कितना अच्छा होगा, अगर दिल्ली की हवा को अत्यधिक प्रदूषित करने वाले पराली को जलाने के बदले उसका किसी और काम में उपयोग किया जाए?
स्वीडन ने पराली को हरित कोयला या ऊर्जा पैलेट्स में बदलने का उपाय सुझाया है, जिसका ईंधन के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है।
सोमवार को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आगंतुक स्वीडन के राजा कार्ल सोलहवें गुस्ताफ पंजाब के मोहाली में बटन दबाकर धान की पराली से हरित कोयला बनाने की पायलट परियोजना की आधिकारिक रूप से शुरुआत करेंगे। इस परियोजना में स्वीडिश कंपनी बावेनडेव सहयोग करेगी।
इस वर्ष जनवरी में, मोहाली में राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई) ने पायलट परियोजना की स्थापना के लिए स्वीडन की कंपनी बावेनडेव एबी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।
भारत सरकार और बावेनडेव एबी के बीच परियोजना को लेकर 50-50 की साझेदारी है।
स्वीडन के राजदूत क्लास मोलिन ने आईएएनएस को बताया, “वन-कचरे को ऊर्जा पैलेट्स में तब्दील करने में माहिर स्वीडन की कंपनी के पास धान या गेहूं की पराली के सही उपयोग की क्षमता है।”
राजदूत ने कहा, “मोहाली में धान की पराली को ऊर्जा पैलेट्स में तब्दील करने के लिए एक बड़ा संयंत्र स्थापित किया गया है।”
इस संयंत्र में टोरीफेक्शन प्रक्रिया अपनाई जाएगी। यह बायोमास को कोयला जैसी सामग्री में तब्दील करने की प्रक्रिया है। हरित कोयला कोई कार्बन फुटप्रिंट नहीं छोड़ता।
बावेनडेव की वेबसाइट के अनुसार, भारत में हर साल 3.5 करोड़ टन धान की ऊर्जा बेकार हो जाती है। इसे जैव कोयले में तब्दील किया जा सकता है और इसे 2.1 करोड़ टन जीवाश्म कोयले में तब्दील किया जा सकता है।
इस प्रक्रिया से न केवल हरित पैलेट्स बनेंगे, बल्कि पराली को अन्य उपयोगी विकल्पों जैसे टैबल मेट्स, सजावटी समान, लैंप शेड्स इत्यादि में भी तब्दील किया जा सकेगा।
स्वीडन के राजा, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के निमंत्रण पर 2 दिसंबर से 6 दिसंबर के बीच भारत दौरे पर आने वाले हैं। वह नई दिल्ली, मुंबई और उत्तराखंड राज्य का भी दौरा करेंगे।