27 दिसंबर 2017 को पालघर जिला कचहरी पर ‘पेसा कानून’ में संशोधन के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेश को रद्द करने की मांग लेकर पालघर जिले के 10000 से भी ज्यादा संख्या में आदिवासी, किसान, मछुआरे भूमिपुत्र बचाव आंदोलन के झंडे तले इकठ्ठा हुए।
भूमिपुत्र बचाव आंदोलन दिल्ली–मुंबई औद्योगिक गलियारे, बुलेट ट्रेन, एक्सप्रेस वे, वाढवन बंदर, नारगोल बंदर के खिलाफ संघर्षरत जनमोर्चो का साझा मंच है। भूमिपुत्र बचाव आंदोलन द्वारा विगत 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस/अगस्त क्रांती दिवस पर रॅली एवं जनसभा का आयोजन किया गया था। इस जनसभा (प्रकृती एवं समाज संवर्धन परिषद) में 50,000 से भी ज्यादा संख्या में किसान, आदिवासी, मच्छवारे शामिल हुए थे। भूमिसेना के नेता कालूराम काका धोदडे की अध्यक्षता में संपन्न इस परिषद ने विनाशकारी प्रकल्पो को “चले जावं” की चेतावनी दी थी।
9 अगस्त के बाद महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में किसान समूहों, आदिवासी समाज की बैठको और आंदोलनो का क्रम जारी है। लोवरे (पालघर) में जबरदस्ती हाइवे के लिए भू सर्वेक्षण का प्रयास किया गया जिसे आदिवासी एकता परिषद, शेतकरी संघर्ष समिती, युवा भारत द्वारा रोका गया। वसई में 15 नवंबर बिरसा मुंडा दिवस से अगले सात दिनो तक जिले में जनजागृती यात्रा निकाली गयी। वही गुजरात में खेडूत समाज के तत्वावधान में “लोकशाही बचाव संविधान बचाव”यात्रा निकाली गयी। राष्ट्रीय हरित लवाद, डहाणू प्राधिकरण में इन परियोजनाओ के संदर्भ में गुजरात, महाराष्ट्र की जनता लड़ रही है। आदिवासी अनुसूचित क्षेत्र की पेसा अंतर्गत आनेवाली ग्राम पंचायतो द्वारा विरोध के प्रस्ताव भी भेजे गये है।
जनता के स्तर पर हो रहे विरोध एवं पेसा अंतर्गत की ग्राम सभाओ द्वारा विरोध के प्रस्तावो को देख उनकी सकारात्मक सुध लेने की बजाय जनता के विरोध को दरकिनार कर पेसा ऍक्ट में संशोधन अध्यादेश को लाया गया है।
आदिवासी जनता के हितो को नजर अंदाज कर उनके हितो को कुचलनेवाला यह अध्यादेश संविधान विरोधी है। राज्यपाल राज्य के पालक है एवं उन्हे इस बात ध्यान भी रखना चाहिये था । 15 नवंबर के दिन आदिवासी जन-गण के नेता, धरती के आबा बिरसा मुंडा दिवस पर राज्यपाल द्वारा लाया गया संविधान विरोधी अध्यादेश आदिवासी जनता के अधिकार का मृत्यू अभिलेख होने की बात सुनिल पराड, ब्रायन लोबो ने कही।
महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा इस अधिसूचना को वापस नही लिए जाने की स्थिती में गुजरात में आंदोलन छेडने की चेतावनी खेडूत समाज गुजरात के अध्यक्ष जयेश पटेल द्वारा दी गयी। कृष्णकांत ने इस मौके पर “हिंदी, मराठी हो या गुजराती, लडनेवालो की एक ही जाती” का नारा बुलंद किया। राजस्थान के साथी एवं प्रकृती मानव जनआंदोलन के साथी घनश्याम डेमोक्रेट ने राजस्थान में दिल्ली मुंबई औद्योगिक कॉरिडॉर के विरोध में चल रहे प्रयासो की जानकारी देते हुए महामोर्चा को अपना समर्थन जाहिर किया।
एमएमआरडीए के विकास प्रारूप के खिलाफ संघर्षरत पर्यावरण संवर्धन समिति के नेता समीर वर्तक ने पेसा में संशोधन को गैरकानुनी करार दिया एवं पालघर जिले में केंद्रित सभी विनाशकारी परियोजनाओ के खिलाफ काका धोदडे के नेतृत्व में लडाई जीते जाने तक संघर्ष जारी रखनें की अपनी भूमिका को दोहराया।
शेतकरी संघर्ष समिती के अध्यक्ष संतोष पावडे ने पेसा ऍक्ट में संशोधन जनता के विरोध को पचा नही पाने के कारण बदले की भावना रख किए जाने की बात कही। उन्होने आगे जोडा की आदिवासी, मच्छवारे एवं किसान उसके हितो के विरुद्ध किए जा रहे हर प्रयास को संगठीत रूप में मुंहतोड जवाब देगा।
