Wed. May 8th, 2024
    पाकिस्तान

    पाकिस्तान में 20 सालो के बाद भी कारगिल जंग में विस्थापित हुए नागरिकों का अभी भी पुनर्वास करना बाकी है। यह लोग अभी भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं और पुनर्वास के लिए पाकिस्तानी विभागों का इंतज़ार कर रहे हैं। पाकिस्तान अधिग्रहित कश्मीर के गनोख से भाग गयी जैनब बीबी अधिकारीयों के वादों को  पूरा किये जाने का इंतज़ार कर रही है जबकि लाइन ऑफ़ कंट्रोल की दूसरी तरफ उनकी जिंदगियां तबाह हो रखी है।

    कारगिल युद्ध

    जैनब ने ब्रितानी ब्रॉडकास्टर ने कहा कि “हम घर पर थे और यह रात का समय था, रात के करीब 8 बजे थे। हमने देखा कि पहाड़ो के ऊपर से बमबारी की जा रही थी तो हम बंकर की तरफ चले गए थे। खर्मंग घाटी से करीब 20000 लोग भाग गए थे। पाकिस्तान की सेना ने एक अभियान की शुरुआत की थी और यह पूर्ण संघर्ष में तब्दील हो गया था। इससे हार हुई और ये बेहद शर्मनाक था और 50 साल में तीसरी बार तख्तापलट को न्योता दिया था।”

    दो दशको में विस्थापित हुई आबादी की संख्या दोगुनी हो गयी है, इसमें से करीब 70 प्रतिशत अभी भी वापस लौटने के लिए इंतज़ार कर रहे हैं। उन्हें उनके नुकसान के लिए मुआवजा नहीं दिया गया था, बल्कि पाकिस्तानी सेना ने उनकी जमीनों पर नियंत्रण कर लिया था। बमबारी और माइंस ने उनके घरो रो रहने योग्य नहीं छोड़ा था।

    पाकिस्तान के मानव अधिकार कमीशन के सदस्य वजीर फरमान ने कहा कि “इसका कारण सरकार द्वारा किसी भी पुनर्वास कार्यक्रम की गैर मौजूदगी है या क्योंकि उनकी जमीनों पर पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण कर लिया है।”

    फ्रंटलाइन के करीब गंगानी, ब्रोल्मो और बदिगम ब्रेसल युद्ध में पूरी तरह तबाह हो गया था। पाकिस्तान की सेना ने इस इलाके में बैरक और बंकर को स्थापित किया था। खान ने रिपोर्ट किया था कि “स्कार्डू में गाँव के निवासियों ने साल 2003 और 2004 में प्रदर्शन से जिला प्रशासन को नुकसान का आंकलन करने के लिए सैन्य अधिकारीयों की एक टीम को नियुक्त किया गया था।”

    साल 2010 में तीन गाँवों को लिए 11 करोड़ रूपए की राशि मुआवजे के लिए जारी की गयी थी लेकिन इस पैसे को कभी दिया नहीं गया था। इस गाँव से विस्थापित एक निवासी ने कहा कि “स्कार्डू में हमने सेना के कमांडर से मुलाकात की थी। हमने रक्षा और कश्मीर मंत्रालय के अधिकारीयों से इस मसले पर चर्चा के लिए इस्लामाबाद की यात्रा की थी।”

    उन्होंने कहा कि “सेना एन हमसे कहा था कि सरकार हमें पैसा देगी। कश्मीर मंत्रालय ने कहा कि गिलगिट बाल्टिस्तान सरकार देगी। फिर कहा कि सरकार देगी। हमने साल 2012 तक इस मामले का पीछा किया था और आखिरकार हमने हार मान ली थी।”

     

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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