चीन की महत्वकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर एंड कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट में नेपाल बेहद उत्साह से शामिल हुआ था पाकिस्तान के आलावा सिर्फ नेपाल ने ही बीआरआई के सम्मेलन में उच्च स्तर के प्रतिनिधि समूह को भेजा था। नेपाल-सिनो के करीबी संबंधों में भारत को भौंहे कड़ी करने पर मज़बूर कर दिया था।
नेपाल ने चीन के साथ ट्रेड एंड ट्रांजिट ट्रीटी के प्रोटोकॉल व्यवस्था पर हस्ताक्षर किये थे। यह समझौता नेपाल को चीन के सात बंदरगाहों को किसी तीसरे देश के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान करता है। अभी तक नेपाल सिर्फ भारतीय बंदरगाहों का इस्तेमाल करता था। अब बीआरआई में आधिकारिक तौर पर नेपाल केलिए कार्यक्रम है जो चीन-पाक आर्थिक गलियारे की तरह है।
चीन-नेपाल दोस्ती
इस सम्मेलन के दौरान “द नेपाल-चीन ट्रांस हिमालयन मल्टी डायमेंशनल कनेक्टिविटी कार्यक्रमों को शुरू करने का ऐलान किया गया था। बीआरआई के बैनर के तले नेपाल नौ परियोजनाओं न निर्माण करेगा। इसमें से एक रेल लिंक गई जो देश की राजधानी को चीनी सीमा से जोड़ेगा।”
चीनी बंदरगाहों से नेपाल की एकमात्र सड़क जुड़ती है और यह साल 2015 के भूकंप के दौरान क्षतिग्रस्त हो गयी थी। भारत के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर रहा है। भारत को सबसे पहले यह प्रदर्शित करना चाहिए कि वह चीन की तरह अपने वादों निभाता है। नेपाल में भारत के प्रमुख परियोजनाओं में देरी हो रही है और अगर भारत को खुद को एक विश्वसनीय विकास साझेदार में अपनी छवि को परिवर्तित करना है तो इसे बदलने की जरुरत है।
भारत के समक्ष “कम्युनिटी ऑफ़ शेयर्ड डेस्टिनी” का एक अलग संस्करण होना चाहिए जिसे चीन अपने बाहरी संबंधों में इस्तेमाल करता है। भारत के साथ व्यापार में नेपाल को भरे घाटा होता था। कृषि उत्पाद गैर शुल्क प्रवेश बाधाओं को झेल रहे हैं। सीमा की संरचनाओं को अपग्रेड करने की जरुरत है। नेपाल के साथ व्यापार करने का भारत का दृष्टिकोण मददगार नहीं रहा है। मसलन, साल 2015 में जैसे व्यापार बाधित हुआ था।
नेपाल की भारत से दूरी
साल 2016 में नोटबंदी के दौरान भारत ने नेपाली नागरिकों के समक्ष भारतीय मुद्रा को नहीं बदला था। भारत को अपने पड़ोसी मुल्कों को आर्थिक ताकत के रूप में उभरने का जश्न मानाने के लिए कारण देने चाहिए। भारत को अपने मौजूदा नजरिये में भी बदलाव की जरुरत है जैसे चीनी पक्ष या भारत पक्ष। नेपाल की जनता समृद्धता के लिए तरस रहीं हैं और विदेशी निवेश का मार्ग ही उन्हें वहां तक पंहुचा सकता है।
नेपाल एक कामयाब लोकतंत्र है और उसके नेता जनता के शासनादेश को मानते हैं। इसी कारण चीन के साथ कनेक्टिविटी नेपाल में एक मुदा है। अगर सत्ता में विपक्ष भी आसीन होता है तो भी वह चीन के साथ बेहतर सम्बन्धो की मौजूदा नीति से दूर नहीं होंगे।
भारत के लिए एकमात्र बेहतर विकल्प है कि वह “हमारे साथ या हमारे खिलाफ” के नजरिये को भूल जाए और अपने कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के विस्तार पर नेपाली सरकार के साथ मिलकर कार्य करे। नेपाल की भूगौलिक स्थित के कारण भारत अपने निवेश से अधिक प्रभाव डाल सकता है।