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    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि तमिलनाडु सहित अन्य प्रदेशों के पटाखा उद्योगों में सीबीआई द्वारा की गई प्रारंभिक जांच में बेरियम और इसके लवण जैसे जहरीले तत्वों के उपयोग पर प्रतिबंध के बड़े पैमाने पर उल्लंघन का पता चला है।

    मार्च 2020 में अदालत ने चेन्नई में सीबीआई के संयुक्त निदेशक को 2018 में अदालती प्रतिबंध के उल्लंघन के आरोपों की “विस्तृत” जांच करने का आदेश दिया। सीबीआई ने अदालत में एक सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट दायर की थी।

    जस्टिस एमआर शाह की अगुवाई वाली बेंच ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि तैयार और अर्ध-निर्मित पटाखों और निर्माताओं से लिए गए कच्चे माल के नमूनों के रासायनिक विश्लेषण में बेरियम की मात्रा दिखाई दी। अदालत ने कहा कि बेरियम की भारी मात्रा बाजार से खरीदी गई। पटाखों के कवरों पर निर्माण या एक्सपायरी तिथि नहीं दिखाई गई थी।

    अदालत ने चर्चा की कि निर्माताओं को कारण बताने के लिए क्यों नहीं कहा जाना चाहिए और उनके खिलाफ अवमानना ​​की कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए।

    न्यायमूर्ति शाह ने टिप्पणी की कि, “हर दिन एक उत्सव होता है लेकिन आपको अपने आस-पास रहने वाले लोगों के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए, खासतौर पर जिन लोगों को अस्थमा है।” अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए छह अक्टूबर की तिथि निर्धारित की है।

    मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया निर्माताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि हजारों कर्मचारी उद्योग में अपनी आजीविका कमाते हैं।

    न्यायमूर्ति शाह ने जवाब दिया कि: “हमें रोजगार, बेरोजगारी और नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार के बीच संतुलन बनाना होगा। हम चंद लोगों के लिए बहुतों की जान कुर्बान नहीं कर सकते। हमारा मुख्य फोकस निर्दोष लोगों के जीवन का अधिकार है।”

    शादी के मौसम और दशहरा और दीपावली जैसे त्योहारों की शुरुआत के साथ इस मामले को महत्व मिला। जस्टिस शाह के साथ जस्टिस ए.एस. बोपन्ना इस बेंच में शामिल थे।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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