पेरिस समझौते को लेकर अब अमेरिका अलग-थलग होता नजर आ रहा है। इस समझौते को लेकर अमेरिका लगातार विरोध कर रहा है। इसी साल जून में अमेरिकी राष्ट्रपति ने पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने की घोषणा भी की थी। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए पेरिस समझौते का समर्थन अमेरिकी को छोड़कर अन्य सभी देश कर रहे है।
अब तो सीरिया ने भी पेरिस समझौते में शामिल होने का फैसला किया है।साल 2015 में हुए पेरिस समझौते के समय सीरिया और निकारागुआ ही इससे बाहर थे। इसी साल अक्टूबर में निकारागुआ ने इस समझौते में शामिल होने का ऐलान किया था। वहीं अब एकमात्र बचा हुआ देश सीरिया भी इसमें शामिल हो गया।
अमेरिका नहीं होगा पेरिस समझौते में शामिल
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जून में पेरिस समझौते से अलग होते हुए कहा था कि इस समझौते की वजह से अमेरिका को नुकसान होगा। अमेरिका में लाखों की संख्या में नौकरी चली जाएगी। साथ ही ट्रंप ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होने की भी आशंका जताई थी।
ट्रंप का इस समझौते को लेकर मानना था कि इससे चीन और भारत जैसे देशों को फायदा पहुंच रहा है। इसकी वजह से अमेरिका अपनी संपदा को अन्य देशों के साथ नहीं बांट सकता है।
हाल ही में बॉन में जलवायु सम्मेलन भी आयोजित हो रहा है। जिसमें कई देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। यहीं पर सीरिया ने इसकी जानकारी दी है। अमेरिका की वजह से पेरिस समझौते को लागू करने में मुश्किल भी हो सकती है।
पेरिस समझौते के तहत यह प्रावधान किया गया है कि वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाए और कोशिश की जाए कि वो 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़े। इसका उद्देश्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम कर दुनियाभर में बढ़ रहे तापमान को रोकना है।
साथ ही इसमें विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्तीय सहायता के लिए 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष देना और भविष्य में इसे बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने की बात भी कही गई है।अमेरिकी को मुख्यतः इसी प्रावधान को लेकर परेशानी है।