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    जब कभी भी हम मानव समाज के भविष्य के बारे में सोचते हैं तो किस प्रकार के विचार हमारे ज़ेहन में आते हैं? कि विज्ञान प्रगति करेगा, गरीबी-भुखमरी, उंच-नीच, जातिभेद आदि मिट जाएंगे? हमारा देश खुशहाल और शांतिपूर्ण होगा?

    बेशक हम सभी यह कामना करते हैं कि एक देश के तौर पर हम अच्छाई की और बढ़ें लेकिन जिस तरह से हम पर्यावरण की देखभाल नहीं करते हैं, पानी नष्ट करते हैं और नफरत भरी पॉलिटिक्स का साथ देते हैं तो यह कहने में भी कोई बुराई नहीं होगी कि देश गर्त में जा सकता है।

    क्या कभी आपके ज़ेहन में इस तरह के भारतवर्ष के विचार आएं हैं जहाँ पानी सबसे महँगी चीज़ हो? जहाँ अम्ल वर्षा होती हो? गाँव के गाँव कूड़े के ढेर में बदल गए हैं और एकदलीय शासन पद्धति हो।

    यदि कोई दूसरी जाति में विवाह कर ले या फिर कोई लड़की अपने पिता की संपत्ति में अधिकार मांग ले या फिर अपने मन से वेस्टर्न कपड़े या फिर मनपसंद चीजें करना चाहे तो उसे उसके घर वालों से दूर किसी श्रम केंद्र में डाल दिया जाए।

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    एक ऐसा देश जहाँ अलग-अलग जाति के लोग तो रह रहे हैं लेकिन उनके कस्बों के बीच एक बड़ी दिवार हो ताकि वे आपस में मिल-जुल न सकें और एक-दुसरे के धर्म व कार्य उन्हें प्रभावित न कर सकें। फ़ोन, रेडियो और टीवी पर भी आप वही देख सकें जो आपकी सरकार दिखाना चाहे।

    नेटफ्लिक्स(Netflix) के नए वेब शो लैला (Leila) में कुछ इस इसी तरह का देश दिखाया गया है। शो के सेट में 2040 के बाद का भारत है जो आर्यावर्त में तब्दील हो गया है और पूरी तरह तबाह हो चूका है।

    यहाँ जोशी जी ( संजय सूरी ) का राज चलता है और पत्ता भी उनकी मर्जी से ही हिलता है और आर्यावर्त को मानने वाली जनता इन्हें भगवान् मानती है। यह दिखाई भी कम देते हैं और लोग सिर्फ इनके पोस्टर्स और उपदेशों से ही रूबरू हो सकते हैं।

    शालिनी (हुमा कुरैशी) जो हिन्दू है और उसने रिजवान (राहुल खन्ना) से प्रेमविवाह कर लिया है और उनकी एक बेटी है लैला। एक दिन पानी चोरी के सिलसिले में कुछ स्वयंसेवी लोग इनके घर आ जाते हैं और उस समय हुई हाथापाई में रिजवान की मौत हो जाती है।

    शालिनी को वे लोग श्रमकेंद्र में डाल देते हैं जहाँ से लम्बे समय तक वह बाहर नहीं आ पाती है और एक दिन अचानक शालिनी वहां से भाग निकलने में कामयाब हो जाती है।

    किसी तरह एक छोटी बच्ची की मदद से वह अपने घर पहुंचती है जहाँ उसे पता चलता है कि उसकी बेटी लैला भी उसी समय से गायब है। शालिनी को फिर से आर्यावर्त वाले पकड़ कर ले जाते हैं लेकिन तबतक वह अपने मन में अपनी बच्ची को खोजने का निश्चय कर चुकी होती है।

    और यही स्टोरीलाइन इस शो को आगे बढ़ाती है। यह शो प्रयाग अकबर के उपन्यास ‘लैला’ का एडाप्टेशन है जिसे दीपा मेहता, शंकर रमन और पवन कुमार द्वारा निर्देशित किया गया है।

