Sat. Nov 23rd, 2024
    nitish kumar

    पटना, 31 जुलाई (आईएएनएस)| बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में अपेक्षाकृत कमजोर नजर आ रहे राजद के वोटबैंक में सेंधमारी तैयारी प्रारंभ हो गई है। मुस्लिम और यादव (एमवाई) समुदाय को आमतौर पर राजद का वोटबैंक माना जाता है।

    ऐसे में जद (यू) राजद के इसी वोटबैंक में सेंध लगाने की जुगत में है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी जद (यू) ने जहां लोकसभा और राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक के विरोध में सदन से बहिर्गमन किया, वहीं एक सप्ताह पूर्व बाढ़ प्रभावित इलाकों के दौरे के क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर अचानक पहुंचकर गुफ्तगू की।

    इसके अलावा कुछ ही दिन पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता तथा लालू प्रसाद के सहयोगी मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने राजद की ‘लालटेन’ छोड़कर जद (यू) का ‘तीर’ थाम लिया। ये तीनों खबरें न केवल अखबार की सुर्खियां बनीं, बल्कि इससे सियासी मैदान में इस कयास को बल मिला कि जद (यू) की नजर राजद के वोटबैंक पर है।

    वैसे कहा जा रहा है कि उक्त तीनों खबरों का संबंध प्रत्यक्ष तौर पर जद (यू) से है। किन्तु इसका सबसे ज्यादा असर राजद पर पड़ता नजर आ रहा है।

    राजनीतिक समीक्षक सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में राजद कमजोर हुआ है, इसे कोई नकार नहीं सकता। उन्होंने कहा कि “फातमी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के नजदीकी रहे हैं और प्रारंभ से ही स्वभिमानी व्यक्ति रहे हैं। राजद में जिस तरह की स्थ्िित है, उसे वह झेल नहीं पाए और उन्होंने पाला बदल लिया।”

    किशोर कहते हैं, “राजनीति में वोटबैंक किसी की मिल्कियत नहीं होती। कोई भी दल कमजोर होगा तो मतदाता उससे छिटकेंगे और दूसरे दल उसे रोकेंगे। यही हाल आज बिहार में है। हालांकि इसके लिए 2020 के विधानसभा चुनाव का इंतजार करना होगा।”

    राजद के नेता इसे वोटबैंक में सेंध से जोड़कर देखना सही नहीं मानते। राजद के विधायक भाई वीरेंद्र कहते हैं, “मुख्यमंत्री दरभंगा में बाढ़ प्रभावित इलाकों को देखने और पीड़ितों से मिलने गए थे। वहीं से सिद्दीकी साहब भी हैं। सिद्दीकी साहब मुख्यमंत्री के साथ मिलकर काम कर चुके हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री उनके घर चले गए और चाय पी। इसे किसी राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।”

    उन्होंने दावा किया कि राजद आज भी राज्य में सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी है।

    वैसे, राजद के एक नेता का कहना है कि पार्टी को यह पता है कि बिहार में मुस्लिम नेताओं की लंबी सूची सिर्फ राजद और कांग्रेस के पास है। जद (यू) के पास अभी तक कोई कद्दावर मुस्लिम नेता नहीं है, इसलिए वह इस सूची को लंबा करना चाहेगा। जद (यू) की कोशिशों का अंदाजा उन्हें भी है। फातमी के जाने के बाद राजद भी अपने मुस्लिमत नेताओं की हिफाजत में जुटा है।

    नेता का कहना है कि यही कारण है कि पार्टी में मुस्लिम नेताओं की पूछ बढ़ाई जा रही है।

    पटना के वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा कहते हैं कि सभी दल अपना वोटबैंक बनाते हैं। लेकिन जद (यू) को राजद के मुस्लिम वोटबैंक में पूरी तरह सेंध लगाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि जद (यू) ऐसे निर्णय से भले ही राजग में रहकर भाजपा से अलग दिखने की कोशिश कर रहा है, परंतु भाजपा के साथ रहने के बाद बिहार के मुस्लिम वोटबैंक में किसी भी पार्टी को सेंध लगाना आसान नहीं है। उन्होंने हालांकि इतना जरूर कहा कि इससे जद (यू) भाजपा पर दबाव बनाने की स्थिति में जरूर रहेगा।

    बहरहाल, बिहार में लोकसभा चुनाव में राजद को एक भी सीट नहीं मिलने और लालू की गैर मौजूदगी में जो खालीपन हुआ है, नीतीश उसे ही राजद के मुस्लिम वोटबैंक के जरिए भरना चाह रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा के साथ रहकर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सहित 19 संगठनों की जांच कराकर नीतीश यह जताना चाहते हैं कि बिहार में अब मुसलमानों के असली रक्षक वह भी हैं।

    कुल मिलाकर, अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले बिहार की सियासत में कई उठापटक देखने को मिल सकते हैं, परंतु कौन कितने फायदे में रहेगा, यह कहना अभी कठिन है।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *