पाकिस्तान में एक पत्रकार को पश्तून तहफूज़ प्रदर्शन पर रिपोर्टिंग के लिए गिरफ्तार कर लिया गया है। यह एक अधिकारों पर आधारित गठबंधन है और पत्रकार ने उनके नेताओं का इंटरव्यू भी लिया था। बीते रविवार को पश्तूनों ने हक़ के लिए प्रदर्शन किया था। खबरों के मुताबिक, प्रदर्शनकारी भीड़ पर सुरक्षा सैनिको ने गोलीबारी कर दी थी और इसमें चार लोगो की मौत हो गयी थी और 50 से अधिक प्रदर्शनकारी बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
स्थानीय पत्रकारों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना ने पीटीएम के नेताओं को प्रदर्शन स्थल पर जाने से रोका था क्योंकि उन्हें यकीन था कि नेता वहां वह भाषण दे सकते हैं। नेताओं के समर्थकों ने जब बैरियर्स को हटाने की कोशिश की तो पाकिस्तानी सैनिको ने प्रदर्शनकारियों पर ओपन फायरिंग शुरू कर दी थी। पीटीएम के नेताओं और सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद हिंसा बढ़ गयी थी।
पाकिस्तान के पश्तून भाषा के चैनल खैबर न्यूज़ के पत्रकार गोहर वज़ीर को सुरक्षा अधिकारीयों ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में पीटीएम के नेताओं का इंटरव्यू और प्रदर्शन पर रिपोर्टिंग करने के बाद गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी से पूर्व उन्होंने पीटीएम के दिग्गज नेता मशिन दवार का इंटरव्यू लिया था। दवार को बीते वर्ष पाकिस्तान की राष्ट्रीय संसद के लिए चयनित हुए थे।
वज़ीर और अन्यो को मैंटेनेंस ऑफ़ पब्लिक आर्डर आर्डिनेंस के तहत गिरफ्तार किया गया था। पत्रकारों का संरक्षण करने वाली समिति ने तत्काल गोहर वज़ीर को रिहा करने की मांग की है। एशिया प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर के सीपीजे स्टीवन बटलर ने कहा कि “न्यूज़ रिपोर्टिंग करने के अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए गोहर वज़ीर को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए था। चाहे वह पश्तून तहफूज़ आंदोलन जैसे विवादस्पद मुद्दों पर ही रिपोर्टिंग क्यों न कर रहे हों। पाकिस्तानी मीडिया पर पाबंदी सिर्फ पाकिस्तानी लोकतंत्र की मज़बूती को नज़रअंदाज़ करने की तरफ इशारा कर रही है।”
वज़ीर की गिरफ्तारी से पूर्व में खैबर न्यूज़ के चार पत्रकारों को रिपोर्टिंग के दौरान मार दिया गया था। इसमें मालिक मुमताज़ और अल्लाह नूर वज़ीर क्रमश उत्तरी और दक्षिणी वज़ीरिस्तान के आदिवासी क्षेत्रों से थे। अल्लाह नूर पाकिस्तानी तालिबान के तत्कालीन प्रमुख बैतुल्लाह महसूद और नयी कानून प्रवर्तन विभागों के बीच साल 2005 में शान्ति समझौते की स्टोरी को कवर करने के लिए गए थे।
मालिक मुमताज़ को साल 2013 में कार से एक अज्ञात आदमी ने गोली मार दी थी। आदिवासी जिले में कार्य करने वाले पत्रकारो के मुताबिक, उन्हें चरमपंथी समूहों, आपराधिक गुटों से भी खतरा है और साथ ही पाकिस्तानी सेना और ख़ुफ़िया विभाग भी धमकिया देता है। हालिया वर्षों में पाकिस्तान में पत्रकारों की हत्या की संख्या में गिरावट आयी है सीपीजे ने सेना के तरफ से मीडिया पर बढ़ते दबाव पर चिंता व्यक्त की है।