बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन ने विदेशी सरजमीं में निर्वासन के 25 वर्ष पूरे कर लिए हैं। उन्होंने मंगलवार को ट्वीट कर कहा कि “25 साल, हाँ 25 साल। मैं निर्वासन में 25 वर्षों को गुजार लिया है।” उनका जन्म बांग्लादेश, तब पूर्वी पकिक्स्तान में 25 अगस्त 1962 में हुआ था।
साल 1994 में उन्हें मजबूर बंगाल्देशी सरजमीं छोड़नी पड़ी क्योंकि उनके अपनी किताब “लज्जा” के लिए कट्टरपंथी मुस्लिम समूह लगातार धमकिय दे रहे थे। इस किताब में एक बांग्लादेश में जीवन यापन कर रहे एक हिन्दू परिवार की व्यथा को व्यक्त किया गया था, जिसमे नकी हत्या कर दी जाती है और यह किताब बाद में विवादों से घिर गयी थी।
लज्जा के प्रकाशन के दौरान उन पर कई जानलेवा हमले किये गए थे। बांग्लादेश से भागने के बाद नसरीन ने स्वीडन की नागरिकता ले ली थी। अपने जीवन पर मंडराते खतरे के बावजूद लेखिका ने इस्लामिक विचारधारा के खिलाफ लिखना जारी रखा है।
नसरीन के लेखों ने बांग्लादेश और समस्त विश्व के मुस्लिमों को नाराज़ किया है। निर्वासित लेखिका कई वर्ष अमेरिका और यूरोप में भी रही थी। साल 2004 से 2007 तक नसरीन कोलकता में भी रही थी लेकिन कट्टरपंथी मुस्लिम समूहों की मांग के कारण उन्हें मजबूरन भारत छोड़ना पड़ा था।
हालाँकि वह मौजूदा समय में साल 2011 से नई दिल्ली में रहती हैं। कई मौको पर नसरीन ने भारत की स्थायी नागरिकता पाने की अपनी इच्छा को जाहिर किया है। साल 2004 से उनके भारतीय वीजा को मंज़ूरी दी गयी थी, वह तब से भारत में रहती हैं।
बंगलादेशी लेखिका महिलाओं के अधिकारों, विचारों की आज़ादी और मानव अधिकार की मुखर समर्थक है। लेखिका होने के आलावा वह एक फिजिशियन भी हैं। उन्होंने बांग्लादेश में अपने शुरूआती सालो में मेडिसिन की शिक्षा ग्रहण की थी।