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    पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के सेवा विस्तार को सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त के साथ मंजूरी दी है कि यह केवल छह महीने के लिए मान्य होगा। इस छह महीने में सेना प्रमुख के सेवा विस्तार या फिर से नियुक्ति जैसे मामलों पर सरकार को संसद में कानून बनाना होगा।

    लेकिन, इमरान सरकार के लिए यह कानून बनाना आसान नहीं होगा क्योंकि उसके सामने संसद में संख्या बल एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। सरकार चाह रही है कि इस कानून को बनाने की प्रक्रिया तुरंत शुरू कर दी जाए। इसीलिए संसद के निचले सदन नेशनल एसेंबली के पहले से प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार इसका सत्र आहूत नहीं किया जा रहा है और विपक्ष के साथ सहमति बनाने के मद्देनजर इस कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है।

    नेशनल एसेंबली के सत्र से पहले कैबिनेट में संविधान व आर्मी एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव को पास किया जाएगा। इस बीच, माना जा रहा है कि सरकार ने संसद के निचले सदन के अध्यक्ष को विपक्ष को कानून के लिए राजी करने के काम में लगाया है।

    सत्तारूढ़ गंठबंधन के लिए इस कानून को बनाने में विपक्ष का सहयोग आवश्यक है। आर्मी एक्ट जैसे किसी सामान्य कानून में संशोधन के लिए संसद के ऊपरी सदन सीनेट और निचले सदन नेशनल एसेंबली में सामान्य बहुमत की सहमति की जरूरत होती है। सरकार नेशनल एसेंबली में तो ऐसे किसी भी विधेयक को पारित करा सकती है क्योंकि इस सदन में उसका बहुमत है। लेकिन, सीनेट में उसके लिए दिक्कत है क्योंकि वहां उसके पास बहुमत नहीं है।

    और, अगर संविधान में संशोधन करना हो तो फिर दो तिहाई सदस्यों की सहमति जरूरी है। इमरान सरकार के पास सीनेट में बहुमत नहीं होने के साथ नेशनल एसेंबली में दो तिहाई बहुमत भी नहीं है। सेना प्रमुख मामले में संविधान के अनुच्छेद 243 में संशोधन होना है जिसके लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत है। यानी, आर्मी एक्ट में संशोधन और संविधान में संशोधन, दोनों के लिए इमरान सरकार को विपक्ष के सहयोग की जरूरत है और इस सरकार को हटाने के लिए विपक्ष ने जिस तरह से कमर कसी हुई है, उसमें ऐसा हो पाना आसान नहीं लग रहा है।

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