पटना, 7 जून (आईएएनएस)| बिहार के मिथिलांचल में सदियों पुरानी परंपरा के तहत आयोजित होनेवाली ‘सौराठ सभा’ इस वर्ष 21 जून से शुरू होगी। मधुबनी जिले के सौराठ गांव में आम के बगीचे में लगने वाली इस सभा में सुयोग्य वर-वधू की तलाश की जाती है। पसंद आने पर पंजीकार सात पीढ़ियों तक की पंजियां देखकर ‘अधिकार’ जांचते हैं, ताकि वर-कन्या का विवाह समान गोत्र में न हो।
आमतौर पर प्रतिवर्ष जून-जुलाई में लगने वाला यह वार्षिक वैवाहिक सभा 10 दिनों तक चलता है। मजेदार बात यह कि सौराठ गुजरात के ‘सौराष्ट्र’ का अपभ्रंश है और सौराष्ट्र की तरह यहां सोमनाथ मंदिर भी है। सौराठ सभा को ‘सभागाछी’ के रूप में भी जाना जाता है।
युग बदलने के साथ हाल के वर्षो में सौराठ सभा की चमक फीकी पड़ती जा रही थी। इसकी चमक लौटाने के प्रयास में जुटे मिथिलालोक फाउंडेशन के प्रमुख डॉ़ बीरबल झा ने बताया, “मिथिलांचल में प्रचीनकाल से ही वैवाहिक संबंधों के समुचित समाधान के लिए विवाह योग्य वर-वधू की एक वार्षिक सभा शुभ मुहूर्त (लगन) के दिनों में लगाया जाता रहा है। सौराठ सभा का उद्देश्य संबंधों की सामाजिक शुचिता को बनाए रखने के लिए समगोत्री विवाह को रोकना, दहेज-प्रथा का उन्मूलन तथा वर-वधू के सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए वैवाहिक सबंधों को स्वीकृति देना था।”
उन्होंने कहा कि इस वर्ष 21 जून से 30 जून तक सौराठ सभा का आयोजन होगा, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने की संभावना है।
परंपरा को भूल रहे लोगों को प्रेरित करने के लिए वर्ष 2017 में मिथिलालोक फाउंडेशन के तत्वावधान में एक विशेष पहल चलाया गया था जिसका नाम ‘चलू सभा अभियान’ रखा गया था। इसका अच्छा परिणाम सामने आया। उस वर्ष ब्राह्मण समाज के 364 वर-कन्याओं का ‘आदर्श विवाह’ यानी बिना दहेज का विवाह हुआ था।
डॉ़ झा ने बताया कि इस सभा में केवल वर उम्मीदवारों की उपस्थिति की प्रथा रही है। सीता स्वयंवर की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि त्रेता युग में सीता का स्वयंवर कराया गया था।
डॉ़ झा ने कहा, “मैंने तर्कसंगत एवं समयानुकूल गीत ‘प्रीतम नेने चलू हमरो सौराठ सभा यौ’ की रचना की है, जिसका परिणाम काफी दूरगामी होने वाला है।”