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नोटबंदी के बाद रोजगार सृजन का आंकड़ा

श्रम ब्यूरो की ओर से जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल नवंबर महीने में सरकार द्वारा लागू की गई नोटबंदी के बाद जहां स्थायी रोजगार सृजन में निरंतरता जारी रही, वहीं दैनिक मजदूरी और संविदात्मक नौकरियों के अवसर में भारी कमी देखी गई।

श्रम ब्यूरो की रोजगार को लेकर जारी पांचवीं तिमाही रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर-दिसंबर 2016 में कुल 122,000 रोजगार सृजन हुआ वहीं जुलाई-सितंबर 2017 यह आंकड़ा मात्र 185,000 रहा।

आपको बता दें कि श्रम ब्यूरो की यह रिपोर्ट आठ क्षेत्रों मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, व्यापार, परिवहन, आवास, रेस्तरां, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा तथा स्वास्थ्य विभाग से एकत्र की गई है। सर्वेक्षण के अनुसार, जनवरी-मार्च 2017 में स्थायी रोजगार सृजन की संख्या 197,000 रही जबकि अक्टूबर 2016 में यह आंकड़ा 139,000 पर रहा।

इन रोजगार क्षेत्रों में भारी गिरावट

पिछले साल की तिमाही में कॉन्ट्रक्ट श्रमिकों की संख्या 124,000 थी, जो जनवरी-मार्च 2017 में घटकर 26,000 पर आ गई। दिहाड़ी मजदूरों की संख्या अक्टूबर 2016 में 152,000 थी, जबकि जनवरी-मार्च 2017 में यह संख्या घटकर मात्र 53,000 रह गई।

विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले सरकार द्वारा 500 रूपए और 1000 रूपए के नोटों पर प्रतिबंध लगाने के बाद से लोगों ने रोजगार प्रवृत्ति में यह बदलाव देखने को मिला है।  आईजीसी निदेशक प्रणव सेन के अनुसार, नोटबंदी के बाद स्थायी रोजगार में इसलिए बढ़ोतरी देखने को मिली कि लोगों को चैक अथवा बैंक खातों के जरिए पेमेंट किया गया, वहीं संविदा और अनौपचारिक श्रमिकों को कैश भुगतान किया गया।

नोटबंदी के दौरान नोटों के किल्लत के चलते दिहाड़ी मजदूरों को नकदी मजदूरी अभाव का सामना करना पड़ रहा था, ऐसे में संविदात्मक और दिहाड़ी मजदूरों की संख्या में गिरावट देखने को मिली। विनिर्माण, व्यापार और आईटी क्षेत्रों में नौकरी सृजन में काफी धीमा रहा।

जनवरी-मार्च 2017 के बीच स्वास्थ्य कर्मचारियों को छोड़कर ठेका श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरी के क्षेत्र में रोजगार सृजन काफी धीमा रहा।
कंस्ट्रक्शन सेक्टर में जनवरी-मार्च करीब 2000 रोजगार सृजन हुआ जबकि पिछली तिमाही में यह संख्या 1000 थी। ठीक यहीं हाल मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का रहा जिसमें 102,000 रोजगार सृजन हुआ जबकि अक्टूबर 2016 के दौरान यह संख्या मात्र 83,000 रही। आईटी तथा एजुकेशन फील्ड में भी रोजगार सृजन काफी धीमा रहा।