सरयू नदी के तट पर बसा अयोध्या 1980 के दशक तक साल या दो साल में सिर्फ एक बार चर्चा में आता था। जब मानसून के दिनों में नेपाल से आने वाली नदियों में बाढ़ आती थी। या फिर पांच सालों में चुनाव आने के बाद जब कम्युनिस्ट पार्टी अयोध्या और फ़ैजाबाद को लाल रंग से रंग देती थी। कई सालों तक कम्युनिस्टों ने अपना दबदबा कायम रखा।
लेकिन सब कुछ जल्द ही बदलने वाला था। इस बदलाव की हलचल दक्षिण भारत से आने लगी थी। 1981 में मीनाक्षीपुरम गांव में 200 दलित परिवारों ने जाति भेदभाव के चलते इस्लाम धर्म कबूल कर लिया। ठीक इस घटना के कुछ ही दिन बाद शुरू हुआ वह सिलसिला, जिसका परिणाम बाबरी विध्वंस के साथ ख़तम हुआ। इस घटना ने भारतीय राजनीति को बुरी तरह प्रभावित कर दिया। अयोध्या मामले को लेकर काफी समय से खींचातानी चली आ रही थी। दो समुदाय के बीच इस मामले को लेकर दूरियां दिन प्रतिदिन बढ़ती दिख रही थी।
6 दिसम्बर 1992 का दिन जोकि भारत के लिए एक काले साये की तरह था, वह दिन भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया जिसे आज भी लोग भुला नहीं पाए है। तभी से इस विवाद के बीच कशमकश अभी तक जारी है। अयोध्या पर छाये काले साये वाले इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में माथापच्ची हुई है। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दी गई कई याचिकाओं पर सुनवाई हुई। लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला। सुप्रीम कोर्ट में दस्तावेजों की कमी के कारण शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई को 8 फरवरी 2018 तक टाल दिया है। बता दें कि इस मामले में सबसे पहले इलाहबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था। 2010 में इस हुए इस फैसले से दोनों समुदाय के लोग सहमत नहीं थे। इलाहबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को तीन हिस्सों (हिन्दू महासभा, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड) में बाँट दिया था। लेकिन इस फैसले से नाखुश तीनो पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जिस पर शीर्ष कोर्ट ने बाबरी विध्वंश की 25 वीं बर्षगांठ के एक दिन पहले इस फैसले पर सुनवाई की। इस मामले की सुनवाई प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय की विशेष पीठ कर रही है। यह पीठ इलाहबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई कर रही है।
वहीँ इस मामले में अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी, राजीव धवन और सुशील जैन कर रहे है। वहीं भगवान् रामलला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण, सी एस वैधनाथं और अधिवक्ता सौरभ शमशेरी पेश हुए है। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता को पेश किया गया है। मंगलवार को हुए इस फैसले पर दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष न्यायालय ने 8 फरवरी 2018 की तारीख मुक्कमल कर दी है।
बाबरी मस्जिद गिराए जाने के आज 25 साल पूरे हो गए। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई थी, जिसका मुकदमा आज भी लंबित है। इस मौके को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने शौर्य दिवस यानी विजय दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया है। वहीं, मुस्लिम संगठनों ने इस दिन को यौम-ए-गम यानी दुख का दिन के तौर पर मनाने का एलान किया है। ऐसे में किसी प्रकार की अनहोनी ना हो, इसके मद्देनजर केंद्र सरकार के आदेश जारी करने के बाद फ़ैजाबाद और अयोध्या में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गए है। पुलिस के साथ-साथ संवेदनशील इलाकों में सीआरपीएफ और आरएएफ की भी तैनाती की गई है। गाड़ियों, होटलों की तलाशी ली जा रही है।
भले ही अयोध्या मामले का इतिहास पुराना हो, इस विवाद की वजह भी सैकड़ों साल पुरानी है। जानिए आखिर कब शुरू हुई बाबरी विवाद की कहानी और इस घटनाक्रम में क्या क्या नए मोड़ आये है।
1528: अयोध्या में बाबर ने एक ऐसी जगह मस्जिद का निर्माण कराया जिसे हिंदू राम जन्म भूमि मानते हैं।
1853: हिंदुओं का आरोप- मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। पहला हिंदू-मुस्लिम संघर्ष हुआ।
1859: ब्रिटिश सरकार ने विवादित भूमि को बांटकर आंतरिक और बाहरी परिसर बनाए।
1885: राम के नाम पर इस साल कानूनी लड़ाई शुरू हुई। महंत रघुबर दास ने राम मंदिर निर्माण के लिए इजाजत मांगी।
1949: 23 दिसंबर को लगभग 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल में भगवान राम की मूर्ति रखी।
1950: 16 जनवरी को एक अपील में मूर्ति को विवादित स्थल से हटाने से न्यायिक रोक की मांग।
1950: 5 दिसंबर को मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया और राममूर्ति रखने के लिए केस किया।
1959: 17 दिसंबर को निर्मोही अखाड़ा विवाद में कूदा, विवादित स्थल के लिए मुकदमा दायर।
1961: 18 दिसंबर को सुन्नी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मालिकाना हक के लिए केस किया।
1984: विश्व हिंदू परिषद विशाल मंदिर निर्माण और मंदिर के ताले खोलने के लिए अभियान शुरू।
1986: 1 फरवरी फैजावाद जिला अदालत ने विवादित स्थल में हिंदुओं को पूजा की अनुमति दे दी।
1989: जून में भारतीय जनता पार्टी ने मंदिर आंदोलन में वीएचपी का समर्थन किया।
1989: 1 जुलाई को मामले में पांचवा मुकदमा दाखिल हुआ।
1989: नवंबर 9 को बाबरी के नजदीक शिलान्यास की परमीशन दी गई।
1990: 25 सितंबर को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा की। जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।
1990: नवंबर में आडवाणी गिरफ्तार। भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
1991: अक्टूबर में कल्याण सिंह सरकार ने विवादित क्षेत्र को कब्जे में ले लिया।
1992: 6 दिसंबर को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। एक अस्थाई मंदिर बनाया गया।
1992: 16 दिसंबर को तोड़फोड़ की जांच के लिए एस.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।
2002: तत्कालीन पीएम अटल बिहारी बाजपेई ने विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या विभाग शुरू किया।
2002: अप्रैल में विवादित स्थल पर मालिकाना हक के लिए हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।
मस्जिद के नीचे कुछ अवशेष मिले
2003: मार्च से अगस्त तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद विवादित स्थल पर खुदाई हुई और मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष के प्रमाण मिले।
2003: सितंबर में सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाने का फैसला दिया गया।
2005: जुलाई में विवादित क्षेत्र पर इस्लामिक आतंकवादियों का हमला, पांच आतंकी मारे गए।
2009: जुलाई में पीएम मनमोहन सिंह को लिब्रहान आयोग ने रिपोर्ट सौंपी।
2010: 28 सितंबर को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की।
2010: 30 सितंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया।
2017: 21 मार्च सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता की पेशकश की।
शीर्ष कोर्ट ने इस मामले में दस्तावेजों की कमी होने के कारण सुनवाई को 8 फरवरी 2018 तक स्थगित कर दिया है। तीन सदस्यीय पीठ ने इस फैसले पर मुहर लगायी है।