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    अभिनय की बात करें तो सभी कलाकारों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। हुमा सबसे ज्यादा कैमरे के सामने रही हैं और इस समय का उन्होंने भरपूर उपयोग किया है। भानू के किरदार में सिद्धार्थ परफेक्ट लगते हैं और एक क्रूर व्यक्ति होने पर भी दर्शकों का मन उन्हें पसंद करने के कारण खोजता है।

    राहुल खन्ना ने भी अपना किरदार बखूबी निभाया है। शो की शुरुआत में चंद मिनटों में ही उनके किरदार की मौत हो जाती है लेकिन वह बार-बार शालिनी के भ्रम में आते रहते हैं। संजय सूरी अंतिम एपिसोड में थोड़े समय के लिए दिखाई देते हैं लेकिन ऐसी उम्मीद है कि अगले सीजन में हम उन्हें और भी ज्यादा देख पाएंगे।

    जो सबसे दिलचस्प किरदार हैं वह आरिफ जकारिया और आकाश खुराना के हैं। आरिफ ने श्रमकेंद्र के गुरुमाता का किरदार निभाया है जो कि अतिशयवादी होने के साथ-साथ मुर्ख कट्टर हिन्दू बाबा है।

    आरिफ को इस तरह के किरदार में देखना काफी दिलचस्प अनुभव है और आकाश खुराना की बात करें तो उनका किरदार काफी कंफ्यूज तरह का है जो आर्यावर्त के सबसे बड़े नेता में से एक है जिसने ताजमहल तक को गिरवा दिया लेकिन दिल ही दिल में वह फैज़ अहमद फैज़ की शायरी भी याद करता है।

    उसे कहीं न कहीं यह भी लगता है कि देश जैसा बन गया है उस तरह से वह नहीं चाहता था। कट्टरवादिता के चलते जीरो क्राइम रेट तो हासिल हो गया है लेकिन उसे यह एहसास है कि बहुत कुछ पीछे भी छूट गया है। देर रात अकेले में वह ‘मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग’ सुनता है।

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    इस किरदार को आकाश खुराना ने बखूबी निभाया है और इस किरदार की कश्मकश को उन्होंने कुछ इस तरह जीवंत किया है कि दर्शक कंफ्यूज हो जाते हैं कि उनसे नफरत करनी है या फिर सहानुभूति।

    निर्देशन की बात करें तो शो का सेट, कपड़े और एक-एक डिटेल्स पर अच्छे से काम किया गया है जो इसमें चार-चाँद लगाता है और इस तरह के उपन्यास पर एक शो क्रिएट करना वाकई में बहादुरी का निर्णय है जब आप ऐसे समय में रह रहे हैं जब आपको पता है कि सोशल मीडिया पर आपको कितनी गालियाँ पड़ेंगी।

    कुल मिलाकर ‘लैला’ एक शक्तिशाली और बहादुर वेब शो है जो इस तरह के भविष्य को दिखाता है जो वर्तमान से बहुत ज्यादा अलग नहीं है और साथ ही यह वेब शो हमारे द्वारा फैलाए जा रहे प्रदुषण और नफरत भरी पॉलिटिक्स का नतीज़ा दिखा कर हमारी आँखे खोलने का भी प्रयत्न करता है और यह दिखाता है कि किसी भी प्रकार के अतिशय के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं।

    यह वेब शो पित्रसत्ता के भी गहरे दुष्परिणामों को उजागर करने की कोशिश करता है।

    यह एक सीरियस थ्रिलर ड्रामा है जिसमें लास्ट एपिसोड इस नोट पर ख़त्म हुआ है कि दुःख होने लगता है कि आगे की कहानी अभी क्यों नहीं बताई गई। तो यदि इस तरह का धैर्य आपमें हो कि आप एक अच्छी कहानी का अंत जानने के लिए अगले सीजन का इंतज़ार कर सकें तो ‘लैला’ आपके लिए ही है।

    इसे देखने का आपका अनुभव अच्छा रहने वाला है।

    रेटिंग- 3/5

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    By साक्षी सिंह

    Writer, Theatre Artist and Bellydancer

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