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    विदिशा मैत्रा

    पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान के संबोधन का जवाब संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में भारत ने दिया था। भारत ने कहा कि इस्लामाबाद ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया है और भड़काऊ भाषण में काफी इजाफा किया है।”

    खान के बयान पर जवाब देने की प्रक्रिया के तहत नई दिल्ली ने कहा कि “भारत के नागरिको को उनकी तरफ बोलने वाले किसी शख्स की जरुरत नहीं है। कम से कम उनकी तो नहीं जिन्होंने नफरत की विचारधारा से आतंकवाद के उद्योग का निर्माण किया है।”

    विदेश मंत्रालय की प्रथम सचिव विदिशा मिश्रा ने कहा कि “मैं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान के बयान का जवाब देने के लिए भारत के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहती हूँ। इस अगस्त असेंबली के पोडियम से बोला गया हर एक शब्द इतिहास के भार से दबा हुआ था।”

    पाकिस्तान की तरफ स्पष्ट इशारे के बाबत मैत्रा ने कहा कि “भारत के नागरिको को उनकी तरफ से बोलने के लिए किसी की जरुरत नहीं है, जिन्होंने नफरत की विचारधारा से आतंकवाद के उद्योग का निर्माण किया है।”

    उन्होंने कहा कि “दुर्भाग्यवश, आज हमने पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान से जो भी सुना वह विश्व का निर्दयी वर्णन था। वह बनाम हम, अमीर बनाम गरीब, उत्तर बनाम दक्षिण, विकसित बनाम विकासशील, मुस्लिम बनाम अन्य। यह बयान संयुक्त राष्ट्र का विभाजन करना है। मतभेदों को गहरा करने की कोशिश है और नफरत भरे भाषण से नफरत को बढ़ाना है।”

    खान ने यूएन में अपने 50 मिनट के भाषण में कश्मीर मामले पर भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध के भयानक परिणाम होने की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि “कूटनीति में अलफ़ाज़ मायने रखते हैं। तबाही, रक्तपात, नस्लीय प्राथमिकता, बन्दूक उठाने और अंत तक लड़ने जैसे अलफ़ाज़ मध्यकाल के विचारों को पेश करते हैं और यह 21 वीं शताब्दी की विचारधारा नहीं है।”

    पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री को भारतीय सचिव ने इमरान खान निआजी के नाम से संबोधित किया था। पाकिस्तान के जनरल एएके निआजी पूर्वी पाकिस्तान के अंतिम गवर्नर थे। उन्होंने कहा कि “आज के जीवंत लोकतंत्र में तबाही नाम का शब्द नहीं है। हम आपसे इतिहास को समझकर दिमाग को रिफ्रेश करने का आग्रह करते हैं। साल 1971 में पाकिस्तान द्वारा अपने नागरिको के नरसंहार और लेफ्टिनेंट जनरल के एएके निआजी को नहीं भूलना चाहिए। इस बाबत बंगलादेशी पीएम ने असेंबली को अवगत करा दिया है।”

    मैत्रा ने कहा कि “क्या पाकिस्तान इस तथ्य की पुष्टि कर सकता है कि वह यूएन द्वारा प्रतिबंधित 130 आतंकवादियों और 25 संस्थाओं का घर है। क्या पाकिस्तान इसकी जानकारी देगा कि विश्व में सिर्फ उनकी सरकार ही है जो यूएन द्वारा प्रतिबंधित व्यक्तियों को पेंशन मुहैया करती है।”

    क्या पाकिस्तान इसकी जानकारी दे सकता है कि क्यों न्यूयोर्क में उनका हबीब बैंक को आतंकवाद को वित्तीय सहायता करने के बाद बंद कर दिया गया। मैत्रा ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यको के साथ व्यवहार को रेखांकित किया और कहा कि साल 1947 में अल्पसंख्यको की संख्या 23 फीसदी थी और अब दो फीसदी बची है।

    मैत्रा ने कहा कि “जो एक समय पर क्रिकेटर थे और जिसे जेंटलमेन के खेल होने पर यकीन रखते है, उसके लिए ऐसा बयान क्रूरता की सीमा को पार करता है।”

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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