देश के इतिहास में कई बार प्याज की बढती कीमतों ने सरकारों की नींव हिला दी है लेकिन अब लगता है प्याज की गिरती कीमत सरकार के लिए ख़तरा बनने वाली है। प्याज की गिरती कीमतों से परेशान किसानों ने चेतावनी दी है कि प्रधानमंत्री को अगले चुनाव में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
हाल के हफ्तों में प्याज और आलू की कीमतों में भारी गिरावट ने बड़े राज्यों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। पिछले सप्ताह दर्जनों किसानों ने मीडिया के सामने केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ नाराजगी जताई।
महाराष्ट्र के नासिक के प्याज उत्पादक मधुकर नागरे ने पिछले आम चुनाव में भाजपा का समर्थन करने का जिक्र करते हुए कहा, “आने वाले महीनों में वो चाहे जो भी करें, मैं भाजपा के खिलाफ वोट करूंगा। मैं 2014 की गलती नहीं दोहराऊंगा।”
1998 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्याज की कीमतों के कारण भाजपा चुनाव हार गई थी। 1980 के आम चुनाव में प्याज की आसमान छूती कीमतों के कारण इंदिरा गांधी को एक गठबंधन सरकार बनाने को मजबूर होना पड़ा था। बाद में गठबंधन सरकार में शामिल कुछ नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।
हाल के सप्ताहों में प्याज की कीमत मंडी में एक रुपये प्रति किलोग्राम से भी कम हो गयी तो नुकसान से त्रस्त किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने सड़कों पर प्याज के ढेर लगा कर राजमार्गों को अवरुद्ध किया, रोड जाम किया। लेकिन बिचौलियों के कारण उपभोक्ताओं को कम कीमतों अ फायदा नहीं हुआ।
शीर्ष प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में कीमतों में 83 प्रतिशत की गिरावट आई है। पिछले सीजन के बचे हुए स्टॉक और मध्य पूर्व के देशों से आयात की कम मांग के कारण ये स्थिति पैदा हुई है।
2014 में नरेंद्र मोदी को चुनाव जितवाने में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश में भी किसान आलू की कम कीमतों से परेशान है।
महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण मतदाताओं की बहुतायत है और दोनों राज्य मिलकर लोकसभा की 545 में से 128 सदस्य चुनते हैं। इन दोनों राज्यों में बड़े नुकसान की कीमत भाजपा को चुनाव हार कर चुकानी पड़ सकती है।