Bilkis Bano Case in News: स्वंतत्रता दिवस के उपलक्ष्य में गुजरात की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने केस (Bilkis Bano Case) में उम्र-कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों की गोधरा जेल से रिहाई की मंजूरी दे दी।
सरकार के तरफ से एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह घोषणा की कि राज्य सरकार इन दोषियों को “आयु, अपराध की प्रवृत्ति, और सजा के दौरान इनके व्यवहार” को आधार मानकर जेल से रिहा करने की मंजूरी दे रही है। ये सभी अभियुक्त पिछले 14 साल से जेल में पहले ही बंद रहे हैं।
गोधरा कांड के इतिहास और भूगोल में ना जाते हुए इस बात को अगर ध्यान में रखा जाए कि ये सभी अपराधी एक महिला से बलात्कार और परिवार के 14 निर्दोष लोगों की हत्या जिसमें एक 3 साल की बच्ची की भी हत्या की गई थी, के आरोप में दोषी सिद्ध हुए थे।
इसी को लेकर सारा बवाल और सवाल है कि आखिर राज्य सरकार के जिस कमिटी ने इन्हें जेल से रिहा करने का निर्णय लिया है, उन्हें “अपराध की प्रवृति” को आधार मानते हुए कैसे यह निर्णय लिया कि इन बलात्कारियों को रिहा किया जाय?
लाल किले से PM ने की थी महिला सम्मान की बात
विडंबना देखिये कि इधर अभी 15 अगस्त की सुबह ही ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से दिए अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला सम्मान पर विशेष जोर दिया था और उधर शाम होते-होते उनके ही गृह राज्य में उनकी ही पार्टी की सरकार ने बिलकिस बानो मामले के सज़ायाफ्ता दोषियों को रिहा करने का फैसला सामने रख दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में देश की जनता से यह अपील की थी कि नारीशक्ति का सम्मान करें और राष्ट्र निर्माण में महिलाओं के योगदान को उनका सशक्तिकरण कर सुनिश्चित करें।
Emphasising on dignity of Nari Shakti. #IDAY2022 pic.twitter.com/QvVumxi3lU
— PMO India (@PMOIndia) August 15, 2022
उनके भाषणों के आईने में अगर गुजरात सरकार द्वारा एक महिला के बलात्कारियों और 3 साल की मासूम बच्ची सहित 14 निर्दोष लोगों के हत्यारों को “अपराध की प्रवृत्ति” को (अन्य आधारों के साथ एक) आधार मानते हुए जेल से आज़ादी देने का फैसला रखा जाए तो यही कहा जा सकता है कि, काश! लाल किले से प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण को उनके ही गृह राज्य में उनकी ही पार्टी के लोग जो सत्ता में हैं, सुन पाते….
बिलकिस बानो केस और कोर्ट का फैसला
2002 में जब आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस दौरान गुजरात मे हुए सम्प्रदायिक दंगो में बिलकिस बानो नाम की एक महिला जो उस वक़्त 5 महीने की गर्भ से वभी थी, अपने परिवार के साथ उंस वक़्त भाग निकलने की कोशिश की जब हथियार बंद दंगाइयों ने उसके पड़ोसी के घर पर हमला बोला।
वह और उसका परिवार एक खेत मे जा छुपे थे जब हाथों में तलवार, डंडा तथा अन्य हथियार लिए बलवाइयों का एक झुंड वहाँ आ पहुंचा और इन लोगों पर हमला कर दिया। परिवार के 7 लोगों की मृत्यु वहीं घटनास्थल पर ही हो गई।
इस पूरे कांड के बर्बरता का अंदाजा लगा सकते हैं तो लगाइए कि 3 साल की बच्ची को उठाकर पास में पड़े चट्टान पर पटक पटक कर मार दिया गया। फिर बिलकिस बानो के साथ इन इंसान के रूप में जानवरों ने सामूहिक बलात्कर किया।
बिलकिस बानो किसी तरह जिंदा बची और गाँव के अन्य लोगों के साथ पुलिस के पास पहुँची। लगभग 1 साल तक छानबीन के नाम पर गुजरात पुलिस ने मामले को ढंकने का प्रयास किया लेकिन पब्लिक दबाव के बाद पुलिस से आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया।
2008 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने कुछ लोगों को सबूत के अभाव में छोड़ दिया वहीं कुछ आरोपियों को बिलकिस बानो केस में सामूहिक बलात्कर, हत्या तथा गर्भवती महिला के साथ बलात्कर की साजिश का दोषी पाया।
इन दोषियों को इसी स्पेशल कोर्ट ने उपरोक्त अपराधों के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई जिसे बाद में 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।
एक इंसान के तौर पर कल्पना करना मुश्किल है कि उस वक़्त या उसके बाद भी बिलकिस बानो या ऐसी अन्य कोई भी महिला किस मानसिक हालात और पीड़ा से गुजर रही होगी।
अन्य बिंदुओं के साथ अपराध की प्रवृति को भी एक आधार मान कर इन दंगाइयों, बलात्कारियों और निर्मम हत्यारों को जेल से रिहा करने वाली गुजरात सरकार क्या अपने ही पार्टी के शीर्षस्थ नेता यानि प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों को कोरा नहीं साबित कर रही है?
और फिर क्या PM मोदी जिस राष्ट्रनिर्माण में नारीशक्ति के योगदान और सम्मान की बात कर रहे थे, गुजरात सरकार का यह निर्णय उसको मुँह चिढ़ाता हुआ निर्णय नहीं है?
ऐसे तमाम सवाल हैं जिसके जवाब न सिर्फ राजनीति जीत हार के समीकरण को दुरुस्त करने वाली सरकारों को देना चाहिए बल्कि एक सवाल हमें आपको और देश के हर नागरिक को खुद से भी और एक दूसरे से भी पूछना चाहिए कि क्या हम एक समाज ले तौर पर बिलकिस बानो के साथ न्याय कर रहे हैं?