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    सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल में अंतर

    शिक्षा भारत के संविधान मे एक मौलिक अधिकार के रूप मे देशवासियो को समर्पित है। किसी भी देश की प्रगति उसके शैक्षिक व्यवहार पर निर्धारित होती है।

    अगर किसी देश का युवा शिक्षित है तो वह देश निश्चित ही प्रगति की ओर बढता है। भारत मे आज के दिन शिक्षा को एक व्यवसाय बनाया जा चुका है। हमारे देश मे शिक्षा को सरकारी व गैर सरकारी दोनो रूपों से चलाया जा रहा है।

    शिक्षा को प्राईवेट करने का मतलब

    पहले बात करते है, शिक्षा प्रणाली को प्राईवेट करने का मतलब क्या है?

    शिक्षा को निजी लोगो और संस्थानो के हवाले करना और उनको उनके तरीके से काम करने की आजादी देने को शिक्षा का निजीकरण अथवा प्राइवेट शिक्षा कहते है।

    पिछले कुछ दशको में शिक्षा के तरीको में बदलाव आया है। पहले शिक्षा संस्थान सरकार द्वारा चलाए जाते थे परंतु कुछ समय से यह निजी संगठनो की साझेदारी से भी चलाए जाने लगे हैं।

    निजी संस्थानो मे सरकार का कोई हस्तक्षेप नही होता है। निजी विद्यालायो मे संस्थान अपने अनुसार नियम बनाते है।

    शिक्षा को निजी हाथों में सौपने के लाभ और दुष्प्रभाव

    लाभ:

    1. सुविधाएं और नई तकनीक

    निजी अथवा प्राइवेट विद्यालयो मे सरकारी विद्यालय के मुताबिक ज्यादा सुविधाएं होती है। निजी विद्यालयो मे अधिकतर नए यंत्रो के द्वारा पढ़ाया जाता है, जैसे कंप्यूटर, इंटरनेट आदि।

    बच्चो को यहाँ सभी चीजें व्यवहारिक रूप से सिखाई जाती है। इन विद्यालयो मे शौचालय, पुस्तकालय जैसी मूल सुविधाए उपलब्ध होती है।

    2. दाखिला लेने की प्रक्रिया

    ऐसे संस्थानो मे दाखिला पाने के लिए बच्चो को एक परीक्षा से गुजरना पड़ता है व ऐसा करने से बच्चो को छांट कर प्रवेश दिया जाता है। इन विद्यालयो मे सीमित संख्या मे ही बच्चो को दाखिला दिया जाता है।

    3. शिक्षको की जांच

    निजी स्कूलो में हर विषय के लिए अलग अलग शिक्षक होते है। ऐसे विद्यालयो में शिक्षक अपने विषय मे निपुण होते है और वास्तविक रूप से छात्रो को ज्ञान देते है।

    निजी विद्यालयो मे दाखिला लेने के कारण

    इन स्कूलों में निजी रूप से छात्रो पर ध्यान दिया जाता है। माता पिता अपने बच्चो का प्रवेश निजी संस्थान मे इसलिए कराते है क्योंकि यहाँ आने से वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते है। निजी संस्थानो मे बच्चो के लिए अलग से योगा व अन्य विषय के शिक्षक रखे जाते है।

    शिक्षकों को यह भी सिखाया जाता है कि उन्हे विद्यार्थियों को कैसे समझाना है और कैसे उनसे बात करनी है?

    ऐसे संस्थानो मे पढ़ने के कारण शिक्षा के स्तर मे सुधार हुआ है। कई बार ऐसे आंकडे सामने आते है जिनसे सरकारी शिक्षा संस्थानो पर एक बड़ा सवाल उठता है। सरकारी विद्यालयो मे कई बार छात्रावास, पुस्तकालय व अन्य मूलभूत सुविधाएं मौजूद नही होती हैं।

    दुष्प्रभाव:

    1. मनमानी फीस वसूलना

    निजी संस्थान अभिवावको से मनमानी फीस वसूलते है। यह सबसे बड़ा नुकसान है शिक्षा के निजीकरण का। गरीब लोग जिनके पास पैसे नहीं हैं और वह अपने बच्चो को अच्छे स्कूल मे पढाना चहाते है परंतु वह ऐसा नही कर सकते हैं।

    2. भ्रष्टाचार की चरम सीमा

    मझले स्तर व उच्च स्तर के परिवार के बच्चे ही ऐसे विद्यालयो मे दाखिला लेने मे सर्मथ है। ऐसे विद्यालयो मे एडमिशन लेने के लिए भ्रष्टाचार चरम सीमा पर रहता है।

    सरकारी विद्यालयो मे गरीब छात्रो के लिए खाना और पुस्तक देने की योजनाए होती है परंतु प्राईवेट विद्यालय मे ऐसा नही होता है।

    3. शिक्षा का व्यवसाय बनना

    निजी विद्यालयो ने शिक्षा के नाम पर बिजनेस खोल लिया है। वह अलग अलग गतिविधयो के नाम पर पैसे वसूलते है और डोनेशन का नाम रख कर एक बड़ी रकम वसूलते है।

    सरकारी विद्यालय मे शिक्षा के लाभ व दुष्प्रभाव

    लाभ:

    1. खाना और किताबें मिलना

    सरकार द्वारा सरकारी स्कूलो में कई ऐसी योजनाएं है जिनमे बच्चो को खाना, वर्दी, किताबे मुफ्त में मुहैया कराई जाती है। ऐसा इसलिए कराया जाता है जिससे बच्चे स्कूल मे आए और अपना भविष्य सुधारने का प्रयास करे।

    निम्न स्तर के बच्चो को सही पोषण और पढाई देने के लिए यह योजनाए चलाई गई हैं। इसके अलावा छात्रो को विद्यालय मे बुलाने और देश मे शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए यह प्रयास किए गए हैं।

    2. कम दाम मे शिक्षा मिलना

    सरकार द्वारा चलाए जाने विद्यालयो मे गरीब बच्चो को शिक्षित होने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। ऐसे स्कूलो मे कम दाम मे या मुफ्त मे छात्रो को पढाया जाता है। गरीबी बच्चो के लिए कई बार छात्रवृति दी जाती है।

    दुष्प्रभाव:

    1. शिक्षकों की कमी

    सरकारी स्कूलो मे कई बार यह देखा गया है कि वहा पर शिक्षको की कमी होती हैं। हर विषय के शिक्षक विद्यालय मे मौजूद नही होते हैं।

    विद्यालय मे ज्यादा छात्र होते है और इस कारण से को पर ध्यान देने मे शिक्षक असर्मथ रहते है। कई बार यह देखा गया है कि स्कूलों मे 50 प्रतिशत शिक्षको के पद खाली है और स्कूल मे प्रिंसिपल भी नही है।

    2. मुलभूत सुविधाएं न होना

    सरकारी विद्यालयो मे कई दफा पुस्तकालय नही होते हैं। इसके अलावा शौचालय की सुविधा भी कई बार छात्रो को उपलब्ध नही होती है।

    बिजली पानी आदि की समस्याएं भी इन स्कूलों में रहती हैं। कई बार स्कूलों में किताबे पहुँच जाती हैं, पर छात्रों को नहीं मिल पाती हैं।

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