हिंदुस्तान के बंटवारे के बाद मुस्लिम बहुल होने के बावजूद जम्मू कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा न बन सका था। इस जख्म का प्रतिशोध लेने के लिए पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर को सैनिकों को आदिवासियों की पोशाक में जम्मू कश्मीर की सरजमीं पर हमला करने के लिए भेज दिया था।
उस हमले के दौरान कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान का अधिग्रहण है जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके कहते हैं। पीओके के इलाके गिलगिट बल्तिस्तान और अन्य पाकिस्तान के हिस्सों में 22 अक्टूबर को ब्लैक डे यानी काला दिवस के रूप में मनाया गया।
काले दिवस का प्रदर्शन मुजफ्फराबाद, रावलकोट, कोटली, गिलगिट, रावलपिंडी और अन्य भागों में हुआ था। नागरिकों की एक विशाल संख्या काले दिवस की 71 वीं सालगिरह पर प्रदर्शन कर रहे थे।
ट्विटर पर भी लोगों नें जमकर पाकिस्तान की क्लास लगाई।
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जम्मू-कश्मीर अवामी वर्कर पार्टी ने रावलपिंडी में प्रेस क्लब के बाहर जमकर प्रदर्शन किया। पार्टी के प्रमुख ने बताया कि पाकिस्तान द्वारा 22 अक्टूबर 1947 को कश्मीर में हुए आक्रमण के बाद हुए समझौते का उल्लंघन कर रहा है। उन्होंने कहा पाकिस्तान के आदिवासियों ने कश्मीर में नरसंहार, लूटपाट और दुष्कर्म जैसे कुकर्म किये थे। जिसके बाद महाराज हरि सिंह को भारत से मदद की गुहार लगानी पड़ी थी।
अध्यक्ष निसार शाह ने कहा कि हमलावरों ने न सिर्फ नरसंहार किया बल्कि हमारी औरतों की गरिमा का भी अनादर किया था। जब हमलावरों का गुट श्रीनगर के करीब पहुंच गया तब महाराज हरि सिंह ने भारतीय सहायता ली। महाराज को भारत में शामिल होने वाले दस्तवेज इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एकसेशन यानी भारत में सम्मिलित होने की मंज़ूरी पर दस्तखत कर दिए थे। भारत ने 26 अक्टूबर 1947 को आक्रमणकारियों से संरक्षण के लिए महाराजा को विवश कर दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवाएं थे।
प्रदर्शनकारियों ने पाकिस्तान की मीडिया को जम्मू-कश्मीर की गलत सूचना प्रसारित करने लिए लताड़ा था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान यूएन के प्रस्ताव का पालन नहीं करता है। उन्होंने कहा कि कश्मीर से पाकिस्तान के सैनिकों को तत्काल हटाया जाए।
उन्होंने कश्मीर पर पाकिस्तान के अधिग्रहण को खत्म करने की बात कही थी। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान नीलम-झेलम नदी पर बाँध का निर्माण कर कश्मीर के संसाधनों को बर्बाद कर रहा है।