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    पटना, 9 जुलाई (आईएएनएस)| दुनिया के दुर्लभ प्राणियों में से एक और विलुप्तप्राय होती जा रही डॉल्फिनों की संख्या बढ़ाने और उसके संवद्र्घन के लिए सरकार प्रदेश की राजधानी पटना में डॉल्फिन शोध संस्थान खोलने जा रही है।

    हाल ही में कराए गए सर्वेक्षण में गंगा, गंडक, कोसी और महानंदा नदी में 1548 गांगेय डॉल्फिन (सोंस) पाई गईं हैं। डॉल्फिन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने वर्ष 1991 में बिहार में सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव तक के करीब 60 किलोमीटर क्षेत्र को ‘गैंगेटिक रिवर डॉल्फिन संरक्षित क्षेत्र’ घोषित किया था।

    बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अक्टूबर में विश्व डॉल्फिन दिवस के मौके पर पटना विश्वविद्यालय परिसर में 19.96 करोड़ रुपये की लागत से ‘राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध संस्थान’ का शिलान्यास किया जाएगा।

    उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसका शिलान्यास करेंगे। इस शोध संस्थान में डॉल्फिन और उसकी कुछ प्रजातियों को बचाने का तरीका खोजा जाएगा।

    उप मुख्यमंत्री ने कहा कि हाल में कराए गए सर्वेक्षण में गंगा, गंडक, कोसी और महानंदा में 1548 गांगेय डॉल्फिन (सोंस) पाई गई हैं। सुल्तानगंज-कहलगांव के बीच गंगा में विक्रमशिला डॉल्फिन आश्रयणी बनाया जा रहा है। सुल्तानगंज-अगुवानी घाट पुल के बीच दर्शक डॉल्फिन की उछल-कूद देख सकेंगे।

    गैंगेटिक डॉल्फिन स्वच्छ पानी में पाई जाने वालीं चार प्रजातियों में एक हैं। डॉल्फिन स्तनधारी जीव है जो सिटेसिया समूह का एक सदस्य है। आम बोलचाल की भाषा में सोंस और संसू कहे जाने वाले डल्फिन को ‘गंगा की गाय’ नाम से भी जाना जाता है।

    उल्लेखनीय है गंगा में जलस्तर घटने व उसमें गंदगी को लेकर पर्यावरण वैज्ञानिकों ने भी समय-समय पर डॉल्फिन को लेकर चिंता प्रकट की है। जलस्तर घटने पर डॉल्फिनों के शिकार की आशंका बढ़ जाती है।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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