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    नेटवर्क सिक्यूरिटी में वायरस और उसके प्रकार

    विषय-सूचि

    वायरस क्या है? (virus in network security in hindi)

    एक सही प्रोग्राम में गलत तरीके से घुसे कोड को वायरस कहते हैं। ये खुद से खुद को मैनेज करने वाले होते हैं और इन्हें इस तरह से डिजाईन किया गया होता है कि ये बांकी के प्रोग्राम को भी संक्रमणित कर देते हैं।

    ये सिस्टम के अंदर के फ्य्ले को मॉडिफाई कर उन्हें तबाह कर सकते हैं जिस से पूरा का पूरा सिस्टम ठप्प हो जाता है। इसके असर से सिस्टम रुक जाता है और प्रोग्राम सही से काम करना बंद कर देते हैं।

    टारगेट मशीन तक पहुँचते ही वायरस को ड्राप करने वाला टोर्जन होर्सेर उस वायरस को उस मशीन में डाल देता है।

    वायरस के प्रकार (types of virus in network security in hindi)

    अब हम यहाँ दस तरह के वायरस की बात करेंगे और एक-एक कर उन्हें समझेंगे कि उनका सिस्टम पर क्या असर हो सकता है।

    • File Virus : इस तरह के वायरस सिस्टम के फाइल के सबसे अंत में जाकर और फिर सिस्टम को स्न्क्रमानित करते हैं। ये प्रोग्राम के स्टार्ट में ही बदलाव कर देते हैं ताकि कण्ट्रोल इसके कोड पर जम्प कर जाये। जब इसका कोड रन हो जाता है तब तब कण्ट्रोल में प्रोग्राम में वापस लौट आता है। इसके execution पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता। इसे parasitic वायरस भी कहते हैं क्योंकि ये किसी फाइल को सही नहीं रहने देता और होस्ट को फंक्शन भी करने देता है।
    • Boot sector Virus : ये सिस्टम के बूट सेक्टर को संक्रमणित करता है। जब भी सिस्टम को बूट किया जाता है तो ऑपरेटिंग सिस्टम के रन होने से पहले ये हावी हो जाता है। ये दूसरे बूट होने वाले मीडिया जैसे कि हार्ड ड्राइव या फ्लॉपी डिस्क को निशाना बनाता है। इन्हें मेमोरी वायरस भी कहते हैं क्योंकि ये फाइल सिस्टम पर कोई असर नहीं दिखाते।
    • Macro Virus : अन्य वायरस जो लो लेवल लैंग्वेज (C या असेंबली लैंग्वेज) में लिखे गये होते हैं उनके विपरीत, इन्हें हाई लेवल लैंग्वेज जैसे कि विसुअल बेसिक में लिखा जाता है। इन वायरस को उन एप्लीकेशन में असर दिखाने के लिए जाना जाता है जो मैक्रो को रन करते हैं जैसे कि MS ऑफिस एप्लीकेशन। इसके अंदर स्प्रेडशीट भी हो सकते हैं।
    • Source code Virus :  ये सीधा सोर्स कोड को खोज कर उसपर हमला करता है और उसमे मॉडिफिकेशन कर के उसे फैलने में मदद करता है।
    • Polymorphic Virus : वायरस सिग्नेचर एक ऐसा पैटर्न है जो वायरस की पहचान कर सकता है (बाइट का सीरीज जो कि एक वायरस कोड का निर्माण करते हैं)। इसीलिए एंटीवायरस से डिटेक्ट होने से बचने के लिए पोलीमार्फिक वायरस अपने आप को उतनी बार बदलता है जितनी बार ये इनस्टॉल हो। कहने का मतलब ये हुआ कि वायरस का फंक्शन समान रहता है लेकिन उसका सिग्नेचर बदल जाता है।
    • Encrypted Virus : ये वायरस एन्क्रिप्टेड रूप में होते हैं ताकि अंतवायरस इन्हें पकड़ नहीं पाए और ये डिटेक्ट नहीं हो पाए। इसके साथ एक decryption अल्गोरिथम भी होता है। इसीलिए पहले ये डिक्रिप्ट होता है और फिर एक्सीक्यूट होता है।
    • Stealth Virus : .ये बहुत ही स्मार्ट वायरस है क्योंकि ये उस कोड को ही बदल देता है जिसके द्वारा इसे खोजा जा सकता हो। इसीलिए इसे डिटेक्ट करता काफी कठिन हो जाता है। जैसे कि मान लीजिये इसने रीड सिस्टम कॉल को मॉडिफाई कर दिया। अब यूजर जब भी कोड को उसके जरिये देखेगा तो उसे वायरस या संक्रमण वाला कोड नहीं बल्कि पहले वाला मूल कोड ही दिखेगा। ऐसे में यूजर को वायरस के बारे में पता ही नहीं चलता।
    • Tunneling Virus : ये वायरस खुद को इंटरप्ट हैंडलर चैन में इनस्टॉल कर लेता है ताकि ताकि एंटीवायरस को बाईपास कर सके और कोई इसे डिटेक्ट ना कर सके। जब टनलिंग वायरस चालू होता है तब ऑपरेटिंग सिस्टम का बैकग्राउंड और कैच वायरस- दोनों ही काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे ही वायरस अपने-आप को डिवाइस के ड्राईवर में भी इन्स्टाल कर लेते हैं।
    • Multipartite Virus : स तरह के वायरस किसी सिस्टम के एक से ज्यादा भाग को संक्रमणित कर सकते हैं जैसे कि बूट सेक्टर, मेमोरी और फाइल्स। ये इसे काबू में करने में काफी कठिन बना देता है।
    • Armored Virus : ये एक ऐसे किस्म का वायरस होता है जिसे समझने में एंटी-वायरस को भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इनके डिजाईन का तरीका ही यही है कि इसे कोई समझ ही ना पाए। ये कम्प्रेशन का प्रयोग कर के अपने कोड को और भी कठिन बना देता है। और सबसे खास बात कि ये होता कहीं और है लेकिन एंटी-वायरस को मुर्ख बनाने के लिए किसी और लोकेशन में होने का भ्रम पैदा करता है।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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