केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने गुरुवार को दिल्ली और पड़ोसी राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक बुलाई जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी नही हो।
ना सिर्फ मौसम संबंधी स्थितियां प्रदूषण को बढ़ाती हैं, वाहनों, थर्मल प्लांटों से उत्सर्जन और पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई से पहले चावल की भूसी को जलाना, सर्दियों में राष्ट्रीय राजधानी और कई शहरों में होने वाले हानिकारक वायु प्रदूषण के प्रमुख मानव निर्मित कारण हैं। इन राज्यों से कई शहर सबसे खराब हवा वाले स्थानों की वैश्विक सूची में सबसे ऊपर आते हैं।
हालांकि गुरुवार की बैठक के बाद कोई नए उपायों की घोषणा नहीं की गई लेकिन मौजूदा कार्यक्रमों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
हरियाणा सरकार किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए 200 करोड़ रुपये खर्च करेगी। उत्तर प्रदेश एक कार्बनिक रसायन को “डीकंपोजर” के रूप में तैनात कर रहा है जो एकत्रित भूसे को भंग कर खाद में बदल देगा। हालांकि पिछले साल छोटे पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे, इस साल राज्य इन कार्यक्रमों को कम से कम छह लाख एकड़, हरियाणा सरकार एक लाख एकड़, पंजाब पांच लाख एकड़ और दिल्ली 4,000 एकड़ में तैनात करेगी।
अन्य उपाय जो इस वर्ष सुदृढ़ किए जा रहे हैं, उनमे शामिल हैं: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में कोयला संयंत्रों में पूरक ईंधन के रूप में 50% धान के भूसे के साथ बायो-मास के उपयोग को अनिवार्य करना और एक समिति का गठन करना जो राजस्थान और गुजरात में मवेशियों के चारे के रूप में पराली को पुनर्व्यवस्थित करने के तरीकों पर गौर करेगी।
अगस्त में संसद के एक अधिनियम के माध्यम से एक कार्यकारी निकाय बन गये एनसीआर और आस-पास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता सुधार आयोग इन योजनाओं का पालन सुनिश्चित करने के लिए इन राज्यों के साथ अक्सर अनुवर्ती कार्रवाई कर रहा है।
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने संवाददाताओं से कहा कि, “स्वच्छ हवा सभी राज्यों के हित में है और ये राजनीति से परे के मुद्दे हैं। आज की बैठक में सभी प्रतिनिधियों ने उन योजनाओं को लागू करने पर सहमति व्यक्त की है जो किसानों की सहायता करेंगे और हवा को खराब नहीं करेंगे।”