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    नेपाल के सियासी गलियारों में एक बार फिर से उठापटक देखने को मिल रही है। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली ने कुछ समय पहले वहां की संसद को भंग कर दिया था। उसके बाद वहां के उच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए संसद को बहाल कर दिया है। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी दो फाड़ में हो चुकी है। ओली और प्रचंड के समर्थक दो अलग-अलग गुटों में नजर आ रहे हैं।

    के पी शर्मा ओली पर संसद भंग करने का दांव उल्टा पड़ चुका है। उनके इस फैसले को न्यायालय ने जब असंवैधानिक करार दिया है तो उनके राजनीतिक करियर के लिए यह अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अगले 8 मार्च तक प्रतिनिधि सभा की अगली बैठक कराने का आदेश दिया है। इस बैठक में के पी ओली को यदि सत्ता में बने रहना है तो अपने लिए बहुमत साबित करना होगा। उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 55 और सांसदों की आवश्यकता है। लेकिन 8 मार्च तक ओली इतने सांसदों को अपने खेमे में नहीं खींच पाएंगे। वही पुष्प कमल दहल प्रचंड माधव नेपाल गुट के साथ मिलकर 90 सदस्य बना चुके हैं। यदि केपी शर्मा ओली बहुमत साबित नहीं कर पाते तो यह उनके राजनीतिक करियर के अस्त का संकेत होगा।

    फिलहाल संसद पहले की तरह ही चलेगी और जिस हिसाब से राजनीतिक दल चाहते हैं वैसे ही चलेगी। संसदीय सचिवालय के हवाले से खबर है कि संसद के नए सत्र की तैयारी पूरी हो चुकी है। नए सत्र के लिए सांसदों को बुलाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। इस परिस्थिति में यदि के पी ओली बहुमत साबित नहीं कर पाते हैं, तो यदि वे इस्तीफा दे देना चाहें तो नए सिरे से सरकार का गठन किया जा सकता है।

    लेकिन यदि वे इस्तीफा नहीं देते तो नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन की स्थिति आएगी। हालांकि अभी निर्वाचन आयोग ने कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन को मान्यता नहीं दी है। नेपाल में विपक्ष में बैठी कांग्रेस के पास 63 सीटें हैं। ओली को बहुमत के लिए 55 सांसदों की आवश्यकता है। यदि नेपाली कांग्रेस के पी ओली के गुट को समर्थन दे देती है तो यह अस्थिरता खत्म हो सकती है और के पी ओली दोबारा प्रधानमंत्री बन सकते हैंं। लेकिन नेपाली कांग्रेस पार्टी का इस मामले पर क्या रुख रहेगा, यह अभी साफ नहीं है।

    के पी ओली की राजनीति चीन से काफी प्रभावित रहती है। इसके कारण ही वहां आज राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है। भारत के पड़ोसी देश होने के कारण भारत पर भी इस अस्थिरता का प्रभाव पड़ेगा। हालांकि भारत ने अभी तक इस मामले पर कोई हस्तक्षेप नहीं किया है। नेपाल की कांग्रेस पार्टी इस वक्त किंग मेकर बन सकती है। हालांकि वह पार्टी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती। इस बात की संभावना कम है कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों गुटों में सहमति बनेगी। 8 मार्च तक यह साफ हो जाएगा कि नेपाल की राजनीतिक स्थिति क्या होती है। यदि के पी ओली बहुमत साबित करने में विफल होते हैं तो यह उनके राजनीतिक करियर का अंत हो सकता है।

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