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    बिहार की राजनीति में हकचलें: Nitish Kumar

    बिहार की राजनीति में हफ्ते भर से बदलाव के बादल छाए हुए थे, बस आँखे टकटकी बांधे इंतजार कर रही थी कि कब बारिश हो और सब धुल जाए…

    मीडिया हलकों में रह-रह कर यह सुगबुगाहट थी कि शायद फिर से नीतीश कुमार पाला बदल लें। लेकिन चूंकि वह नीतीश कुमार हैं, इसलिए पुख्ता तौर पर कोई कुछ नहीं कह रहा था। देश के वर्तमान राजनीति में नीतीश कुमार शायद एकमात्र मंझे हुए नेता हैं जिनके बारे में कहा जा सकता है कि मौन रहकर भी हवा का रुख बदल देते हैं।

    बिहार की राजनीति का क्रोनोलॉजी

    पूर्व जेडीयू नेता आरसीपी सिंह की पार्टी से जाने के बाद से ही यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि नीतीश कुमार इस NDA गठबंधन की सरकार में कहीं ना कहीं दवाब महसूस कर रहे हैं। बीते दिन जेडीयू के प्रमुख नेता लल्लन सिंह का बयान इस संदर्भ में और बल देता है।

    कल यानि 08 अगस्त से ही बिहार की राजनीति में हकचलें तेज होने लगी और “सूत्रों” के हवाले से मीडिया में यह खबर चला दी गई कि नीतीश कुमार कल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे सकते हैं।

    09 अगस्त की सुबह जब पटना की जनता ने आँख खोले तो वहाँ सड़कों पर विभिन्न पार्टी के नेताओं की गाड़ियों का काफिला अपने-अपने कुनबे में जा रहा था और राष्ट्रीय तथा लोकल मीडिया का जमावड़ा विभिन्न चौराहों पर लगने लगा था।

    उधर 09 अगस्त की सुबह से ही बिहार के सभी राजनीतिक दलों ने अपने अपने विधायकों (MLAs) को पटना बुलाकर आगे की रणनीति पर चर्चा शुरू कर दी।

    इसमें सबसे महत्वपूर्ण थी राजद के विधायकों की बैठक जो पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी के आवास पर हुई। फिर वही “सूत्रों” के हवाले से यह ख़बर मीडिया और सोशल मीडिया पर चलने लगी कि राजद विधायकों ने सर्वसम्मति से यह तय किया है कि अगर जेडीयू बीजेपी गठबंधन टूटता है तो बिना शर्त नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार को समर्थन देंगे।

    पहले खबर चली कि नीतीश कुमार भाजपा का साथ नहीं छोड़ेंगे और मुख्यमंत्री बने रहेंगे। साथ ही यह भी कहा गया कि पार्टी के नेताओं का बयान और यह सब तमाम बखेड़े इसलिए खड़े किए गए ताकि केंद्र की भाजपा सरकार पर दवाब बनाया जा सके।

    एक पक्ष यह भी कह रहा था कि जिस तरह से केंद्र की भाजपा सरकार केंद्रीय एजेंसियों जैसे ED , NIA आदि का इस्तेमाल दूसरे राजनीतिक दलों पर कर रही है, उसको रोकने के लिए नीतीश कुमार ने यह कदम उठाया ताकि बिहार अगला “महाराष्ट्र” न बन जाये।

    लेकिन दोपहर होते होते यह दोनों दावे कमजोर पड़ने लगे और यह कहा जाने लगा कि बिहार में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन कुछ घंटों का मेहमान है।

    इसी सिलसिले में समाचार एजेंसी ANI के अनुसार नीतीश कुमार ने बिहार के राज्यपाल फागु चौहान से मिलने का समय मांगा। इसे एक स्पष्ट संकेत माना जा रहा था कि जेडीयू बीजेपी गठबंधन टूटने के कगार पर है और फिर से चाचा-भतीजे की जोड़ी सत्ता में दिख सकती है।

    फिर दिन के 1:20 दोपहर में यह खबर आ गई कि बिहार में बीजेपी जेडीयू गठबंधन टूट गया है और शाम 4 बजे तक नीतीश कुमार राजद और कांग्रेस के विधायकों के समर्थन पत्र के साथ राज्यपाल से मिलेंगे।

    …तो फिर से बिहार के मुख्यमंत्री होंगे नीतीश कुमार?

