्ट्रपति ने आलोचकों को कर्ज के जाल के बाबत जानकारी दी थी। उन्होंने कहा कि “उच्च गुणवत्ता का निर्माण, सतत, जोखिम प्रतिरोधी, वाजिब दाम और समावेशी ढांचा देशों को अपने संसाधनों को इस्तेमाल करने में मदद करेगा।”
यशेंग हुआंग ने कहा कि “अनाश्चर्चकित, बीआरआई के कुछ साझेदार देश शर्तो पर दोबारा बातचीत की मांग कर रहे हैं और वो भी तब जब प्रोजेक्ट शुरू हो चुका है। प्रोजेक्ट को पटरी पर जारी रखने के लिए चीन को मज़बूरन देशों को आधिक्य अनुकूल रिआयत देनी पड़ी थी।”
उदाहरण के तौर पर मलेशिया ने अप्रैल में चुनावो के बाद बीआरआई की परियोजना पर रोक लगाने का ऐलान किया था और बातचीत के बाद ही आगे बढ़ने की घोषणा की थी। मीडिया की खबरों के मुताबिक, निर्माण कार्य की कीमत को एक-तिहाई कम कर दिया गया था। बीआरआई के अन्य देश भी कर्ज से निजात के लिए मांग करेंगे और इस कीमत का भुगतान चीनी सरकार को उठाना होगा।
शुरूआती दौर में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं पर पैसा लगाना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण था। यह व्यापक यकीन है कि ढांचागत निवेश आर्थिक वृद्धि को मज़बूत करती है लेकिन इसे साबित करने के लिए सबूत बेहद कमजोर है। साल 1980 और 1990 के दशक में छोटे रेलवे ट्रैक होने के बावजूद चीन की रफ़्तार भारत से ज्यादा थी।
विश्व बैंक एक मुताबिक साल 1996 में चीन की 56678 किलोमीटर की रेलवे लाइन थी और भारत की 62915 किलोमीटर की थी। चीन की वृद्धि ने संरचनाओं की शुरुआत से उछाल नहीं मारी है बल्कि यह सुधार और मानवीय संपत्ति निवेश के कारण हुआ है।