संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में फ्रांस के स्थायी राजदूत ने कहा कि ” भारत सहित जर्मनी, ब्राज़ील और जापान को यूएन की स्थायी सदस्यता की बिलकुल जरुरत है ताकि समकालीन वास्तविकताओं को बेहतरी से प्रदर्शित किया जा सके। यूएन के उच्च स्तर पर इन देशों की मौजूदगी फ्रांस की प्राथमिक रणनीतिक प्राथमिकताओं में से एक है।”
फ्रांस के स्थायी राजदूत फ्रांकोइस डेलटरे ने पत्रकारों से कहा कि “पॉलिसी के तहत, फ्रांस और जर्मनी के बीच मज़बूत नीति है जिस पर सुरक्षा परिषद् का विस्तार करने पर एकजुट होकर कार्य किया जा रहा है और बातचीत के आधार पर सफलता मिली है। इसके बाबत कोई सवाल नहीं है।”
जर्मनी के राजदूत क्रिस्टोफ हैउसगेन से अप्रैल में जर्मनी की यूएन की अप्रैल में अध्यक्षता के खत्म होने के बाद बातचीत की जाएगी। फ्रांसीसी राजदूत ने कहा कि “जर्मनी, जापान, भारत, ब्राज़ील और अफ्रीका से एक निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को यूएन की स्थायी सदस्यता देने की जरुरत है। यह हमारे लिए प्राथमिकता का मसला है। पेरिस सुरक्षा परिषद के विस्तार पर यकीन करता है और इसमें से कुछ महत्वपूर्ण सदस्य हमारी रणनीतिक प्राथमिकता है।”
फ्रांस और जर्मनी ने बहुपक्षीय गठबंधन को लांच किया था और उन्होंने कहा कि “दोनों राष्ट्र यूएन को आज के वैश्विक प्रशासन का मूल मानते हैं और बहुपक्षता में यकीन करते हैं जिसका मतलब हम सुधार पर सक्रियता से कार्य कर रहे हैं और यह आगामी दशकों के लिए काफी निपुण होगा।”
भारत काफी वक्त से यूएन में लंबित पर सुधारो को मुकम्मल करने का दबाव बना रहा है और कहा कि “भारत स्थायी सदस्यता का हकदार है।” यूएन में भारत के स्थायी सदस्य सईद अकबरुद्दीन ने कहा कि “यह सदस्यता के वर्गों का मसला है, 122 में से कुल 112 सदस्य राज्यों इसके बाबत अपनी स्थिति के दस्तावेज जमा कर दिए हैं और उन्होंने दोनों मौजूदा वर्गों में विस्तार का समर्थन किया है।”
उन्होंने कहा कि “90 पततिषत से अधिक दस्तावेज दोनों वर्गों में विशिष्ट सदस्यता के विस्तार का समर्थन करते हैं। यूएन में सुधार एक समारोह नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है। जिस प्रक्रिया से शुरुआत की थी आज विश्व वैसा नहीं है, आगे बढ़ने में वही विपत्तियां आ सकती है। 21 वीं सदी में वैश्विक चुनौतियाँ दोगुनी हो गयी है। किसी भी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में हम हमेशा विभाजित रहेंगे।”
फ्रांस के मुताबिक हालिया संकटो ने यूएन की केन्द्रीयता की पुष्टि की है। इस संघठन को विश्व के मौजूदा संतुलन की तरह अत्यधिक प्रभावी और प्रतिनिधित्व बनाने की जरुरत है। इसलिए फ्रांस सुरक्षा परिषद् के प्रसार के लिए दबाव बना रहा है कि जर्मनी, ब्राज़ील, भारत और जापान साथ ही अफ्रीकी देश को स्थायी सदस्यता दी जाए।”