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    पाकिस्तान

    बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान की सेना और तालिबान ने उत्तरी वज़ीरिस्तान और अन्यय आदिवासी क्षेत्रों में हज़ारो आम नागरिकों की हत्या की है। 9/11 के बाद पाकिस्तानी सेना की चरमपंथियों के साथ लम्बा संघर्ष जारी है। बीबीसी के मुताबिक, उन्हें कुछ ही पीड़ितों तक पंहुच मिल सकी है।  डेरा इस्माइल खान के नज़ीरूल्लाह उन पीड़ितों में से हैं जिनके घर कको सेना ने साल 2014 में निशाना बनाया था और उनके परिवार के चार सदस्यों को मार दिया गया था।

    बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, आला चरमपंथियों से निपटने के बजाये पाकिस्तान की सेना स्थानीय लोगो को निशाना बना रही है। 20 वर्ष की आयु के नज़ीरूल्लाह ने बताया कि “उस समय रात के 11 बज रहे थे और उनकी हाल ही में शादी हुई थी। शादी के बाद एक अलग कमरा मिलना उनके लिए बेहद बड़ी बात थी। खातेई कलाय गाँव में स्थित नज़ीरूल्लाह के घर में एक बड़ा कमरा था जिसमे परिवार के सभी सदस्य सो रहे थे।”

    वह बताते है कि “ऐसा अनुभव हुआ जैसे घर में धमाका हुआ है मेरी और मेरी पत्नी की नींद अचानक खुली। हवा में बारूद की गंद थी हम बाहर आये तो देखा कि कमरे की छत तबाह हो चुकी है। कोने में सिर्फ एक हिस्सा शेष था और उसी जगह हम सोते थे।”

    नज़ीरुलाह के परिवार के चार सदस्य इस हमले में मारे गए थे जिसमे उनकी तीन साल की एक बेटी भी थी। मलबे से चार लोगो को बचाया गया था और इसके बाद नज़ीरूल्लाह का परिवार डेरा इस्माइल चला गया था और यहां उनकी ज्जिन्दगी ज्यादा सुखमय है।

    स्थानीय प्रशासन और रिसर्च ग्रुप के मुताबिक, साल 2002 से उत्तरी-पश्चिमी पाकिस्तान में चरमपंथियों की हिंसा के कारण 50 लाख लोगो ने अपना घरबार छोड़ दिया था। ये लोग या तो शिविरों में रहते हैं या शांतिपूर्ण क्षेत्रों में किराये के मकानों में गुजर बसर कर रहे हैं। इस जंग में नागरिकों की मौतों का कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है हालाँकि स्थानीय प्रशासन और अकादमी के अनुसार 50 हज़ार से अधिक नागरिकों, चरमपंथियों और सैनिको की मौत हुई है।

    स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार सेना के हमलो में बड़े पैमाने पर आम नागरिकों की मौत हुई है और वे इसके बाबत सबूत जुटा रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं को एक नए अधिकार समूह पश्तून तहाफ़ज़ आंदोलन के साथ जोड़ा जाता है। बीते वर्ष आदिवासियों के साथ शोषण की खबरे निरंतर आ रही थी और उसी दौरान पीटीएम की स्थापना की गयी।

    पीटीएम के आला नेता मंज़ूर पश्तीन ने बताया कि “अपने ऊपर हुई प्रताड़ना और अपमान के खिलाफ खड़े होने में हमें 15 वर्षों का समय लग गया। हमने जागरूकता फैलाई की कैसे पाकिस्तानी सेना हमारा दमन कर रही है।” पीटीएम के मुताबिक, उतरी वज़ीरिस्तान में 26 मई को सेना की ओपन फायरिंग में उनके 13 कार्यकर्ताओं की मौत हो गयी थी। पीटीएम के कार्यकर्ता प्रदर्शन के लिए सड़कों पर आये थे।

    अलबत्ता सेना के मुताबिक पीटीएम के सिर्फ तीन कार्यकर्ताओं की मौत हुई थी क्योंकि उन्होंने सेना की चौकी पर हमला किया था। हालाँकि इस हमले के आरोप को ख़ारिज करता है, उनके दो सांसदों को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।

    साल 2001 में जब तालिबान आदिवासी इलाको में आया तो स्थानीय लोग बेहद सतर्क हो गए थे और स्थानीय लोगो का बहुत जल्द ही उनसे मोहभाग हो गया था। तालिबान ने आदिवासी समुदाय पर इस्लामिक गतिविधियों को जबरन थोपना शुरू कर दिया था। इसके बाद तालिबान ने जाने-माने लोगो को अपना रास्ते से हटा दिया ताकि उनके उभार में कोई दिक्कत न आये। साल 2002 के बाद तालिबान ने 1000 से अधिक नेताओं की हत्या कर दी थी।

    गैर सरकारी आंकड़ों के तहत यह आंकड़ा 2000 के पार जाता है। साल 2002 से 8000 से अधिक लोगो की सेना ने हत्या की है। पीटीएम के धैर्य का बाण बीते वर्ष टूट गया। उनकी मीडिया कवरेज पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया। मीडिया में जिन्होंने इन प्रतिबंधों को मानने से इंकार कर दिया उनको धमकियाँ दी और आर्थिक दबाव बनाया गया था।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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