विषय-सूचि
आप सबने नेट न्यूट्रैलिटी (net neutrality) का नाम सुना ही होगा लेकिन बहुत कम लोगों को इसके बारे में पूरी तरह से पता है कि आखिर ये है क्या।
जब हम ऑनलाइन आते हैं तो हम जिस वेबसाइट से जुड़ना चाहें उस से जुड़ सकते हैं और किसी भी कंटेंट को एक्सेस करने की अपेक्षा रखते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो हम चाहते हैं कि हमारा इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर डाटा के साथ कोई छेड़-छाड़ ना करे और हमे सारे वेबसाइट, एप्लीकेशन या कंटेंट- जिसे भी हम चुने उनसे हमे कनेक्टेड रखे।
नेट न्यूट्रैलिटी क्या है? (net neutrality in hindi)
जब मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक बनाया तब उन्हें किसी इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर को अपने वेबसाइट को जोड़ने के लिए अनुरोध नहीं करना पड़ा।
उन्हें उन कम्पनियों को अतिरिक्त पैसे भी नहीं देने पड़े ताकि फेसबुक उन सब के अंदर ऐसे ही खुले या काम करे जैसा कि अन्य वेबसाइट या एप्लीकेशन चलते हैं।
इसका मतलब फेसबुक जैसा दूसरे वेबसाइट चलते हैं वैसे चलने के लिए उन्हें कुछ अतिरिक्त नहीं करना पड़ा। उन्होंने जब ही फेसबुक बनाया, तभी ये अपने-आप इन्टरनेट से कनेक्ट हुए किसी भी और वेबसाइट की तरह किसी भी कंप्यूटर से खोला जा सकता था।
यही नेट न्यूट्रैलिटी है।
नेट न्यूट्रैलिटी या नेटवर्क neutrality एक सबसे महत्वपूर्ण फीचर है जो इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर कम्पनीज को हमारे द्वारा एक्सेस किये जाने वाले वेबसाइट के कंटेंट या गति से छेड़-छाड़ करने से रोकता है।
इसका अर्थ ये हुए कि ये ISPs किसी दो अलग-अलग वेबसाइट या एप्लीकेशन के बीच भेद-भाव नहीं कर सकते और किसी भी कंटेंट को अपनी सुविधा के हिसाब से ब्लाक भी नहीं कर सकते। उन्हें हमे एक ओपन इन्टरनेट की सुविधा देनी होगी।
ये बिलकुल इसी तरह है जैसे कि फ़ोन कम्पनीज ये निर्णय नहीं ले सकती कि कौन हमे कॉल करेगा या फिर कॉल पर बात करते समय क्या बोलना है और क्या नहीं। ऐसे ही ये कम्पनियां हम इन्टरनेट पर जो भी देखें, पोस्ट करें या डाउनलोड करें- इन चीजों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
नेट neutrality की अनुपस्थिति में इन्टरनेट देने वाली कम्पनियां इन्टरनेट को तेज और धीमे लें में बाँट सकती है।कोई इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर कम्पनी अपने प्रतिद्वंदी के वेबसाइट को धीमा कर सकती है ताकि उसे खोलने में आपको दिकात हो या फिर उसे ब्लाक भी कर सकती है।
या फिर कोई बड़ी कम्पनी ISPs को अतिरिक्त पैसे देकर ये सुनिश्चित कर सकती है कि उनका वेबसाइट तो तेज खुले लेकिन उनके प्रतिद्वंदियों के वेबसाइट काफी धीमा खुले। ऐसे में पूरी कि पूरी इन्टरनेट व्यवस्था ही तबाह हो जाएगी।
नेट न्यूट्रैलिटी पर बहस (net neutrality debate in hindi)
नेट neutrality के समर्थक कहते हैं कि इसकी वजह पिछले बेस सालों में इन्टरनेट पर बहुत सारी तरक्कियां हुई है और इसी स्वतंत्रता के कारण दर्जनों ऑनलाइन सर्विस जैसे कि गूगल, ट्विटर, नेटफ्लिक्स और स्काइप जैसी चीजें अस्तित्व में आई।
नेटवर्क neutrality के कारण किसी नये वेबसाइट या एप्लीकेशन को भी बराबर का मौक़ा मिलता है ताकि वो यूजर के बीच अपनी जगह बना सकें।
उनकी चिंता यह है कि बिना नेटवर्क neutrality के इन्टरनेट नये कम्पनियों और नये विचारों के लिए बहुत ही मुश्किल जगह हो जाएगा। उदाहरण के लिए मान लीजिये अगर बड़ी इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर कम्पनियां किसी विडियो साईट पर विडियो चलाने के लिए आपसे अतिरिक्त रुपयों कि मांग कर सकती है।
ऐसा होने पर आपको सभी ISPs के प्लान देखने होंगे कि कौन सी कम्पनी यूट्यूब पर सबसे कम रुपया ले रही है। ऐसे में आपको इन्टरनेट पैक के अलावे इतने सारे खर्च उठाने पड़ेंगे।
फरवरी 2015 में फेडेरल कम्युनिकेशन कमिशन यानी FCC ने नेटवर्क neutrality के लिए नये और मजबूत नियमों को बनाया जिसके कारण इन्टरनेट एक्सेस एक सार्वजनिक उपयोग का चीज रहेगा।
नेटवर्क neutrality के समर्थकों ने इस निर्णय के स्वागत किया लेकिन इसके विरोधोयों का कहना है कि इस से इन्टरनेट के बहुत ज्यादा नियंत्रण में जाने का दर है। इस रेगुलेशन के विरोध में बहुत सारी कम्पनियों ने कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया और नियमों को हटाने की विनती करते हुए कहा कि वो FCC के अंदर में नहीं आते।
इसीलिए हम सभी को नेट neutrality के पक्ष में ही रहना चाहिए क्योंकि ये इन्टरनेट पर उपलब्ध सभी डाटा को समान रूप से ट्रीट करता है और यूजर, वेबसाइट, प्लातेफ़ोर्म और एप्लीकेशन के आधार पर बिना किसी भेद-भाव के कोई अलग पैसे नहीं लेता या गति में बदलाव नहीं होता।
ISPs हमारी नेट की गति के साथ छेड़-छाड़ करने के लिए स्वतंत्र नहीं होते और किसी ख़ास कंटेंट के लिए अतिरिक्त रूपये नहीं मांगते।
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