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    weavers in benaras

    वाराणसी, 20 मई (आईएएनएस)| जब पूरा बनारस इस सप्ताह के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी बार ताजपोशी की तैयारी में जुटा है, शहर के बुनकर बिजली की समस्या को लेकर चिंतित हैं। बिजली संकट के कारण उनके कारोबार में गिरावट आई है और उनके सामने आजीविका की समस्या उत्पन्न हो रही है।

    अधिकांश बुनकर मुस्लिम समुदाय से हैं, जो अपनी समस्या के बारे में बात करने में भी एहतियात बरतते हैं।

    लंका क्षेत्र में अपनी दुकान बंद करने की योजना बना रहे रफीक अंसारी ने कहा, “पहले नोटबंदी ने हमें मारा, और उसके बाद जीएसटी आ गया और फिर अब बिजली हमारे कारोबार के लिए आफत बन गई है। हमारी जिंदगी का ताना-बाना ही बिगड़ गया है।”

    रफीक ने कहा कि यहां के बुनकर इस समस्या पर बात करने के लिए भी तैयार नहीं हैं, क्योंकि पूरा माहौल राजनीति के आसपास घूम रहा है।

    उन्होंने बताया, “अगर हम कुछ कहेंगे तो हमें ‘राष्ट्र-विरोधी’ का तमगा थमा दिया जाएगा। हमने चुप रहने का निर्णय लिया है। वाराणसी में बिजली कटौती एक नियम बन गया है। चूंकि मुस्लिम मुहल्लों में मिश्रित आबादी वाले मुहल्लों की तुलना में अधिक बिजली कटौती होती है, लिहाजा हम वस्तुस्थिति को समझ सकते हैं।”

    रफीक ने कहा कि क्षेत्र में खराब इंटरनेट सेवा से भी ऑनलाइन व्यापार को हानि पहुंची है।

    उन्होंने कहा, “नोटबंदी के पहले, खरीदारों और विक्रेताओं सभी के लिए व्यापार अच्छा था। नोटबंदी के बाद खरीदारों ने आना बंद कर दिया और जीएसटी ने बनारसी साड़ी और सामग्री के निर्यात को झटका दिया।”

    अधिकतर बुनकर चूंकि अशिक्षित और कंप्यूटर चलाने के अभ्यस्त नहीं हैं, इसलिए उन्हें सीए के लिए अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है, जो उन्हें जीएसटी रिटर्न भरने में मदद करते हैं।

    रफीक के छोटे भाई शादाब अंसारी ने कहा कि बुनकर समुदाय ने 2009 में बनारसी साड़ी और सामग्री के लिए भौगोलिक सूचकांक(जीआई) प्राप्त किया था।

    शादाब ने कहा, “हमारे यहां सब्यसाची और तरुण तहलियानी जैसे डिजाइनर आते थे और हमारी साड़ी और सामग्री खरीदते थे। हमारा व्यापार जबरदस्त चल रहा था, हमें श्रेय भी मिल रहा था। लेकिन अब व्यापार अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। कोई भी बिजली कटौती की बात नहीं करता, क्योंकि हर कोई यह विश्वास करना चाहता है कि प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र दुनिया में सबसे बेहतरीन है।”

    अधिकतर बुनकरों का कहना है कि जनरेटर को विकल्प के रूप में अपनाना फायदेमंद सौदा नहीं है, क्योंकि उत्पादन लागत में बढ़ जाती है।

    उन्होंने कहा कि वाराणसी में व्यापार को फायदा पहुंचाने के लिए निर्मित दीनदयाल हस्तकला संकुल इसके उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाया।

    आजमगढ़ के मुबारकपुर के निवासी और यहां 1980 से रह रहे रहमतुल्लाह अंसारी ने कहा, “वाराणसी में बुनकरों को बढ़ावा देने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया। देश के विभिन्न भागों में खरीदारों के साथ सीधे सौदा करना हमारे लिए आसान होता है। व्यापार को इतने बड़े पैमाने पर हानि हुई है कि हमारे दो पोते नौकरी खोजने के लिए पहले ही मुंबई जा चुके हैं।”

    उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि अगले दशक और उसके आगे, अधिकतर बुनकर परिवार इस पेशे को छोड़ देंगे।

    यह सुनने में आश्चर्य लगेगा, लेकिन ‘नमामि गंगे’ परियोजना भी बुनकरों के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ है।

    एक बुनकर ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, “हमें रंग भी गंगा में प्रवाहित करने की इजाजत नहीं है और सरकार ने फिल्टर संयंत्र नहीं लगाए हैं। किसी को भी नदी में रंग को प्रवाहित करते देख तत्काल जुर्माना लगाया जाता है। जुर्माना ज्यादा होता है, अगर बुनकर मुस्लिम हों। मगर हम रो भी नहीं सकते।”

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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