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    अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन व जबरन विवाह के लिए कुख्यात पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक ईसाई परिवार अपनी एक नाबालिग लड़की की तलाश में जगह-जगह गुहार लगा रहा है। 10 अक्टूबर 2019 को लापता हुई 15 वर्षीय ईसाई लड़की हुमा का अभी तक पता नहीं चल सका है।

    पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि लड़की की मां नगीना योनस ने कराची प्रेस क्लब में मानवाधिकार संगठनों के कई प्रसिद्ध सदस्यों के साथ मीडिया को अपनी आपबीती सुनाई।

    उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि हाल में ऐसे कई लोग गिरफ्तार हुए हैं जो सिंध के बाल विवाह विरोधी कानून का उल्लंघन करते हुए नाबालिग से शादी करते या करवाते पकड़े गए। लेकिन, यही तत्परता और गंभीरता अल्पसंख्यक समुदाय की बच्चियों के अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन और जबरन विवाह के मामले में नहीं दिखाई दे रही है। कानून सभी के लिए बराबर होना चाहिए, चाहे कोई मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम।

    कराची की रहने वाली नगीना ने कहा कि कक्षा आठ में पढ़ने वाली उनकी 15 वर्षीय बेटी हुमा का बीते साल दस अक्टूबर को अपहरण कर लिया गया। कुछ दिन के बाद उन्हें घर पर कुछ दस्तावेज मिले जिनमें उनकी बेटी के धर्म परिवर्तन और उसके विवाह के प्रमाणपत्र थे। इसमें उन्हें बताया गया कि उनकी बेटी की शादी कराची में 600 किलोमीटर दूर रहने वाले एक मुस्लिम व्यक्ति से हो गई है।

    नगीना ने बताया कि उनकी बेटी को अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान पेश होना था, लेकिन वह पेश नहीं हुई। उन्होंने कहा, “हम सभी परिवार वाले परेशान हैं और यह नहीं जानते कि वह (हुमा) जिंदा भी है या नहीं।”

    इस मौके पर मौजूद कई मानवाधिकार हस्तियों ने कहा कि वे इस मामले में अपनी तरफ से मदद में कोई कसर नहीं छोडें़गे।

    औरत फाउंडेशन से संबद्ध मेहनाज रहमान ने कहा कि सिविल सोसाइटी के अथक संघर्षो के बाद सिंध में बाल विवाह निषेध कानून लागू हुआ लेकिन अफसोस की बात है कि अब उस पर ठीक से अमल नहीं हो रहा है। हुमा के मामले में अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

    मानवाधिकार कार्यकर्ता जाहिद फारूक ने कहा कि पाकिस्तान में 18 साल से पहले ड्राइविंग लाइसेंस नहीं मिलता, वोट देने का अधिकार नहीं मिलता तो फिर इस उम्र से पहले किसी को धर्म परिवर्तन या विवाह करने कैसे दे दिया जाता है?

    हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता जयपाल छाबड़िया ने इस तरह के मामलों में उन सांसदों-विधायकों की चुप्पी पर सवाल उठाया, जो अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित सीटों पर चुने जाते हैं। उन्होंने कहा कि सभी सरकारें अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने में नाकाम रही हैं और इस वजह से देश की बदनामी हुई है।

    हुमा के परिवार और मानवाधिकार संगठनों ने बीते महीने भी कराची में प्रदर्शन कर इस मामले को उठाया था।

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