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    भारत के बैंक

    बैंकों ने कुछ समय पहले अपने ग्राहकों को बताया था कि वो अपने अकाउंट में बैंक द्वारा निश्चित न्यूनतम राशि जरूर रखें। जो ग्राहक ऐसा नहीं कर पाते हैं तो बैंक उनसे हर्जना वसूलती है। यह प्रक्रिया सरकारी और प्राइवेट दोनों ही तरह की बैंके अपनातीं हैं।

    सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों ने इस दौरान करीब 3,551 करोड़ रुपये अपने ग्राहकों से उनके खातों में न्यूनतम बैलेन्स न रख पाने की शर्त पर वसूले हैं।

    बैंकों का तर्क है कि इस तरह के चार्ज ग्राहकों के खातों की सर्विसिंग के एवज़ में वसूले जाते हैं।

    वित्त मंत्रालय के अनुसार पिछले चार सालों में 21 सरकारी व तीन प्राइवेट सेक्टर की बैंकों ने मिल कर खाते में न्यूनतम राशि न होने के एवज़ में ग्राहकों से करीब 11,500 करोड़ रुपये वसूले हैं।

    अकेले एसबीआई ने वर्ष 2017-2018 के दौरान अपने ग्राहकों से करीब 2500 करोड़ रुपये शुल्क के रूप में वसूले हैं।

    इसी के साथ अब सभी बैंक इस शुल्क को लेकर लोगों के बीच बन चुकी नकारात्मक सोंच को रोकना चाहतीं हैं। वर्ष 2015 में आरबीआई ने कहा था कि सभी बैंक अपने ग्राहकों के खाते के रखरखाव के एवज़ में ग्राहक से लिए जाने वाले शुल्क की सीमा तय करें।

    आम तौर पर खाते के प्रबंधन के लिए ग्राहक को 5 रुपये से 15 रुपये तक बैंक को देना होता है।

    एसबीआई ने अपने ग्राहकों के लिए खाते में होने वाली न्यूनतम राशि की मात्रा मेट्रो शहरों में 3,000 रुपये, अर्ध शहरी इलाकों में 2,000 रुपये व ग्रामीण इलाकों में 1,000 रुपये रखी है।

    इसी के साथ प्राइवेट सेक्टर के दिग्गज बैंक एचडीएफ़सी ने यही लिमिट शहरी इलाकों में 10,000 रुपये, अर्ध शहरी इलाकों में 5,000 रुपये व ग्रामीण इलाकों में 2,500 रुपये रखी है।

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