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    नेपाल में सियासी संकट चीन के लिए मुसीबत बना हुआ है। चीन नेपाल की राजनीति के जरिये नेपाल पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है यह बात किसी से छुपी नहीं है।  लेकिन नेपाल के आंतरिक राजनीतिक कलह में चीन परेशान होता दिख रहा है।

    नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी दो फाड़ हो चुकी है। प्रचंड और ओली  के बीच मतभेद के कारण नेपाल में संसद भंग हो चुकी है। अप्रैल में दोबारा चुनाव कराने की बात की जा रही है। इसी से परेशान होकर चीन ने अपने एक प्रतिनिधिमंडल को मध्यस्थता कराने के उद्देश्य से नेपाल भेजा। लेकिन उस समूह को भी कोई खास सफलता मिली हो ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा। इसी बीच भारत ने इस मामले पर तटस्थ रहना चुना है। लेकिन कमल दहल प्रचंड का कहना है कि उन्हें भारत की चुप्पी खल रही है। भारत को इस मामले पर कुछ बोलना चाहिए।

    चीन का 4 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल नेपाल के बिना बुलाए बुलाए ही वहां गया था। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन को यह एहसास हो चुका है कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में मची कलह आसानी से समाप्त नहीं होने वाली। इसलिए क्या वहां किसी नई रणनीति की आवश्यकता है या फिर कोई और हल निकाला जा सकता है, इसी बात का जवाब ढूंढ़ने के लिये वो दल वहां गया।

    इसी के चलते चीन ने  नेपाली कांग्रेस को साधना भी शुरू कर दिया है। चीन चाहता है कि नेपाल पर कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता बनी रहे ताकि चीन को अपनी मनमर्जियां चलाने में आसानी हो। इस राजनीतिक घमासान में  सबसे तीव्र योद्धा कमल दहल प्रचंड हैं। वे ओली सरकार की बात सुनने को तैयार नहीं हैं और उनका कहना है कि वे असंवैधानिक रूप से भंग की गई संसद के खिलाफ आवाज उठाएंगे।

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