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    पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह ने कहा है कि अल्पसंख्यकों का जबरन धर्म परिवर्तन संविधान के खिलाफ है और यह अस्वीकार्य है। सिंध अल्पसंख्यक हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन के लिए कुख्यात है। पाकिस्तान में अधिकांश हिंदू आबादी इसी प्रांत में निवास करती है।

    शाह ने कराची में ‘मानवाधिकार प्रतिबद्धता : चुनौतियां व अवसर’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में अपनी बात रखी और समाज के विभिन्न तबकों के सदस्यों के सवालों के उत्तर भी दिए।

    सेमिनार में मौजूद हिंदू समुदाय के एक सदस्य ने मुख्यमंत्री को सुझाव दिया कि किसी भी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार सरकार के पास होना चाहिए न कि किसी व्यक्ति के पास। उन्होंने सरकार को सुझाव दिया कि अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलना चाहता है तो उसे इसके लिए न्यायाधीश या उपायुक्त के यहां अर्जी देनी चाहिए।

    इस सुझाव पर शाह ने कहा कि यह सही है कि धर्म परिवर्तन पर एक कानून की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन संविधान के खिलाफ है और गैरकानूनी है। यह अस्वीकार्य है लेकिन अगर कोई स्वेच्छा से करना चाहे तो उसे ऐसा करने का अधिकार है।

    उन्होंने कहा, “मैं इस सुझाव पर गौर करूंगा और कानून का अध्ययन कर देखूंगा कि क्या धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार इसकी इच्छा जताने वाले व्यक्ति की अर्जी पर सरकार को दिया जाए या यह अधिकार उस व्यक्ति के ही पास रहे।”

    शाह ने कहा कि उनकी सरकार ने जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक कानून बनाया भी था लेकिन उसमें उम्र को लेकर यह गलती हो गई कि धर्म परिवर्तन को 18 साल की आयु से जोड़ दिया गया। समाज ने इसका विरोध किया जिसकी वजह से इस कानून को वापस लेना पड़ा।

    शाह ने कहा, “एक मुख्यमंत्री के रूप में मैंने शपथ ली हुई है कि मैं 1973 के संविधान के तहत मानवाधिकारों का संरक्षण करूंगा और इसीलिए मैंने हमेशा जाति, धर्म या लैंगिकता से ऊपर उठकर मानवाधिकार को संरक्षण दिया है।”

    इसके साथ ही, उन्होंने सभी सरकारी विभागों को निर्देश दिया कि वे ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को बराबरी व सम्मान के साथ पेश आएं और उन्हें उनके अधिकार दिलाएं।

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