मुलायम सिंह यादव का निधन (Mulayam Singh Yadav Passes Away): काफ़ी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, HD देवेगौड़ा सरकार में केंद्र में भारत के विदेश मंत्री का दायित्व संभाल चुके समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक श्री मुलायम सिंह यादव का गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आज 10 अक्टूबर की सुबह निधन के साथ ही भारतीय राजनीति में समाजवाद और लोहियावादी विचारधारा का एक और सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया।
समाजवादी पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से यह जानकारी आज सुबह लगभग 10-11 बजे जब दी गई तो क्या पक्ष, क्या विपक्ष… हर तरफ़ एक सन्नाटा छा गया।
आदरणीय नेताजी का आज दिनांक 10/10/2022 को सुबह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर को सैफ़ई ले जाया जा रहा है।
कल दिनांक 11/10/2022 को दोपहर तीन बजे सैफई में अंतिम संस्कार होगा।
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) October 10, 2022
नाम ‘मुलायम’ सिंह यादव, सियासत में ‘ फौलादी पहलवान’
उम्र के 82 बसंत देखने वाले ‘नेताजी’ राजनीति में आने से पहले अखाड़े में पहलवानी का शौक रखते थे। लेकिन जब पहलवानी के अखाड़े से निकलकर सियासत की गलियों में आये तो यहाँ भी विपक्षियों को पटखनी देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
स्वर्गीय श्री मुलायम सिंह यादव ने पहली बार 1967 मे तत्कालीन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) के टिकट पर पहली बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा में कदम रखा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गाँव-गाँव साइकिल से घूमने वाले नेताजी अपने 55 साल के लंबे राजनीतिक जीवन मे 08 बार विधानसभा सदस्य (MLA), 01 बार विधानपरिषद सदस्य (MLC) और 07 बार सांसद (MP) रहे। इस दौरान वे 03 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा केंद्र में रक्षा मंत्री सहित कई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाई।
इतना सफल और लंबा राजनीतिक करियर किसी भी सियासतदां की एक हसरत होती है जिसे मुलायम सिंह ने वास्तविक जीवन मे हासिल किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके नाम मे जरूर ‘मुलायम’ था, पर राजनीति के अखाड़े में बहुत ही फौलादी सियासतदां थे।
जब कांग्रेस ने मुलायम सिंह यादव को कहा था “नौसिखिया” बालक
“मुलायम सिंह यादव और समाजवाद” नामक अपने किताब में देशबंधु वशिष्ठ लिखते हैं कि,
नेताजी के शुरुआती राजनीतिक दिनों में चुनाव और राजनीतिक विश्लेषकों को उनकी जीत की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। साल 1967 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जहाँ एक तरफ कांग्रेस नेता गाँधी और नेहरू के संघर्ष के नाम पर वोट मांग रहे थे वहीं मुलायम सिंह यादव गांव-गांव घूम रहे थे।
देशबंधु वशिष्ठ आगे लिखते हैं,
कई कांग्रेसी नेताओं ने उनका उपहास उड़ाया और उन्हें राजनीति का नौसिखिया बालक कहा। जबकि चुनाव के नतीजे ने सबको जवाब दे दिया था। मुलायम सिंह यादव को एकतरफा जीत मिली थी।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में धीरे-धीरे सीढियां चढ़ने वाले मुलायम सिंह यादव ने जब 06 दिसंबर 1989 को यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ पहली बार ली, विडम्बना देखिये तब से ही उत्तरप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस कभी सत्ता में वापिस नहीं आ पाई।
प्रखर लोहियावादी और समाजवाद का अनमोल सितारा
जेपी और लोहिया के विचारों से प्रभावित मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद का झंडा उस दौर में बुलंद किया था जब कांग्रेस इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में अपने प्रखर पर थी।
मुलायम सिंह जैसे ओबीसी नेताओं का तब नारा हुआ करता था – “संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पायें सौ में साठ” (SSP has taken resolve, OBCs should get 60% of all). इसी दौर की राजनीति से निकले कई अन्य चेहरे उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में तब से लेकर आज तक छाए हुए हैं।
मुलायम के तर्ज पर ही बिहार में लालू प्रसाद यादव ने भी ओबीसी और पिछड़ों की राजनीति का झंडा लेकर खुद को न सिर्फ बिहार में बल्कि सम्पूर्ण भारत की राजनीति में स्थापित किया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. रामविलास पासवान, मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव समाजवादी आंदोलन ने निकले वे बड़े नेता हैं जिनका नाम भारतीय राजनीति में हमेशा ही प्रासंगिक बना रहेगा।
समाजवादी विचारधारा के इर्द-गिर्द ही और जेपी आंदोलन के बाद कुछ अन्य नाम शरद यादव, नीतीश कुमार आदि जैसे बड़े नाम उभर कर सामने आए जो भारतीय राजनीति में आज भी दीप्तिमान हैं।
कहते है ना कि समय से बलबान कोई नहीं होता। समाजवाद और लोहियावादी नेताओ का यह कुनबा धीरे धीरे सिमटने लगा है। पहले रामविलास पासवान और अब मुलायम सिंह यादव ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। लालू प्रसाद यादव भी स्वास्थ कारणों से सक्रिय राजनीति में बहुत नहीं दिखते। लेकिन इन नेताओं ने भारतीय राजनीति को दिशा दिखाई है, वह अभूतपूर्व है और शायद चिर-विद्यमान भी रहेगा।
अलविदा मुलायम सिंह यादव!