नामुरा के इमर्जिंग मार्केट्स इकनॉमिक्स चीफ रॉबर्ट सुब्बारमण के अनुसार, साल 2018 में भारत की जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी रह सकती है। उन्होंने आगे कहा कि साल 2018 की पहली तिमाही में एशियाई देशों की इकॉनोमी बढ़िया रहने की उम्मीद है। एशियाई देशों के निर्यात सेक्टर में भी इजाफा देखने को मिलेगा।
रॉबर्ट सुब्बारमण ने कहा कि भले ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बैलेंस शीट घटानी शुरू कर दी है लेकिन यूरोपियन सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ जापान द्वारा बॉन्ड बायबैक करना अभी भी जारी है। ऐसे में उम्मीद है कि एशियाई देशों में विदेशी विनिवेश जारी रहेगा। हांलाकि साल 2018 की दूसरी और तिमाही में हमें थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि निवेशक इस अवधि में अपना निवेश थोड़ा कम कर सकते हैं।
सेंट्रल बैंकों की मॉनेटरी पॉलिसी तथा संरक्षणवादी नीति का प्रभाव
बड़े सेंट्रल बैंक बहुत तेजी से अपनी मॉनेटरी पॉलिसी को नॉर्मल लेवल पर ला रहे हैं, इसका बुरा असर एशियाई देशों पर आसानी से देखा जा सकता है। जहां एक ओर अमेरिका संरक्षणवाद को बढ़ावा दे रहा है, वहीं चीन अब क्वांटिटी की अपेक्षा क्वॉलिटी ग्रोथ पर ज्यादा ध्यान दे रहा है।
साल 2018 की भारतीय अर्थव्यवस्था की ओर संकेत देते हुए सुब्बारमण ने कहा कि भारत की इकॉनोमी तेजी से आगे बढ़ेगी, देश की अर्थव्यवस्था नोटबंदी के धक्के, जीएसटी अैर बैंक फंडिंग जैसे कार्यक्रमों से उबर चुकी है, ऐसे में साइक्लिकल रिकवरी के दौरान देश की जीडीपी ग्रोथ तेज हो सकती है।
उन्होंने कहा कि अगले साल की पहली छमाही में इंडिया की जीडीपी ग्रोथ रेट 7.8 फीसदी रह सकती है। जहां तक साल 2018 की बात है, इंडिया की इकॉनोमी ग्रोथ 7.5 फीसदी पर सुरक्षित रहेगी। इंडियन इकॉनोमी पर अमेरिका के संरक्षणवाद, चीन की इकॉनोमी, और सेंट्रल बैंकों की पॉलिसी का कुछ खास नहीं दिखाई देने वाला है।
जीडीपी को लेकर साल 2018 इंडिया के लिए शुभ संकेत
साल 2018 इंडिया के लकी साबित हो सकता है, क्योंकि इस साल भारत की जीडीपी ग्रोथ काफी तेज हो सकती है। सबसे बड़ी बात की यह जीडीपी ग्रोथ काफी टिकाउ होगी। बैलेंस संतुलन, वित्तीय घाटे में गिरावट तथा मुद्रास्फीति बेहतर देखने को मिलेगी। भारत की ग्रोथ रेट अन्य देशों से बेहतर दिख सकती है। सुब्बामरण ने कहा कि चीन के ग्रोथ रेट 6.4 के मुकाबले भारत की ग्रोथ रेट 7.5 फीसदी होने की उम्मीद है। वहीं साल 2019 में भारत की ग्रोथ रेट 7.3 फीसदी होगी तो चीन की 6.1 फीसदी।
मुद्रास्फीति के आंकड़े
वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 65 डॉलर प्रति डॉलर रहने की उम्मीद है, अगर यह कीमत बरकरार रही तो भारत के लिए कोई चिंता की बात नहीं लेकिन कच्चे तेल की कीमत जैसे बढ़ेगी, देश की मुद्रास्फीति में उछाल देखने को मिल सकता है। ठीक इसके विपरीत साल 2018 में चीन को मंदी का सामना करना पड़ सकता है। फिलहाल साल 2018 की दूसरी छमाही में भारत की घरेलू जोखिम बढ़ सकती है।
नोमुरा हेड ने कहा कि वैश्विक स्तर पर आई तेजी की वजह से तेल की कीमतें बढ़ी हैं। हांलाकि आगामी समय में खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि इस समय जिस हिसाब से देश में सब्जी की कीमतें सातवें आसमान पर हैं, उस हिसाब से निकट भविष्य में मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
साल 2018 की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति 5 फीसदी तक हो सकती है। लेकिन सुब्बारमण ने उम्मीद जताते हुए कहा कि साल 2018 की समेकित औसत मुद्रास्फीति 4.6 प्रतिशत देखने को मिलेगी। रिजर्व बैंक साल 2018 में भी ब्याज दरों में कुछ विशेष बदलाव नहीं कर सकता है।