भारत व पाकिस्तान के बीच में नया युद्ध छिड़ने के आसार लग रहे है। लेकिन इस बार युद्ध सीमा विवाद पर नहीं बल्कि पानी को लेकर हो सकता है। भारत व पाकिस्तान द्वारा कश्मीर स्थित हिमालय क्षेत्र के ताजे पानी की आपूर्ति के लिए अपना-अपना दावा जताया जा रहा है।
कश्मीर के पास स्थित हिमालयी क्षेत्रों में कई नदियों जैसे नीलम नदी, सिंधु नदी व अन्य के पानी को लेकर भारत व पाकिस्तान के बीच विवाद बढ़ गया है। दोनों ही देश चाहते है कि कश्मीर के पास स्थित नदियों का पानी अपने-अपने देश पहुंचे।
गौरतलब है कि पिछले साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि भारत के पानी को पाकिस्तान में जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। मोदी के ऐसे बयान के बाद से ही भारत व पाकिस्तान के बीच वास्तव में जल युद्ध की बात छिड़ गई।
पाकिस्तान के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने कहा था कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को रद्द करना युद्ध के कार्य के रूप में लिया जा सकता है। भारत व पाकिस्तान के बीच में साल 1948 को छोटा सा जल विवाद हुआ था जब भारत ने पाकिस्तान की ओर पानी का प्रवाह दबा दिया था।
विभाजन के समय भारत को फायदे के रूप में हेडवाटर अपने क्षेत्र में मिला। बाद में पाकिस्तान ने सिंचाई के लिए जल उपलब्ध करवाने के लिए भारत को कहा। लेकिन भारत ने पानी के लिए पाकिस्तान के हिस्से को सीमित रखा। बाद में अंतरराष्ट्रीय समुदाय (विश्व बैंक) ने भारत व पाकिस्तान के बीच साल 1960 में सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) करवाई।
दोनों देश बढ़ रहे है जल युद्ध की तरफ
भारत व पाकिस्तान दोनों ही देश परमाणु शक्ति से सम्पन्न है लेकिन पारंपरिक युद्ध दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच की होने की संभावना नहीं लग रही है। ऐसे में दोनों देशों के बीच जल विवाद से जल युद्ध जरूर हो सकता है।
वुल्लार बैराज, किशनगंगा प्रोजेक्ट, बग्लीहार बांध सहित दर्जनों अन्य छोटे और मध्यम स्तर की जलविद्युत और सिंचाई परियोजनाएं भारत का उदाहरण है जो कि पाकिस्तान को पानी पहुंचाने में बाधा का काम कर रही है।
भारत इन परियोजनाओं के जरिए पानी अपने क्षेत्र में पहुंचा रहा है। जबकि पाकिस्तान का कहना है कि उसे जरूरत के हिसाब से पानी की ज्यादा जरूरत है।
एशियाई विकास बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत के पास जल संसाधनों की उपलब्धता है लेकिन पाकिस्तान की भंडारण क्षमता 30 दिन की आपूर्ति के जितनी ही सीमित है, जो कि अनुमानित 1000 दिनों की भंडारण क्षमता से काफी कम है। इसलिए सिंधु नदी से पाकिस्तान को पानी की ज्यादा जरूरत है।
चीनी प्रतिशोध के रूप में हो सकता है बदला
भारत जानता है कि पाकिस्तान में चीन की भूमिका लगातार बढ़ रही है। चीन सीपीईसी के जरिए पाकिस्तान में अपनी कई परियोजनाओं को बनाना चाहता है।
चीन सीपीईसी के जरिए कोयला आधारित परियोजना तो चला ही रहा है साथ ही में पाकिस्तान में कुछ जलविद्युत परियोजना जैसे सुकी किनारी और करोट में भी निवेश कर रहा है।
इसलिए भारत की कोशिश है कि पाकिस्तान को पानी का प्रवाह कम देकर इन जलविद्युत परियोजना को रोक लिया जाए। पाकिस्तान व चीन अच्छी तरह से जानते है कि अगर भारत ने जल प्रवाह रोक दिया तो ये परियोजना खतरे में पड़ जाएगी।
पिछले साल चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी को अवरुद्ध कर दिया था जिससे भारत को झटका मिला था। ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से शुरू होकर अरूणाचल प्रदेश, असम और फिर बांग्लादेश में बहती है।
चीन व भारत के बीच में अभी तक कोई जल संधि नहीं है। हालांकि, दोनों ने साल 2013 में एक विशेषज्ञ स्तर तंत्र की स्थापना की है जिसके द्वारा बीजिंग जल प्रवाह संबंधी डेटा भारत को प्रदान करेगा।