वाढवण बंदर संघर्ष समिती के वैभव वझे ने जय आदिवासी, जय मच्छवारे का नारा बुलंद किया। आजीविका के ऊपर का संकट सबसे बडा संकट है साथ ही उससे बडा संकट पर्यावरण का संकट है। आजीविका और पर्यावरण को नष्ट करनेवाली नीतियों के विरोध में संघर्ष जारी रखने एवं परियोजना को रोकने की लड़ाई को तेज करने का आह्वान किया। राजापूर रीफायनरी विरोधी संघर्ष समिती के सदानंद पौल, पूर्व मंत्री राजेंद्र गावित ने अपना समर्थन जारी किया। सूर्या पानी बचाव आंदोलन के रमाकांत पाटील, मच्छवारो के नेता नारायण पाटील, नेत्री पूर्णिमा मेहेर, सगुणा संगठन के अरुण करांडे, युवा भारत के दयानंद कनकदंडे, अखिल भारतीय महिला परिषद एवं मुंबई एअरपोर्ट विस्तारीकरण विरोधी आंदोलन की नेत्री जयश्री घाडी, भारतीय पर्यावरण चळवळ(आंदोलन) के कुंदन राऊत, शेतकरी संघर्ष समिती के कमलाकर अधिकारी आदि भी उपस्थित रहे।
ग्राम सभा के अधिकार के कारण सरकार किसानों और आदिवासी से जमीन खींच नही पा रही है। इस लिए जिस संविधानिक अधिकार को लेकर लोग लड रहे है उसे ही खत्म करने का काम किया गया है एवं इसी काम के लिए यह अधिसूचना जारी किये जाने की बात युवा भारत के शशी सोनवणे ने कही।
सभा का समारोप काका धोदडे के संबोधन से हुआ। उन्होने कहा, “सरकार अगर उसी के निर्देशो के अनुरूप ली गयी ग्रामसभा के प्रस्तावो को नही मानना चाहती है और अपने ही द्वारा बनाये गये कानून में पुंजीपती के दबाव में संशोधन लाती है तो उसे हमारी सरकार कहलाने का अधिकार समाप्त हो जायेगा। इसलिये उसको अपनी खुद की अधिमान्यता बचानी चाहिये। अगर सरकार उसी के द्वारा स्थापित ग्राम-पंचायत की ग्रामसभाओ के निर्णय को रद्द करने हेतू संशोधन लाती है एवं जनता के आक्रोश के बावजुद भी संशोधन वापस नही लेती है तो हम लोगो को “लोकसभा न विधानसभा, सबसे बडी ग्रामसभा” की तर्ज पर अपनी ग्रामसभा और उसके शासन को कायम करना पडेगा।”
शशी सोनवणे बताते है कि एक तरफ जहां मोदी सरकार का एक मंत्री संविधान को बदलने की बात ईमानदारी से कर रहा है, तो उसका स्वागत करना चाहिए क्योंकि वे जो काम कर रहे है वही बात मंत्री ने की है। संविधान का सीधा-सीधा उल्लंघन करनेवाली 15 नवम्बर 2017 को मा. राज्यपाल ने अधिसूचना जारी की है। यह अधिसूचना अनुसूचित क्षेत्र के आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार, ग्रामसभा के माध्यम से जमीन, जंगल को लुटेरों से बचाने के आदिवासियों के अधिकार को यह अधिसूचना खत्म कर देती है। वर्तमान सरकार भी कॉरपोरेट माफिया के लिए आदिवासी, भुमिपुत्र को बर्बाद करने का काम, संविधान को दरकिनार करने काम मोदी सरकार भी बढ़चढ़कर, जोरशोर से कर रही हैं। इस लूट के विरोध में महाराष्ट्र गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के आदिवासी, खेडुत किसान, मछुआरे तमाम भुमिपुत्र संघटित हो रहे है। पालघर जिले में भुमिपुत्र बचाव आंदोलन द्वारा किए जा रहे संघर्ष के परिणामस्वरुप विनाशकारी प्रकल्प परियोजनाओ को जमीन मिलने नही मिली है। 27 दिसंबर के इस महामोर्चा के पहले 19 दिसंबर को इस सबंध में धरना प्रदर्शन किया गया था। इस बीच वाघोली से वाघोबा तक यात्रा भी निकाली गयी।
पालघर में 11 बजे तक लोग अलग यातायात वाहनो से पालघर पहूंचे। चौरास्ता से हुतात्मा स्मारक होते हुए महामोर्चा पालघर जिला कचहरी पर दाखिल हुआ।
जीलाधीश अपने कार्यालय में उपस्थित नही थे। शशी सोनवणे एवं समीर वर्तक की माने तो 18 तारीख को एक्सप्रेस वे को लेकर उन्ही के द्वारा बुलाई गयी बैठक में भी वे उपस्थित नही थे।
अधिसूचना वापस नही लिए जाने तक एवं परियोजना को वापस लिए जाने तक संघर्ष को जारी रखा जायेगा। आंदोलन को गुजरात, राजस्थान होते हुए दिल्ली तक पहूंचाने की ईच्छा नेताओं ने जाहिर की है। सभा का प्रास्ताविक दत्ता करभट, संचालन विनोद धुमाडा एवं आभार राजू पांढरा द्वारा किया।
दयानंद कनकदंडे
(मुक्त पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता)