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    नरेंद्र मोदी

    पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी दफा जीत से पाकिस्तानी मीडिया में मिलीजुली प्रतिक्रिया है कुछ के मुताबिक यह सहानुभूतिक शासनदेश है और अन्य के मुताबिक वैश्विक समुदाय में दक्षिणपंथियों की जीत ट्रेंड बनकर उभरा है। डॉन के पहले पेज पर प्रकाशित संपादकीय के मुताबिक मोदी की जीत सहानुभूति से आयी है , उन्होंने खुद को बालाकोट हवाई हमले का कोरिओग्राफर करार दिया था।

    नई दिल्ली की अगली सरकार भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर तय करेगी जो पुलवामा आतंकी हमले के बाद सबसे निम्न स्तर पर है। अभियान के दौरान मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले का हव्वा बना दिया था। डॉन में प्रकाशित लेख में मोदी की सफलता के बाबत लिखा था और इसे सांप्रदायिक राजनीति की जीत करार दिया था।

    सम्पादकीय के मुताबिक विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का भविष्य सांप्रदायिक राजनीति से तय होगा। चुनावो के नतीजे सामने आने के बाद एक बार फिर मोदी सरकार पांच वर्षों सत्ता पर शासित होगी। अति राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा को संसदीय चुनावो में एकतरफा जीत मिली है।

    पाक अखबार ने लोकसभा चुनावो के नतीजों को हैरतअंगेज करार दिया है। इसके मुताबिक, यह स्पष्ट है कि चुनावो में जीत के लिए और मतदाताओं का ध्यान खींचने के लिए धार्मिक नफरत और सांप्रदायिक राजनीति को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। इस बात को नजरंअदाज नहीं किया जा सकता है कि पीएम मोदी का सम्पूर्ण चुनाव प्रचार मुस्लिमों और पाकिस्तानियों के खिलाफ रहा है।

    भारत ने न सिर्फ पाकिस्तान के साथ तनाव में इजाफा किया वल्कि चुनाव में इसका भरपूर फायदा भी उठाया था। भारतीय आवाम की भावनाओ को भड़काने के लिए उन्होंने हवाई हमले के आदेश दिए लेकिन चुनावी नतीजों के साथ ही इसका अंत हो चुका है।

    लेख के मुताबिक, उम्मीद है कि मोदी सरकार इस बार धार्मिक हिन्दू कट्टरपंथियों पर लगाम लगाएगी इसके आलावा पीएम मोदी पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए आगे आएंगे। हाल ही में पाक विदेश म्नत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारतीय समकक्षी सुषमा स्वराज से मुलाकात की थी। पाकिस्तान ने सिलसिलेवार भारत से वार्ता के लिए आगे आने की दरख्वास्त की थी।

    इस मुलाकात के बाद दोनों देशों में रमजान के बाद बातचीत शुरू होने की उम्मीद जाग गयी है। अखबार के मुताबिक, भारत के पूर्व के अनुभवों से यह कहना मुश्किल होगा कि वह वार्ता के लिए संजीदा नहीं है। पुलवामा हमले से पूर्व पाकिस्तानी पीएम ने करतारपुर गलियारे के शिलान्यास समारोह में भारतीय दल को न्योता दिया था लेकिन इसमें सुषमा स्वराज ने जाने से इंकार दिया था।

    इसके बाद भारत ने पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया। पीटीआई  की सरकार बनने के बाद खान ने कई बार भारत से बातचीत के लिए आग्रह किया था और पीएम मोदी को शान्ति स्थापित करने का ऑफर भी दिया था लेकिन भारत ने इसे ठुकरा दिया था। भारत अभी भी वार्ता और आतंकवाद एक साथ न होने की प्रतिबद्धता पर अडिग है।

    लेख के मुताबिक, यह कहना जल्दबाज़ी होगी की पीएम मोदी और इमरान खान दोनों मुल्कों के बीच बातचीत के लिए उपयुक्त थे या नहीं। लेकिन अब यह पूरी प्रक्रिया भारत पर निर्भर है क्योंकि क्षेत्र में शान्ति स्थापित करने में सबसे बड़ी अड़चन भारत ही है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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