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    भारत नेपाल

    नेपाल में आए ताजा चुनावों से सुनिश्चित हो गया है कि नेपाल में अगली सरकार वामपंथी-माओवादी गठबंधन की बनेगी। वहीं नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली नेपाल के अगले प्रधानमंत्री बनेंगे। पूर्व में जब केपी ओली की सरकार थी उस समय भारत व नेपाल के बीच में रिश्ते तनावपूर्ण रहे थे। दोनों देशों के बीच में काफी कमजोरी व कड़वाहट आ गई थी।

    भारत शुरूआत से ही नेपाल के साथ सदभावना से बेहद मजबूत दोस्ती का संबंध रखता आया है। लेकिन इसे नेपाल की राजनीति में भारत के हस्तक्षेप के तौर पर देखा जाने लगा है।

    नेपाल में जब भारतीय मूल मधेसियों को संविधान में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया तो मधेसियों ने नेपाल में जमकर विरोध प्रदर्शन किया था।

    जिसके बाद भारत ने नेपाल को दी जाने वाली सभी आवश्यक मदद पर तत्काल रोक लगा दी थी। नेपाल में वस्तुएं पहुंचाने पर भारत की नाकाबंदी ने नेपाल व भारत के रिश्ते को कमजोरी प्रदान की। तब नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली थे। तब से ही नेपाल का झुकाव चीन की तरफ हो गया है।

    केपी ओली सरकार के साथ मिलकर करना होगा काम

    भारत को नेपाल की नई सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए। कई सालों बाद नेपाल को आखिरकार एक स्थिर सरकार मिल सकती है। इसलिए भारत को चाहिए कि पिछले सालों में नेपाल के साथ कम हुए संबंधों को फिर से मजबूती प्रदान की जाए।

    नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री शेख बहादुर देउबा को भारत का समर्थक माना जाता है। लेकिन उनके जाने के बाद भारत के लिए स्थिति काफी मुश्किल हो सकती है।

    लेकिन पिछली बार जब 9 महीने के लिए कोली ने प्रधानमंत्री पद संभाला था तो उन्होंने ऐसे कदम उठाए जिससे नेपाल और भारत के रिश्तों में तनाव पैदा हो गया था। साल 2006 से नेपाल 10 प्रधानमंत्री देख चुका है।

    नेपाल भारत और चीन के बीच एक बफर के रूप में कार्य करता है लेकिन शुरूआत से ही भारत की तरफ नेपाल का पक्ष झुका हुआ रहता है। नेपाल व भारत के बीच में खुली सीमा है। जहां से भारत व नेपाल के नागरिक आसानी से आ-जा सकते है।

    नरेन्द्र मोदी सरकार ने साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप के समय में काफी कम समय में राहत सामग्री पहुंचाई थी। नेपाल एकमात्र ऐसा देश है, जिसका नागरिक भारतीय सेना में काम कर सकते है, साथ ही तीन स्टार जनरल के पद तक प्रमोशन प्राप्त कर सकता है।

    नेपाल के साथ पुराने वाले संबंधों को वापस लाना होगा

    नेपाल में केपी ओली की सरकार बनने के बाद भारत को विदेश नीति में आवश्यक बदलाव करते हुए नेपाल के साथ पुराने वाले संबंधों को फिर से लाने की कोशिश करनी होगी। नेपाल में पहले नई दिल्ली की भूमिका अधिक थी लेकिन अब ऐसा लगता है कि बीजिंग नेपाल की राजनीति में एक बड़ी भूमिका निभाएगा।

    यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि नेपाल में चीन का प्रभाव भारत की वजह से बढ़ा है। भारत की तरफ से जब नेपाल में वस्तुओं की नाकाबंदी करवाई थी तब से ही चीन ने नेपाल के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

    चीन का प्रभाव को करना होगा कम

    चीन ने नेपाल को अपने बंदरगाहों तक पहुंच दी है और संयुक्त रेल लिंक निर्माण के बारे में बात कर रही है। सबसे महत्वपूर्ण कदम यह है कि चीन भविष्य में पेट्रोलियम उत्पादों की नेपाल में आपूर्ति कर सकता है, जो अभी मुख्य रूप से भारत से हो रही है।

    नेपाल के साथ भारत को राजनियक संबंधों को मजबूत करना होगा। नेपाल की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर नई सरकार के साथ मिलकर काम करने की इच्छा भारत को रखनी चाहिए।

    साथ ही भारत को नेपाल की आंतरिक राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करनी चाहिए। भारत में वर्तमान में लाखों नेपाली काम रहे है। नई दिल्ली को नेपाल को भरोसा दिलाना होगा कि भारत उसकी सहायता के प्रति हमेशा से प्रतिबद्ध रहा है।