शासन और प्रशासन के बिच अनबन कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा माना जाता है कि दोनों के बीच की लड़ाई वर्चस्व की लड़ाई है। राजनेता तो अक्सर कानून को अपनी जागीर समझते है। माना जाता है कि खादी का भी अपना ही एक नशा है जो खाकी के नशे से भी ज्यादा होता है।
हार्दिक पर यह नशा चुनाव जीतने से पहले ही छाने लगा है। उनके रंग ढंग से लग रहा है कि मानों उनको अब कानून की कोई परवाह ना हो। चुनाव जीतने से पहले ही हार्दिक प्रशासन को दबाने का मन बनाए बैठे है। दोनों की लड़ाई लुकाछुपी की नहीं बल्कि प्रत्यक्ष है। ऐसा लग रहा है कि हार्दिक प्रशासन से सीधे टक्कर लेने के मूड में है। उनके तेवरों से यह बात साफ़ झलक रही है कि वो इस चुनाव में प्रशासन के कहे अनुसार नहीं चलना चाहते है।
गौरतलब है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा पीएम मोदी समेत राहुल गांधी के अलावा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को भी रोड शो करने की इजाजत नहीं मिली है। स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से तीनो नेताओं के रोड शो को रद्द कर दिया था बावजूद इसके प्रशासन को गंभीरता से ना लेते हुए हार्दिक ने रोड शो किया है। उन्होंने ना सिर्फ रोड शो किया बल्कि अपनी शो में बड़ी संख्या में कार और बाइक सवार समर्थकों का उपयोग भी किया है।
कहा जा रहा है कि हार्दिक के रोड शो में 2 हजार से ज्यादा सवार समर्थक शामिल हुए है। हार्दिक की यह रैली प्रशासन को ठेंगा दिखाने के सामान है। शायद पटेल नेता को यह विश्वास है कि सत्ता में आने के बाद प्रशासन उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। यही कारण है कि साफ़ शब्दों में मनाही के बावजूद उन्होंने इस फैसले को गंभीरता से नहीं लिया है।