पटना, 31 मई (आईएएनएस)| बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल नहीं होने के फैसले ने बिहार में नई सियासी संभावनाओं को लेकर बहस की शुरुआत जरूर कर दी हो, लेकिन यह कोई पहला मामला नहीं है कि नीतीश अपने साथियों के पक्ष से अलग नजर आए हों। नीतीश कुमार महागठबंधन में रहे हों या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में, वे अलग फैसले लेते रहे हैं।
राजनीति की दुनिया में नीतीश कुमार ने कई मौकों पर ऐसे फैसले लिए जो लोगों के लिए चौंकाने वाले रहे हैं। गौर से देखा जाए तो नीतीश जब पहले भी राजग में थे, तब भी कई मौकों पर विपक्ष के साथ खड़े होते रहे थे और आज जब एकबार फिर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हैं, तब भी सरकार में शामिल नहीं होने के फैसला लेकर लोगों को चौंका दिया है। वैसे जानकार इसे नीतीश की अलग राजनीतिक छवि से जोड़कर देखते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि नीतीश ऐसे राजनीतिज्ञों में शुमार हैं, जो राष्ट्रीय राजनीति में अपने अलग फैसले के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा, “नीतीश के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी उनकी अपनी छवि और काम रहा है। अगर जद (यू) का कोई एक सांसद बन जाता, तो उनके समकक्ष का सांसद नाराज होता, ऐसे में उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने का ही फैसला लिया।”
किशोर यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार ने राजग में रहते हुए भी सरकार में नहीं रहने का फैसला लिया है। ऐसे में भाजपा को भी उदारता दिखानी चाहिए।
नीतीश कुमार जब राजद के साथ थे तब भी केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी करने के फैसले का भी नीतीश ने जोरदार समर्थन किया था। इसी तरह विपक्ष के कई नेता जहां पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सबूत मांग रहे थे, वहीं नीतीश ने खुलकर इसका समर्थन किया था।
वैसे देखा जाए तो संदेह नहीं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बहुत सोच-समझ कर राजनीति करते हैं।
नीतीश कुमार ने जिस लालू प्रसाद के विरोध के बावजूद बिहार में पहली बार सत्ता हासिल की थी, उसी लालू के साथ मिलकर बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में सत्ता भी पाई। इसके बाद जब राज्य में अपराध बढ़ने लगे और लालू परिवार के खिलाफ रोज नए-नए भ्रष्टाचार के खुलासे होने लगे तो फिर भाजपा के साथ मिलकर सरकार भी बना ली।
हाल ही में जद (यू) ने बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को भी लेकर हवा देनी शुरू कर दी है, जिसे राजनीति को लोग दबाव की राजनीति से भी जोड़कर देखते हैं।
संविधान की धारा 370 हटाने की बात हो या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण या तीन तलाक और समान नागरिक कानून हो, इन सभी मामलों में जद (यू) का रुख भाजपा से अलग रहा है। जद (यू) इन मामलों को लेकर कई बार स्पष्ट राय भी दे चुकी है।
हालांकि जद (यू) मंत्रिमंडल में शामिल होने को विरोध या असंतुष्ट से जोड़कर नहीं देखने की बात कहती है। जद (यू) के प्रवक्ता और प्रधान महासचिव क़े सी़ त्यागी कहते हैं कि बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाला है, ऐसे में सांकेतिक मंत्रिमंडल में शामिल होना बिहार के लोगों के साथ न्याय नहीं होगा।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा, “जद (यू) न नाराज है और ना ही असंतुष्ट है। जद (यू) ने भाजपा को अपनी स्थिति से अवगत करा दिया है।”
आने वाले समय में मंत्रिमंडल में शामिल होने के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि आगे जो बात होगी, वह होगी, लेकिन सांकेतिक रूप में शामिल नहीं हुआ जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि दो सीटों वाली पार्टी और 16 सीटोंवाली पार्टी में कुछ तो अंतर होना चाहिए।
बहरहाल, वर्तमान समय में जद (यू) के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने के फैसले को लेकर विपक्ष ने प्रश्न उठाने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में देखना होगा कि भाजपा जद (यू) को किस ‘संकेत’ के जरिए मनाने में सफल होती है।