8 नवंबर 2016 को देश में घोषित हुआ अब तक का सबसे बड़ा ‘आर्थिक आपातकाल’ जिसे देश ने नोटबंदी के रूप में याद रखा। टीवी पर इसकी घोषणा करते हुए तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ‘नोटबंदी एक ओर जहां कालेधन को जड़ से खत्म कर देगी, वहीं दूसरी ओर इससे आतंकवाद की फंडिंग पर भी लगाम लगेगी।’
नोटबंदी के साथ ही उस समय देश में रही कुल मुद्रा का 86 प्रतिशत हिस्सा चलन से बाहर कर दिया गया था। जिसकी कीमत 16 लाख करोड़ रुपये के आस-पास थी।
हालाँकि नोटबन्दी हुए लगभग 2 साल बीत चुके हैं। ऐसे में जनता ने सारे कष्ट उठाते हुए सरकार का सहयोग करती रही है। हालाँकि बाद के आंकड़ों में पाया गया कि बैंको में कुल प्रतिबंधित नोटों का करीब 99.3 फीसदी हिस्सा आ चुका है।
ऐसे में कितना काला धन आरबीआई के पास वापस पहुँच गया, अभी तक इसकी स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। दूसरी ओर सरकार भी यह आँकड़ा अभी तक पेश नहीं कर पायी है कि नोट बंदी से बैंकों में कितना काला धन जमा हुआ या नोटबंदी के पहले बाज़ार में कितना कालधन फैला हुआ था।
सरकार ने हालाँकि नोटबंदी के दौरान सामने आए आंकड़ों के आधार पर करीब 23.5 लाख लोगों को नोटिस भेजा है लेकिन अभी तक महज 1.5 लाख लोगों ने उस नोटिस के जवाब में अपना इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल किया है।
अब 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर भाजपा अपने शासनकाल में घटी सबसे बड़ी घटना ‘नोटबंदी’ को भुनाना चाह रही है। विपक्ष भले ही सरकार से नोटबंदी को लेकर सीधा सवाल न कर पाया हो लेकिन जनता हर बार यही सवाल कर रही है कि देश को नोट बंदी से क्या मिला?
इसके जवाब में केंद्र सरकार नोटबंदी के बाद हुई कर दाताओं की संख्या में बढ़ोतरी को अपनी कामयाबी का आधार बना रही है। इसके चलते सरकार यह प्रचार कर रही है कि नोट बंदी के बाद जो लोग काले धन को लेकर आगे रहते थे, वे अब कर के दायरे में आ चुके हैं।
लेकिन नोटबंदी के बाद भी जारी आतंकवादियों को फंडिंग व कश्मीर में लगातार बढ़ती जा रही पत्थरबाजी की घटनाओं को लेकर सरकार कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रही है।