Thu. Dec 19th, 2024
    नेपाल पूर्व प्रधानमंत्री भारत चीन

    नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली के नेतृत्व में सीपीएन-यूएमएल व पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के नेतृत्व में सीपीएन माओवादी पार्टी के गठबंधन ने नेपाल चुनावों में कुल 91 सीटें हासिल की है। कुल 165 संसदीय सीटों में से सीपीएन-यूएमएल ने 66 सीटों पर जीत हासिल की है वहीं सीपीएन माओवादी पार्टी को 25 सीटों पर जीत मिली है।

    अब संभावना लग रही है कि नेपाल के अगले प्रधानमंत्री पद पर केपी ओली बन सकते है। अगर ऐसा होता है तो भारत व नेपाल के बीच विदेशी संबंधों में कड़वाहट उत्पन्न हो सकती है। दरअसल केपी ओली का झुकाव चीन के प्रति अधिक है। केपी ओली भारत की जगह पर चीन को तवज्जो देने लगे है।

    ऐसे में केपी ओली के नेतृत्व में वामपंथी गठबंधन की सरकार बनने पर भारत का मुख्य पड़ोसी देश चीन को अधिक मान्यता दे सकता है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली के कार्यकाल में नेपाल व भारत के बीच में कठिन संबंध था।

    जाहिर है भारत कि वर्तमान सरकार अपनी पड़ोसी नीति को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। जब नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने दक्षिण एशिया के सभी देशों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करने की सुनिश्चितता जताई थी। नरेन्द्र मोदी ने अपने पड़ोसी देश नेपाल का दो बार दौरा भी किया था।

    भारत व नेपाल की बीच थे मजबूत संबंध

    गौरतलब है कि जब 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भूकंप आया था तब मोदी सरकार ने अपने पड़ोसी देश नेपाल को कुछ घंटों में ही राहत सामग्री उपलब्ध करवाई थी। इसके अलावा भारत व नेपाल के बीच में इतने मजबूत संबंध है कि इनका बॉर्डर खुला है।

    इसके अलावा नेपाल के नागरिकों को आसानी से भारत में रहने दिया जाता है। इतना ही नहीं नेपाली नागरिक भारतीय सेना में काम करके तीन स्टार जनरल की स्थिति तक भी जा सकते है।

    लेकिन जब से भारत ने नेपाल में आर्थिक नाकाबंदी लागू किया है, तब से ही इनका रिश्ता अपेक्षाकृत कमजोर हो गया है। दरअसल नेपाल में केपी ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने संविधान संशोधन प्रस्ताव किया था। जिसको लेकर भारतीय मूल के मधेसी नेताओं ने कड़ा विरोध जताया था।

    बाद में भारत ने नेपाल को भेजने वाली सारी आर्थिक मदद को रोक दिया था। जिसके चलते नेपाल की हालात खराब हो गई थी। मजबूरन नेपाल को चीन का सहयोग लेना पड़ा था।

    नेपाल के वामपंथी गठबंधन ने तब से ही चीन के प्रति झुकाव दिखाना शुरू कर दिया। चीन की भी कोशिश थी कि भारत का मुख्य पड़ोसी देश नेपाल का संबंध किसी तरह से बिगड़ जाए व चीन को फायदा पहुंच सके।

    नेपाल में बढ़ेगा चीनी प्रभाव

    चीन में वर्तमान में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है। नेपाल में माओवादी व कम्युनिस्ट ने इस बार चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल किया है जिससे संभावना है कि नेपाल में अब चीन का प्रभाव अधिक होगा।

    चीन, नेपाल की सभी जरूरतों, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं व आर्थिक मदद पर ध्यान लगाए हुए है। नेपाल में वामपंथी सरकार आने का मतलब भारत से उचित दूरी बनाते हुए चीन के साथ नजदीकियां बढ़ाना माना जा रहा है। नेपाल में एक बार फिर चीनी सरकार की सक्रियता बढ़ेगी।

    नेपाल बना सकता है भारत की विदेश नीति चुनौतीपूर्ण

    मोदी सरकार ने नेतृत्व में भारत व नेपाल की विदेश नीति काफी गंभीर व चुनौतीपूर्ण रही थी। केपी ओली ने भारत दौरे के बाद चीन का दौरा किया था। नेपाल ने चीन के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे जिसमें चीनी बंदरगाहों के साथ-साथ नेपाल और चीन के बीच रेल संपर्कों का संभावित निर्माण शामिल था।

    साथ ही चीन ने नेपाल में पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति की संभावना के लिए भी प्रतिबद्धता जताई थी। नेपाल अपनी विदेश नीति को चीन के लिए अधिक महत्वपूर्ण बना रहा है। साथ ही नेपाल, भारत के ऊपर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश करेगा। भारत को नेपाल के प्रति अपनी विदेश नीति में आवश्यक परिवर्तन करना होगा।