    जैसा कि राबड़ी देवी के आवास पर हुए राजद विधायकों की बैठक में यह में यह तय किया गया कि राजद नीतीश कुमार को बतौर मुख्यमंत्री बिना शर्त समर्थन देगी और वह महागठबंधन का चेहरा होंगे।

    यहाँ यह स्पष्ट कर दें कि राजद इस समय बिहार राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है और संख्याबल में नीतीश की जेडीयू से कहीं आगे है। लेकिन यहाँ भी समीकरण वही है जो जेडीयू-बीजेपी गठबंधन में था और उसके आधार पर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया था।

    कांग्रेस, लोजपा (चिराग पासवान का धड़ा) और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों का भी समर्थन राजद महागठबंधन को प्राप्त है, ऐसे में यह कहा जा सकता है कि भाजपा का जो दाव देश भर के अन्य राज्यों में चल गया था, यहाँ शायद थोड़ा मुश्किल है।

    2024 में PM पद के लिए विपक्ष का चेहरा हो सकते हैं नीतीश?

    “चाचा” वही जो “भतीजा” मन भाये…. “चाचा” यानि नीतीश कुमार और “भतीजा” तेजस्वी यादव की केमिस्ट्री तब भी अच्छी ही थी जब पिछली दफ़ा नीतीश कुमार ने NDA का साथ छोडकर JDU+RJD+Congress+Others वाली महागठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

    तब अटकलें लगाई जा रही थीं कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ विपक्ष का चेहरा हो सकते हैं और तब उनके दावेदारी पर राजद ने बिना शर्त हामी भरी थी; लेकिन ऐसा ही न सका था। यह नीतीश कुमार ही थे जिसने खुद को राजद गठबंधन से अलग किया था और बीजेपी के साथ सरकार बना लिया था।

    जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार ने हवा का रुख पकड़ लिया था और उन्हें मोदी की जीत का अंदाजा हो गया था। इसलिए वह खुद को बिहार में ही सीमित रखना चाहते थे।

    हालात आज भी कुछ कुछ वैसे ही हैं। आज विपक्ष ने खासकर कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेर रखा है। महँगाई, रसोई गैस व पेट्रोल की कीमतें, बेरोजगारी आदि तमाम मुद्दों पर भाजपा सरकार बैकफुट पर है।

    2024 के चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है ऐसे में विपक्ष को एक ऐसा चेहरा चाहिए जिसकी पैठ भारत के हर पार्टी में हो और बेदाग राजनीतिक चेहरा रहा हो। नीतीश कुमार इस तरह के ही नेता माने जाते हैं जजिन्हें सुदूर उत्तर पूर्व से लेकर दक्षिण तक समर्थन मिल सकता है।

    राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवारों को ममता बनर्जी जैसे विपक्षी नेताओं ने जिस तरह से समर्थन नहीं दिया, नीतीश कुमार के नाम पर शायद यह समर्थन विपक्ष हासिल कर सकता है।

    ऐसे में नीतीश कुमार का भाजपा को छोड़कर जाना न सिर्फ बिहार बल्कि देश की राजनीति के लिए आगामी भविष्य के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। हालाँकि अभी सब कुछ बस अटकलबाजी है क्योंकि हमारे बिहार में कहते हैं नीतीश कुमार के राजनीतिक दाव भगवान को भी नहीं पता होता।

    लेकिन कहते हैं न कि धुआं वहीं उठता है जहाँ आग हो। उम्मीद है आज (यानी 09 अगस्त) शाम तक या कल सुबह बिहार की राजनीति में फिर एक बदलाव देखने को मिले और फिर से चाचा-भतीजे की जोड़ी सत्ता में आसीन होगी।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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